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चाणक्य नीति के अनुसार पारिवारिक सुख क्या है

चाणक्य नीति के अनुसार पारिवारिक सुख क्या है
चाणक्य नीति एक अमूल्य ग्रंथ है, जिसमे व्यक्ति के जीवन में आने वाली दिक्कतों बड़ा अच्छा समाधान किया है। चाणक्य नीति में पारिवारिक सुख के बारे में कहा है कि

जिसके पुत्र और पुत्री अच्छी बुद्धि वाले हो, जिसकी पत्नी मीठा बोलने वाली हो, जिसके  पास परिश्रम और इमानदारी से पैदा किया हुआ धन हो, जिसकेे अच्छे मित्र हो, जिसका अपने पत्नी के प्रति प्रेम और अनुराग हो , नौकर चाकर आज्ञा का पालन करने वाले हो, जिस घर में अतिथियों का स्वागत सम्मान होता हो कल्याणकारी परमेश्वर की उपासना होती हो घर में प्रतिदिन अच्छा  मीठे भोजन और मधुर  पेय पदार्थ की व्यवस्था हो, सज्जन लोगो का संघ अथवा संगति करने का अवसर मिलता हो ऐसा गृहस्थ आश्रम धन्य है और प्रशंसा के योग्य है

जिसका पुत्र वस में रहता है पत्नी पति के इच्छा के अनुरूप कार्य करती है जो व्यक्ति अपने धन से संतुष्ट है उसके लिए यह धरती स्वर्ग के समान है 

प्रत्येक व्यक्ति इस संसार में सुखी रहना चाहता है यही तो स्वर्ग है। स्वर्ग में भी सभी प्रकार के सुखों का उपभोग करने की कल्पना की गई है इस बारे में चाणक्य कहते हैं। जिसका पुत्र उसकी बात मानता है। जिसकी पत्नी उसकी ईच्छा के अनुसार कार्य करती है। जो अपने कमाए हुए धन से संतुष्ट है ज्यादा कमाने की इच्छा तो है, लेकिन कोई लालच नहीं है। ऐसे मनुष्य के लिए किसी अन्य प्रकार के स्वर्ग की कल्पना व्यर्थ है ।😗
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चाणक्य ने अन्य श्लोक में कहा है कि भोजन के लिए अच्छी पदार्थ का होना उसे खाकर पचाने की शक्ति होना, सुंदर स्त्री का मिलन और उसके उपभोग के लिए काम शक्ति का होना।  धन के साथ-साथ उसे दान देने की इच्छा होना। यह बातें मनुष्य को किसी महान तप के कारण प्राप्त होती है।
भोजन में अच्छी वस्तुओ की कल्पना है सभी करते हैं परंतु वस्तुएं प्राप्त होना और उसे पचाने की शक्ति होना भी आवश्यक है प्रत्येक पर प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसे सुंदर स्त्री मिले लेकिन उसके उपभोग के लिए व्यक्ति में काम शक्ति भी होनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है किसके पास धन हो लेकिन धन प्राप्ति के बाद कितने ऐसे लोग हैं जो उसका सदुपयोग कर पाते हैं। अच्छी जीवनसंगिनी, अच्छी शारीरिक शक्ति, धन और वक्त जरूरत पर किसी के काम आने की प्रवृत्ति आदि पूर्व जन्मों के कर्मों का फल होता है।

जो व्यक्ति धन धन के लेनदेन में विद्या अथवा किसी कला के सीखने में भोजन के समय अथवा व्यवहार में लज्जा हीन होता है अर्थात संकोच नहीं करता है वह सुखी रहता है।

व्यक्ति को लेनदेन में किसी प्रकार का संकोच नहीं करना चाहिए अपनी बात स्पष्ट शब्दों में कहने चाहिए विद्या अथवा किसी गुण को सीखने में  संकोच नहीं करना चाहिए इससे हानि होती है। इसी प्रकार भोजन करते समय जो व्यक्ति संकोच करता है और भूखा रह जाता है इसलिए भोजन के समय , लोकचार और व्यवहार के समय व्यक्ति को संकोच ना करके अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त करने चाहिए।

