Recents in Beach

महत्मा विदुर का जीवन परिचय

नमस्कार साथियों, आपका स्वागत है आपके अपने चैनल पर, इस चैनल पर हम life Lessons के माध्यम से अपने जीवन को सफल और सुगम बनाने का प्रयास करते है। इस चैनल पर हम अपने जीवन को सफल और सुगम बनाने वाले विषय पर चर्चा करते है और यह सीखते है कि कैसे हम चर्चित विषय को अपने जीवन में सामिल कर अपने जीवन को सफल बना सकते है। 

साथियों हमें अपने आपको गौरांवित महसूस करना चाहिए क्योंकि हमने भारत वर्ष जैसे पावन भूमि में जन्म लिया है, इस रत्नगर्भा  धरती ने न जाने कितने महापुरुषों महात्माओं को जन्म दिया है जिन्होंने ऐसे ग्रंथ लिखे है ऐसी नीतियां बनाई है जिसका एक अंश मात्र भी मानव अपने जीवन में उपयोग कर ले तो उसकी  जीवन यात्रा सफल और सुगम हो जायेगी।

इस संदर्भ में आज से हम महात्मा विदुर की नीतियों पर चर्चा करेंगे। हमें आशा ही नहीं बल्कि पूरा विश्वास है कि आप मेरी इस वीडियो सीरीज को वैसे ही प्यार देंगे जैसे आपने चाणक्य नीति और भगवद गीता को दिया है। किसी की  नीति जानने से पहले हमे उस महापुरुष का परिचय अवश्य जान लेना चाहिए। इसीलिए आज की वीडियो सीरीज में हम महात्मा विदुर का परिचय जानेंगे। मुझे पता है कि हम में 90% लोग महात्मा विदुर से परिचित होंगे फिर भी अपनी तरफ से मैं भी थोड़ा परिचय दे दे रहा हु, इस वीडियो में आपको कुछ तो ऐसा मिलेगा जिसे आप पहले से नही जानते होंगे तो आइए आज की वीडियो प्रारंभ करते है।

महात्मा विदुर कौरवों और पांडवों के काका और धृतराष्ट्र एवं पांडु के भाई थे। उन्हें धर्मराज का अवतार भी माना जाता है। इसके लिए एक कहानी प्रचलित है, मांडव्य ऋषि ने धर्मराज को श्राप दे दिया था इसी कारण वे सौ वर्ष पर्यंत शूद्र बनकर रहे। एक समय एक राजा के दूतों ने मांडव्य ऋषि के आश्रम पर कुछ चोरों को पकड़ा। दूतों ने चोरों के साथ मांडव्य ऋषि को भी चोर समझकर पकड़ लिया। राजा ने चोरों को शूली पर चढ़ाने की आज्ञा दी। उन चोरों के साथ मांडव्य ऋषि को भी शूली पर चढ़ा दिया गया, किंतु इस बात का पता लगते ही कि वे चोर नहीं हैं, बल्कि ऋषि हैं, राजा ने उन्हें शूली से उतरवा कर अपने अपराध के लिए क्षमा माँगी। मांडव्य ऋषि ने धर्मराज के पास पहुँचकर प्रश्न किया कि ‘‘तुमने मुझे मेरे किस पाप के कारण शूली पर चढ़वाया?’’

धर्मराज ने कहा कि ‘‘आपने बचपन में एक टिड्डे को काँटे से छेदा था, इसी पाप में आप को यह दंड मिला।’’ ऋषि बोले, ‘‘वह कार्य मैंने अज्ञानवश किया था और तुमने अज्ञानवश किए गए कार्य का इतना कठोर दंड देकर अपराध किया है। अतः तुम इसी कारण से सौ वर्ष तक शूद्र योनि में जन्म लेकर मृत्युलोक में रहो।’’ मुनि के शाप के कारण ही धर्मराज को विदुर का अवतार लेना पड़ा था।

धर्मराज के पृथ्वी पर जन्म लेने की कथा भी बहुत विचित्र है महाभारत के समय जब हस्तिनापुर के शासक अयोग्य हो गए और किसी भी संतान को जन्म नही दे पाए इस पर माता सत्यवती ने भीष्म से आग्रह किया कि वह अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दे लेकिन भीष्म नही माने। फिर सत्यवती ने अपने पुत्र वेद व्यास से इस समस्या का उपाय करने को कहा। वेद व्यास के कारण रानियों के दो पुत्र धृतराष्ट्र और पांडू और दासी से पुत्र विदुर का जन्म हुआ। 

