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धन नीति


सबसे पहले हम जानते है कि धन संपत्ति का हमारे लिए क्या महत्व है।वैसे तो धन का हमारे जीवन में क्या महत्व है यह बात किसी को भी बताने की जरूरत नहीं है। आजकल  हमारा स्टेटस धन संपत्ति पर बहुत निर्भर करता है। धन संपत्ति से हमारा समाज हमे कई  स्टेटस में बाटता हैं जैसे उच्च अमीर वर्ग, मध्यम वर्ग, निम्न वर्ग और गरीबी रेखा के नीचे वाला वर्ग। अर्थात सीधे सीधे कहे तो  धन सम्पत्ति ही हमारी पहचान  है।  धन  से ही दुनिया है एक बार धन खत्म हुआ तो सब रिस्तेदारिया खत्म हो जाती है, और जब धन वापस आ जाता है तब सारी रिश्तेदारियां फिर से जुड़ जाती है। जैसा कि आचार्य ने इस श्लोक में बताया है।

अध्याय 15 श्लोक 5 के अनुसार जब मनुष्य के पास धन नही रहता तो उसके मित्र, स्त्री, नौकर-चाकर और भाई-बंधु सब उसे छोड़ कर चले जाते है। यदि उसके पास फिर से धन- वापस आ जाए तो वे फिर उसका आश्रय ले लेते है। संसार में धन ही मनुष्य का सबसे बड़ा बंधु है।

इस श्लोक से पता चलता में आता है कि धन का हमारे जीवन में क्या महत्व है। लोग धन के महत्त्व को जानने के बाद अलग अलग कई तरीकों से धन की इच्छा करने लगते है। आचार्य ने बताया है कि धन की इच्छा ईस प्रकार करनी चाहिए।

चाणक्य नीति के अध्याय 8 श्लोक 1 के अनुसार जो लोग संसार में केवल धन की इच्छा करते है वे अधम अथवा नीच कोटि के होते है। मध्यम श्रेणी के लोग धन और सम्मान दोनो की इच्छा करते है जबकि उत्तम श्रेणी के मनुष्य को केवल आदर और सम्मान चाहिए होता है।

चाणक्य के अनुसार धन की इच्छा करने वाले लोगो को तीन भागों में बांटा जा सकता है। 

नीच कोटि के लोग - चाणक्य के अनुसार जो।लोग सिर्फ धन की कामना करते है वो अत्यंत नीच कोटि के होते है। ऐसे लोग भोग विलास के लिए धन की इच्छा करते है और ये लोग धन की प्राप्ति के लिए कोई भी कार्य कर सकते है। चाहे वो कार्य अनैतिक और दुसरो को नुकसान पहुंचाने वाला ही क्यों न हो। अतः ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए। ऐसे लोग मौका मिलते ही आपको भी हानि पहुंचा सकते है।

उत्तम कोटि के लोग - चाणक्य के अनुसार जो लोग सिर्फ सम्मान की कामना करते है ऐसे लोग धन सिर्फ आवश्यक कार्यों के लिए चाहते है। इसके लिए सिर्फ नैतिकता के साथ परिश्रम करके धन कमाते है। ऐसे लोगो के द्वारा कमाया गया धन पवित्र होता है और जन कल्याण के कार्यों में लगता है। अतः ऐसे लोगो से साथ रहने से आपका भीं कल्याण हो जायेगा।

मध्यम कोटि के लोग - मध्यम कोटि के लोग धन और सम्मान दोनो की कामना करते है। या कहे कि ये लोग धन की कामना करते है लेकिन इनमें अनैतिक कार्यों को करने का साहस नहीं होता है। समाज में ऐसे लोग बहुतायत की संख्या में है। ऐसे लोगों को चाहिए कि सिर्फ सम्मान की कामना करे। अनैतिक कार्य तो ऐसे भी यह लोग कभी भी नही कर पाएंगे।

अतः चाणक्य नीति के अनुसार आपको केवल अनैतिक साधनों और दुसरो को नुकसान पहुंचा कर धन की इच्छा त्याग देनी चाहिए बल्कि हमे सम्मान सहित जीवन की इच्छा करनी चाहिए।  क्योंकि अनैतिक साधनों से कमाया गया पैसा दुख ही देता है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 16 श्लोक 11 के अनुसार जो धन दूसरो को हानि और पीड़ा पहुचाकर, धर्म विरुद्ध कार्य करके, शत्रु के सामने गिड़गिड़ा कर प्राप्त होता है वह धन मुझे नहीं चाहिए। ऐसा धन मेरे पास न आए तो अच्छा है।