जो व्यक्ति संतोष रूपी अमृत से सख्त है मन मन से शांत है उसे जो सुख प्राप्त होता है वह धन के लिए इधर-उधर दौड़-धूप करने वालों को भी कभी प्राप्त नहीं होता है संतोष की बड़ी महिमा है जो व्यक्ति संतोष के कारण अपना जीवन व्यतीत करते हैं और शांत रहते हैं उन्हें जितना सुख प्राप्त होता है वह धन के लालच के लिए हर समय दो टूक करने वाले व्यक्ति को प्राप्त नहीं हो सकता है।



चाणक्य नीति के अनुसार अपना जीवनसाथी किसे और कैसे चुने

नीति का शाब्दिक अर्थ है जो आगे ले जाए। 
जिस प्रकार विज्ञान के सिद्धांत की पुष्टि विभिन्न मापदंडों पर एक समान रहने पर की जाती है। उसी तरह जीवन में नीति की पुष्टि विभिन्न मापदंडों पर एक समान रहने पर की जाती है।
आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र को विज्ञान कहा है। अब आप सोच रहे होंगे कि 2500 वर्ष पूर्व लिखी गई नीतियां आज भी वही परिणाम दे सकती है। जबकि दोनो समय के रहन सहन में बहुत परिवर्तन आ चुका है। तो ये नीतियां समय काल से प्रभावित नहीं होती और आज भी आपको जीवन में सफल बनाने में सक्षम है। 

आचार्य ने लिखा है कि राजनीति में कभी कभी ऐसे कदम उठाने पड़ते है जो नीति विरुद्ध लगते है। इसके लिए आपको उस कदम के लाभ के बारे में सोचना चाहिए। अगर आपके कदम से जन कल्याण होता हो वो कदम नीति विरुद्ध होते हुए भी सही है। जैसे की महाभारत में युधिष्ठिर ने द्रोणाचार्य बध के समय की थी। उस समय  नीति के ज्ञाता श्री कृष्ण ने इस कदम को सही बताया था।

अर्थ
बुद्धिमान व्यक्ति को अच्छे कुल में जन्म लेने वाली कुरूप स्त्री से भी विवाह कर लेना चाहिए। जबकि अच्छे रूप वाली नीच जन्म लेने वाली स्त्री से विवाह नहीं करना चाहिए।

व्याख्या 
आचार्य के अनुसार व्यक्ति के जीवन में विवाह  एक बहुत महत्वपूर्ण घटना है। इसीलिए व्यक्ति को अपना विवाह बहुत सोच समझ कर करना चाहिए। विवाह का निर्णय जल्दबाजी में नहीं चाहिए।  

आचार्य के अनुसार शरीर की बाहरी सुंदरता सिर्फ दिखावा मात्र है।  जीवन साथी भले ही कुरूप हो लेकिन अच्छे गुणों वाला व्यक्ति को  जीवन साथी को चुनना चाहिए। और ये देखना चाहिए कि आप उस व्यक्ति के साथ अपना पूरा जीवन गुजार पाएंगे। जबकि जीवन साथी सुंदर हो लेकिन अच्छे गुण वाला न हो उसे नही चुनना चाहिए। 

आचार्य ने अन्य श्लोक में लिखा है कि जिस प्रकार सुनार सोने को घिसकर, तपाकर, काटकर और कूटकर परीक्षा लेता  है। उसी प्रकार मनुष्य की परीक्षा की जानी चाहिए।

वैसे तो आचार्य में यह श्लोक पुरुषो के लिए लिखा है लेकिन यह बात महिलाओ पर भी लागू होती है। क्योंकि अन्य श्लोक में आचार्य ने कन्या के पिता से भी कहा है कि कन्या का  विवाह अच्छे कुल के पुरुष के साथ करना चाहिए। ये 2500 साल पुरानी बात है वर्तमान में कन्या भी अपने जीवन साथी का चुनाव करती है इसीलिए कन्या को भी  जीवन साथी में सुंदरता न देख कर अच्छे गुण को देखना चाहिए।   