अन्य रानी पुत्रो की तरह विदुर की भी शिक्षा दीक्षा भीष्म पितामह ने की। महात्मा विदुर जन्म से ही बहुत कुशाग्र और नीति के जानकार थे। इसी कारण उनके समय में हस्तिनापुर का शासक कोई भी रहा हो चाहे वह पांडू हो, धृतराष्ट्र हो या महाभारत युद्ध के पश्चात युधिष्ठिर सबके प्रधान मंत्री हमेशा विदुर रहे।

अंत समय में महात्मा विदुर धृतराष्ट्र गांधारी और कुंती के साथ हिमालय की ओर तपस्या करने चले गए। वही पर कई वर्षो की तपस्या के बाद परलोक सिधार गए।

नीति की प्रसिद्ध पुस्तक ‘विदुर नीति’  इन्हीं की रचित मानी जाती है, जो महाभारत के पाँचवें पर्व में 33वें अध्याय से 40वें अध्याय तक है। 

महात्मा विदुर अपनी कुशाग्र बुद्धि से जो होने वाला है उसका आभास कर लेते थे चाहे वह लक्षग्रह कांड हो या द्रोपदी का चीर हरण का परिणाम महाभारत का युद्ध हो, इन्होंने हमेशा सही नीति से सबको सही और सच्ची राह बताई।

इन्होंने धृतराष्ट्र को  दुर्योधन का परित्याग कर देने की सलाह देते हुए धृतराष्ट्र को वह ज्ञान दिया जो भारत के राजनीति शात्र का बड़ा ही लोकप्रिय कथन बन गया है- एक व्यक्ति का बलिदान देकर भी कुल को बचाना चाहिए, कुल का बलिदान देकर भी ग्राम को बचाना चाहिए, ग्राम की बलि चढ़ाकर भी राज्य बचा लेना चाहिए, और खुद को बचाने के लिए राज्य का भी बलिदान कर देना चाहिए, पर धृतराष्ट्र ने दुर्योधन नामक एक व्यक्ति का बलिदान नहीं किया और अंततः उसे राज्य से हाथ धोना पड़ा।

 विदुर के इन्हीं महान् नीतिवाक्यों और कार्यों के कारण वेद व्यास ने उन्हें अपने ग्रंथ महाभारत में बार बार  महात्मा विदुर कहा है। 

ये था महात्मा विदुर का संक्षिप्त परिचय आगे की वीडियो में हम विदुर नीति पर चर्चा करेंगे। इसके लिए अगर आप चैनल पर पहली बार आए है तो चैनल को सब्सक्राइब कर लीजिए। वीडियो को।लाइक कर दीजिए जिसमे हम ऐसी वीडियो लाने के प्रोत्साहित हो, कोई सलाह और सुझाव हो तो कमेंट अवश्य कीजिए। आपका ak ak comment hamare liye amuly hai




नमस्कार साथियों, आज हम विदुर नीति की 5 अतिमहत्वपूर्ण नीतियो पर चर्चा करेंगे, इन नीतियों से आप जान पाएंगे कि वास्तव में विदुर नीति हमारे लिए इतनी महत्वपूर्ण क्यों है। तो आइए आज की चर्चा प्रारंभ करते है।

1. महात्मा विदुर कहते हैं कि जो अपने स्वभाव के विपरीत कार्य करते हैं वह कभी नहीं शोभा पाते। 

अर्थात व्यक्ति को अपने स्वभाव के विपरीत कभी भी कोई कार्य नहीं करना चाहिए, अगर कोई व्यक्ति अपने स्वभाव के विपरीत कोई कार्य करता है तो न तो सही तरह से कार्य ही होता है और न ही व्यक्ति को कार्य करने का सुख ही मिल पाता है बल्कि उस काम को व्यक्ति एक बोझ की तरह करता है।

2.महात्मा विदुर के अनुसार  गृहस्थ होकर अकर्मण्यता और संन्यासी होते हुए विषयासक्ति का प्रदर्शन करना सही नहीं है। 