लेकिन सौभाग्य से अगर आपको ऐसा जीवन साथी मिल जाता है जो अच्छे गुणों के साथ सुंदर भीं है। तो ये आपके पूर्व के जन्मों के अच्छे कर्मों का फल है। जितनी जल्दी हो ऐसे व्यक्ति से विवाह कर ले। 
नमस्कार साथियों, आपका स्वागत है life Lessons के मध्यम से अपने जीवन को सफल और सुगम बनाने वाले अपने अभियान में। 

जीवन साथी का हमारे जीवन में क्या  महत्व इस बारे में किसी को कुछ भी बताना व्यर्थ है। हम सभी अच्छे जीवन साथी के महत्व को जानते है। सावित्री जैसी पत्नी यमराज के चंगुल से भी अपने पति को मुक्त करवा सकती है। इसीलिए  साथियों आज हम चर्चा करेंगे कि चाणक्य नीति में आदर्श पत्नी की क्या क्या विशेषता बताई है। चलिए आज इसी विषय पर चर्चा प्रारंभ करते है। 

इस संसार में ज्यादातर लोग दुखी है। चाणक्य नीति में आचार्य चाणक्य में दुखी व्यक्तियों के लिए शांति का उपाय बताया है।

चाणक्य नीति के अध्याय 4 श्लोक 10 के अनुसार इस संसार में दुखी लोगो को तीन बातो से ही शांति हो सकती है—अच्छी संतान, पतिव्रता पत्नी और सज्जन का संग। 

अर्थात चाणक्य नीति के अनुसार 3 चीजे दुखी जीवन को सुख प्रदान कर सकती है। वह है अच्छी।संतान, पतिव्रता पत्नी और सज्जन लोगो का संग। 

अन्य बातो के बारे में चर्चा हम दूसरे वीडियो में करेंगे आज हम पतिव्रता पत्नी के बारे में बात करेंगे। पतिव्रता पत्नी का जीवन पति के जीवन कों सवर्ग बना देती है और दुष्ट स्त्री पति के जीवन को नर्क बना देती है। यह बात चाणक्य नीति के इस श्लोक से स्पष्ट हो जाती है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 6 श्लोक 12 के अनुसार बुरे राज्य की अपेक्षा किसी प्रकार का राज्य न होना अच्छा है। दुष्ट मित्र के अपेक्षा मित्र न होना अच्छा है। दुष्ट शिष्यों की अपेक्षा शिष्य न होना अच्छा है। और दुष्ट पत्नी का पति होने से अच्छा है पत्नी ही न हो।   

अर्थात व्यक्ति का दुष्ट पत्नी से विवाह करने से अच्छा है कि।व्यक्ति आजीवन कुंवारा ही रहे है। या दुर्भाग्य वश किसी व्यक्ति का विवाह दुष्ट जीवन साथी से हो जाता है तो दुष्ट जीवन साथी का साथ छोड़ देना चाहिए। क्योंकि अच्छा जीवन साथी ही आपका सच्चा मित्र होता है।  

चाणक्य नीति के अध्याय 5 श्लोक 15 के अनुसार विदेश में विद्या ही मनुष्य की सबसे सच्ची मित्र होती है। घर में अच्छे स्वभाव वाली और गुणवती पत्नी ही मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र होती है। रोगी व्यक्ति की दवाई मित्र है और जो मनुष्य मर गया होता है धर्म कर्म ही उसका मित्र होता है। 
जैसा कि इस श्लोक में बताया है कि कब और कौन अच्छा मित्र होता है 

विदेश में विद्या ही मनुष्य की सबसे सच्ची मित्र होती है। 
घर में अच्छे स्वभाव वाली और गुणवती पत्नी ही मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र होती है।
रोगी व्यक्ति की दवाई मित्र है 
और जो मनुष्य मर गया होता है धर्म कर्म ही उसका मित्र होता है। 

बाकि।बातो।की बात हम अन्य वीडियो में।करेंगे आज हम अच्छे स्वभाव और गुणवती पत्नी के बारे में बात करेंगे। अच्छे स्वभाव वाली और गुणों।से युक्त पत्नी ही व्यक्ति की सबसे अच्छी।मित्र होती है। आइए बात करते है कि चाणक्य नीति में अच्छे स्वभाव और गुणवान पत्नी के बारे में।क्या बताया।गया है। 


चाणक्य नीति के अध्याय 4 श्लोक 13 के अनुसार पति के लिए वही पत्नी उपयुक्त होती है, जो मन, वचन और कर्म से एक जैसी हो और अपने कार्यों में निपुण हो, इसके साथ ही वह अपने पति से प्रेम रखने वाली तथा सत्य बोलने वाली होनी चाहिए ऐसी स्त्री को ही श्रेष्ठ पत्नी माना जा सकता है। 

अर्थात चाणक्य नीति की अनुसार एक  आदर्श पत्नी में ये गुण होने चाहिए

मन कर्म और वचन में एकरूपता - अर्थात आदर्श पत्नी जैसा सोचे वैसा बोले और उसी के अनुसार अपने कर्म करने चाहिए। पत्नी के कर्म परिवार की उन्नति करने वाले होने चाहिए।

कार्य में निपुण- आदर्श पत्नी अपने कार्य में निपुण होनी चाहिए। एक पत्नी को अनेकों।कार्य करने होते है वह एक अच्छे कुक से लेकर एक अच्छी अध्यापिका तक बहुत सारे कार्य कार्य करने होते है। आदर्श पत्नी को चाहिए की वह सभी कार्यों में निपुणता प्राप्त कर ले। और अपनी कार्य कुशलता से अपने परिवार को।प्रसन्न कर दे। 

पति से प्रेम - प्रेम पति और पत्नी के रिश्ते के बीच मजबूत कड़ी के रूप में कार्य करता है। अक्सर प्रेम ही पति और पत्नी के बीच में तलाक का कारण बनता है। इसीलिए पत्नी।को चाहिए कि वह अपने प्रेम से अपने पति को संतुष्ट कर दे। 

सत्य वचन - आदर्श पत्नी को कभीं झूठ नही बोलना चाहिए। क्योंकि झूठ जब पकड़ा जाता है तो पति पत्नी के रिश्ते को कमजोर कर देता है। आदर्श पत्नी को चाहिए कि वह अपने पति से सदा सत्य बोले। 





नमस्कार साथियों,आपका स्वागत है गुरूंजी की क्लास life Lessons by Guruji में, जो साथी गुरु जी की क्लास में नियमित उपस्थित रहते है उन्हे पता है कि गुरु जी की क्लास में आपको जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए अनमोल ज्ञान दिया जाता है। इसीलिए अगर गुरुजी की क्लास में पहली बार आए हो तो सब्क्राइब वाली घंटी बजा दे। जिससे आप भी हमारी कक्षा में नियमित उपस्थित रह सके।

साथियों, शिक्षक दिवस के पावन अवसर पर अपने समस्त गुरुओं चाहे वह स्कूली शिक्षा के गुरु हो या अन्य  गुरु सभी को याद कर उन्हें प्रणाम करके अपनी वीडियो शुरू कर रहा हूं क्योंकि आज मैं जो कुछ भी अपने गुरुओं के द्वारा आशीर्वाद के रूप में दिए गए ज्ञान के वजह से हू। 

अपनी आज की क्लास में हम चर्चा करेंगे कि ज्ञान का क्या महत्व है ज्ञान कैसे प्राप्त किया जा सकता है विधार्थी को ज्ञान प्राप्त करने के लिए किन 8 चीजों का परित्याग कर देना चाहिए। और ज्ञानार्जन में गुरु का क्या महत्व है। तो चलिए आज की क्लास शुरू करते है।