 जो व्यक्ति सामाजिक जीवन में हो अर्थात जिस व्यक्ति का अपना परिवार हो, तो  ऐसे में उस व्यक्ति के परिवार और समाज के प्रति बहुत से दायित्व होते है ऐसे में व्यक्ति का संन्यास से संबंधित कोई कार्य करना किसी भी तरह से उचित नही है।  इसितरह जो व्यक्ति संन्यासी होते है इनका किसी भी सांसारिक आकर्षण के  प्रति आकर्षित होना सही नही है। अगर सन्यासी मोह माया में फसेंगे तो ठीक से भक्ति नही कर पाएंगे। अर्थात मनुष्य जिस सामाजिक अवस्था में है उसका पालन उसी के अनुसार करे अपने सामाजिक मार्ग से भटकना न तो उनके लिए उचित है और न ही समाज के लिए।

3. महात्मा विदुर के अनुसार अल्पमात्र में धन होते हुए भी कीमती वस्तु को पाने की कामना और शक्तिहीन होते हुए भी क्रोध करना मनुष्य की देह के लिये कष्टदायक और काँटों के समान है। 

अर्थात अगर किसी व्यक्ति के पास अधिक पैसा नही है तो ऐसे में उसे व्यक्ति को कीमती वस्तुओं की कामना नहीं करनी चाहिए और शक्तिहीन व्यक्तियों को कभी क्रोध नहीं करना चाहिए। वैसे क्रोध करना तो किसी तरह से भी उचित नहीं है। कीमती वस्तुओं की कामना और क्रोध ये दोनो शरीर के लिए हानिकारक है। क्योंकि ऐसा करने से मन में चिंता और कुढन पैदा होती है जिससे शरीर अंदर ही अंदर ही गलने लगता है।

4. महात्मा विदुर के अनुसार किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले यह आत्ममंथन करना चाहिए कि हम उसके लिये या वह हमारे लिये उपयुक्त है कि नहीं। अपनी शक्ति से अधिक का कार्य और कोई वस्तु पाने की कामना करना स्वयं के लिये ही कष्टदायी होता है। 

 अंग्रेजी में कहावत है वेल बिगेन इस हॉफ done अर्थात कोई भी अगर पूरी तरह से आत्म मंथन करके किया जाए तो सफलता के मौके बढ़ जाते है। जबकि बिना आत्म मंथन किए कोई कार्य प्रारंभ किया और वह काम आपकी शक्ति से अधिक का है तो वह कार्य  बहुत कष्ट दाई होता है। और अधिकांशतः कार्य पूर्ण भी नही हो पाते।


5. महात्मा विदुर के अनुसार व्यक्ति को न केवल अपनी शक्ति का, बल्कि अपने स्वभाव का भी अवलोकन करना चाहिए। 

अर्थात अनेक लोग क्रोध करने पर स्वतः ही काँपने लगते हैं तो अनेक लोग निराश होने पर मानसिक संताप का शिकार होते हैं। अतः इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे जिस मानसिक भाव का बोझ हमारी यह देह नहीं उठा पाती उसे अपने मन में ही न आने दें।

 कहने का तात्पर्य यह है कि जब हम कोई काम या कामना करते हैं तो उस समय हमें अपनी आर्थिक, मानसिक और सामाजिक स्थिति का भी अवलोकन करना चाहिए। 

 कभी-कभी गुस्से या प्रसन्नता के कारण हमारा रक्त प्रवाह तीव्र हो जाता है और हम अपने मूल स्वभाव के विपरीत कोई कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं और जिसका हमें बाद में दुख भी होता है। इसलिए विशेष अवसरों पर आत्ममुग्ध होने की बजाय आत्मचिंतन करते हुए कार्य करना चाहिए। 

साथियों अब आपको भी  लग रहा होगा दुर्भाग्य से  भगवद गीता के आगे विदुर नीति को बहुत कमतर माना गया गया है। जबकि विदुर नीति भी किसी भी मामले में कमतर नहीं है। आज हमने विदुर नीति पर जो चर्चा की है वह एक सैंपल मात्र है सिर्फ यह बताने के लिए कि आगे आने वाली वीडियो में कितना कुछ ज्ञान हमे मिलने वाला है। इसीलिए सब्क्राइब करके हमारे साथ जुड़े रहिए और मिलने वाला ज्ञान का लाभ लीजिए।

धन्यवाद