आचार्य के अनुसार ज्ञान के बिना मनुष्य समाज में उपेक्षित रहता है। उसका कोई  सम्मान नहीं करता। यह बात उन्होंने अपने इस श्लोक में कही है।

चाणक्य नीति के अध्याय 3 श्लोक 8 के अनुसार  सुंदर रूप वाला यौवन से युक्त ऊंचे कुल में उत्पन्न होने पर भी विद्या से हीन व्यक्ति मनुष्य सुगंध रहित ढाक अथवा टेसू के फूल की भांति उपेक्षित रहता है। प्रसंसा को प्राप्त नहीं होता है।

 यदि किसी व्यक्ति ने अच्छे कुल में जन्म लिया है और देखने में भी उसका शरीर सुंदर है परंतु यदि वह व्यक्ति विद्या से हीन है तो उसकी स्थिति ढाक के उस फूल के समान होती है जो गंध रहित होता है। ढाक का फूल देखने में बहुत सुंदर और बड़ा होता है परंतु जब लोग यह जानते  है कि उसमे किसी भी प्रकार की सुगंध नही है तो लोग ढाक के फूल की उपेक्षा कर देते है। न तो वह किसी देवता को चढ़ाया जाता है और न ही साज श्रृंगार में उस फूल का उपयोग किया जाता है। अर्थात ज्ञान से हीन व्यक्ति को समाज उपेक्षित कर देता है उसका बिलकुल सम्मान नही करता।

इसके बाद यह प्रश्न उठता है कि ज्ञान किससे प्राप्त किया जाए क्योंकि ज्ञान तो हर जगह बिखरा हुआ है इस प्रश्न कर उत्तर आचार्य ने अपने इस श्लोक में दिया है।

चाणक्य नीति के अध्याय 17 श्लोक 1 के अनुसार जिन व्यक्तियों ने गुरु के पास बैठ कर शिक्षा प्राप्त नहीं की है बल्कि पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त किया है। वह व्यक्ति विद्वान लोगो की सभा में उसी तरह सम्मान नही होता। जिस प्रकार अनैतिक संबंधों से गर्भ धारण करने वाली स्त्री का समाज में सम्मान नही प्राप्त होता है।   

आचार्य ने शिक्षक के बिना किताबी ज्ञान को अधूरा माना है आचार्य का मानना है कि गुरु के समीप रह कर ही योग्य शिक्षा पाई जा सकती 
है। आचार्य का मानना है कि पुस्तक में कई बाते ऐसी होती है जो शिष्य को समझ में नहीं आती तो गुरु तुरंत उस बात को शिष्य को समझा है कर शिष्य की शंका का समाधान कर देता है। यही कारण है कि शिष्य को जो ज्ञान गुरु से प्राप्त होता है वह अपने आप सम्पूर्ण होता है।  

 बिना गुरु के प्राप्त ज्ञान आधा अधूरा रहता है। और आधा अधूरा ज्ञान समाज के लिए खतरनाक होता है। ऐसे व्यक्ति समाज में उपहास का पात्र बनते है और अपने ज्ञान का अपमान करवाते है।

इसके बाद आचार्य ने बताया है कि ज्ञान कैसे प्राप्त होता है।

चाणक्य नीति के अध्याय 12 श्लोक 19 के अनुसार जैसे बूंद-बूंद से घड़ा भर जाता है, उसी प्रकार निरंतर इकट्ठा करते रहने से धन,
विद्या और धर्म की प्राप्ति होती है। ।।

अर्थात विद्या कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसे गुरु अपने हाथो से आपके हाथों में दे दे। यहां तक कि गुरु चाह कर भी ऐसा नही कर सकते। विद्या प्राप्त करने के लिए निरंतर अध्ययन करना होता है। जिस प्रकार डॉक्टर के द्वारा दी गई दवा को उसके डोज के अनुसार खाना चाहिए क्योंकि अगर सारी दवा एक साथ ले लेंगे तो दवा फायदा करने कि बजाय नुकसान कर देगी। उसी तरह ज्ञान को धीरे  एकत्र करना चाहिए इससे ज्ञान स्थाई होता है।

विद्या आसान वस्तु नहीं है इसके लिए कई चीजों को त्याग करना होता है। आचार्य ने कहा है कि विद्यार्थी को 8 चीजों को परित्याग कर देना चाहिए।

चाणक्य नीति के अध्याय 11 श्लोक 10 के अनुसार विद्यार्थी के लिए आवश्यक है  वह काम, क्रोध, लोभ, स्वादिष्ट पदार्थों की ईच्छा,
श्रृंगार, खेल-तमाशे, अधिक सोना और चापलूसी करना आदि इन 8 चीजों का परित्याग कर दे।।

अर्थात आचार्य चाणक्य के अनुसार विद्यार्थी को इन 8 चीजों का परित्याग कर देना चाहिए ये चीजे विद्यार्थी का मन को एकाग्रचित होने नही देती।
1. काम भावना, अर्थात विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण
2. क्रोध 
3. लोभ
4. स्वादिष्ट भोजन की इच्छा
5. श्रृंगार
6. खेल तमाशे
7. अधिक सोना
8. चापलूसी करना

ये विषय बहुत बड़े है अगर इनपर विस्तार से चर्चा करेंगे तो वीडियो बहुत बड़ी हो जाएगी। अगर इस श्लोक पर विस्तृत वीडियो चाहिए तो कमेंट कीजियेगा ।

साथियों मैंने वीडियो के प्रारंभ में स्कूली शिक्षा के गुरुओं के साथ साथ अन्य गुरुओं को भी प्रणाम किया था। आचार्य चाणक्य उन अन्य गुरुओं में सामिल है जो अपनी पुस्तक के माध्यम से मेरा मार्ग दर्शन कर रहे है। इसीलिए शिक्षक दिवस के अवसर पर अपनी वीडियो के माध्यम से इस महान गुरु की चरण वंदना कर रहा हू। धन्यवाद






साथियों, सबसे पहले आप सभी को शिक्षक दिवस एवम भारत के पहले उपराष्ट्रपति और शिक्षाविद सर्व पल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। एक गुरु के बारे में मैं क्या बताऊं जिसके ऊपर लाखो पुस्तके लिखी जा चुकी है। इसीलिए एक गुरु और एक शिक्षक के बारे में उस व्यक्ति की पुस्तक से जानते जो swam me एक महान शिक्षक और एक महान गुरु है। आइए जानते है कि आचार्य चाणक्य ने अपनी पुस्तक चाणक्य नीति में गुरु की महिमा के बारे में क्या लिखा है। 

नमस्कार साथियों,आपका स्वागत है गुरूंजी की क्लास life Lessons by Guruji में,गुरु जी की क्लास में आपको जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए अनमोल ज्ञान दिया जाता है। इस अनमोल ज्ञान को ढूंढने के लिए हमारी टीम बहुत मेहनत करती है इसीलिए video को लाइक और शेयर कर हमारी टीम का मनोबल बढ़ाए। 
महत्वपूर्ण बात यह हैं कि वीडियो को आधा अधूरा छोड़ कर न जाए क्योंकि आधा अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है आधे अधूरे ज्ञान के कारण ही वीर अभिमन्यु चक्रव्यूह में फंस गया था। अंत में गुरु जी की क्लास में पहली बार आए है तो चैनल को सब्सक्राइब कर दे। ताकि आपसे कभी क्लास मिस न हो। तो चलिए वीडियो शुरू करते है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 17 श्लोक 1 के अनुसार  जिन व्यक्तियों ने गुरु के पास बैठ कर शिक्षा प्राप्त नहीं की है बल्कि पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त किया है। वह व्यक्ति विद्वान लोगो की सभा में उसी तरह  सम्मान नही होता। जिस प्रकार अनैतिक संबंधों से गर्भ धारण करने वाली स्त्री का समाज में सम्मान नही प्राप्त होता है।   

आचार्य ने शिक्षक के बिना किताबी ज्ञान को अधूरा माना है आचार्य का  मानना है कि गुरु के समीप रह कर ही योग्य  शिक्षा पाई जा सकती है। आचार्य का  मानना है कि पुस्तक में कई बाते ऐसी होती है जो शिष्य को समझ में नहीं आती तो गुरु तुरंत उस बात को शिष्य को समझा  है कर शिष्य की शंका का समाधान कर देता है। यही कारण है कि शिष्य को जो ज्ञान गुरु से प्राप्त होता है वह अपने आप सम्पूर्ण होता है।  

 बिना गुरु के प्राप्त ज्ञान आधा अधूरा रहता है। और आधा अधूरा ज्ञान समाज के लिए खतरनाक होता है। ऐसे व्यक्ति समाज में उपहास का पात्र बनते है और अपने ज्ञान का अपमान करवाते है।

आचार्य चाणक्य खुद तकशीला विश्विद्यालय के नियमित शिक्षक रहे है। इसीलिए आचार्य विद्यालय की शिक्षा का महत्व जानते है। अपनी पुस्तक में आचार्य ने अन्य प्रकार के गुरु के बारे में बताया  है।

चाणक्य नीति के अध्याय 15 श्लोक 2 के अनुसार जो गुरु अपने शिष्य को एक अक्षर का ज्ञान करवा देता है उस गुरु के ऋण से शिष्य कभी मुक्त नहीं हो पाते। संसार में ऐसा कोई पदार्थ नहीं है जिसे शिष्य गुरु को समर्पित करके अपने ऋण से मुक्त हो सके।  

आचार्य ने अपने श्लोक में एक अक्षर ज्ञान के महिमा का बखान किया है। लेकिन एक अक्षर के ज्ञान के बारे में न तो चाणक्य नीति न ही किसी अन्य पुस्तक में कुछ लिखा है। एक अक्षर ज्ञान के बारे में 2 मत है।

पहला मत एक अक्षर अर्थात ॐ। ॐ को स्वम् परमेश्वर माना गया है। और जो गुरु परमेश्वर का ज्ञान करवा दे आखिर कोई उसके ऋण से कैसे मुक्त हो सकता है। ऐसे गुरु के बारे में कबीर दास जी लिखते है 

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।

अर्थात जो गुरु आपको परमेश्वर का ज्ञान करा दे वह स्वम परमेश्वर से बड़ा हो गया। कोई ऐसे गुरु ऋण नहीं चुका सकता है।

दूसरे मत एक अक्षर अर्थात वर्णमाला ज्ञान - आपको याद है कि आपको क से कबूतर किसने पढ़ाया था। याद कीजिए याद आया,  हा आपकी मां ने। मां जिसे दुनिया , पहला गुरु मानती है।  मां और पिता की महानता के बारे में में मैं क्या बताऊं। यह बात सबको पता है। क्या कोई इस जीवन में अपने मां और पिता के ऋण से मुक्त हो सकता है।

आचार्य में अपनी पुस्तक में चाणक्य नीति में लिखा है कि ऐसे माता पिता अपने बच्चो के शत्रु है जो बच्चो को अच्छी शिक्षा नही देते। 

कई लोग अज्ञानता वश शिक्षक और गुरु दोनो को एक ही मान लेते है। शिक्षक आपको नियमित शिक्षा देता है। जैसे आपके विद्यालय के शिक्षक। लेकिन गुरु आपको सांसारिक समस्या से मुक्ति का रास्ता दिखाता है। जैसे की मैं। सॉरी सॉरी सॉरी जैसे कि मैं जिन पुस्तकों के माध्यम से आपको सांसारिक समस्या से मुक्ति का मार्ग बताता हूं। इसीलिए पुस्तके भी आपकी गुरु हुई।

अंत में संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिसे देकर आप अपने गुरु के ऋण से मुक्त हो सके। गुरु को गुरु दक्षिणा में सम्मान दीजिए यही गुरु के लिए सच्ची गुरु दक्षिणा है।