आचार्य चाणक्य ने हमे इन  साधनों से धन कमाने से मना किया है
1 . दूसरो को हानि पहुंचा कर- जो धन दूसरो को मारकर देकर, घायल कर , छीन कर कमाया जाता है ।

2. दूसरो को पीड़ा पहुंचा कर - हमेशा खुशी मन से धन लेना और देना चाहिए। चाणक्य के अनुसार जिन धन को देने में देने वाले का मन दुखी हो ऐसा धन नहीं लेना चाहिए। जैसे जूए में जीता गया धन, रिश्वत से कमाया गया धन , घोटाले से कमाया गया धन, इत्यादि

3. धर्म विरुद्ध कार्य करके - अब हमे  पहले यह जानना होगा कि धर्म क्या है। तभी तो हम जान पाएंगे कि धर्म विरुद्ध कार्य कौन से होते है। वैसे चाणक्य नीति में धर्म क्या है इसकी जानकारी नहीं दी है । धर्म को जानने के लिए  हमे एक अन्य पुस्तक से मदद लेनी होगी जिसका नाम है भगवद गीता। भगवद  गीता के अनुसार धर्म से आशय है कि जो धारण करने योग्य हो। अर्थात ऐसा आचरण जिसे आप लिए चाहते है। और दुसरो को भीं समस्या न हो। अतः चाणक्य नीति के अनुसार आपको ऐसे पैसे कमाना चाहिए जिससे किसी अन्य को समस्या न हो।

4. शत्रु के सामने गिड़गिड़ा कर - चाणक्य ने शत्रु के सामने गिड़गिड़ा  कर  धन कमाने से मना किया है। वास्तव में हमे किसी के भी आगे याचना कर या भीख मांग कर धन नहीं कमाना चाहिए। 

हमे परिश्रम करके ईमानदारी से धन कमाना चाहिए। परिश्रम से कमाया गया धन कई पीढ़ियों  तक साथ रहता है।  धन कमाने के बाद कुछ धन को समाज सेवा के लिए दान भी करना चाहिए। दान करने से धन घटता नही बल्कि बढ़ता है। 

अध्याय 17 श्लोक 14 के अनुसार जिन सज्जन लोगो के दिल में दूसरो का उपकार करने की भावना जाग्रत रहती है, उनकी विपत्तियां नष्ट हो जाती है और पग-पग पर उन्हें धन संपत्ति की प्राप्त होती है।

चाणक्य नीति के अनुसार जो व्यक्ति ईमानदारी से परिश्रम करते है और अन्य व्यक्तियों के प्रति उपकार की भावना रखते है। जरूरत मंद की सामर्थ्य अनुसार मदद करते है। उन्हे पग पग पर धन संपत्ति प्राप्त होती है उनकी विपत्तियां नष्ट हो जाती है। जिससे वह व्यक्ति कभी दरिद्र नही हो सकता है। 

अब प्रश्न उठता है कि व्यक्ति के पास कितना पैसा चाहिए। इसके लिए हम आचार्य चाणक्य की नीति अलग हटकर कबीर की अमृत वाणी पर चर्चा करते है। कबीर कहते है कि 

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय । मैं भी भूखा न रहूँ साधु ना भूखा जाय ।। 

अर्थात कबीर दास जी भगवान से कहते है कि भगवान आप मुझे केवल इतना दीजिये कि जिसमे मेरे और मेरे परिवार की गुजर बसर हो जाये। और मेरे घर में आने वाले साधु और महमान भी भूखे न जाए। 

अर्थात हमे पूरी परिश्रम और ईमानदारी से धन कमाना चाहिए। धन कमांतें समय अपने लिए सम्मान की भावना रखनी इससे अगर कहीं आपके मन में कोई अनैतिक काम से धन कमाने की इच्छा आ भी रही होगी तो वह खतम हो जायेगी।  क्योंकि आचार्य कहते है। 


चाणक्य नीति के अध्याय 3 श्लोक 21 के अनुसार जहा मूर्खो की पूजा नही होती, जहा अन्न आदि काफी मात्रा में इकट्ठे रहते है। जहां पति पत्नी में किसी प्रकार का कलह नही होता है। ऐसे स्थान पर माता लक्ष्मी स्वयं आकर निवास करने लगती है।

चाणक्य के अनुसार अगर आप चाहते है कि मां लक्ष्मी आपके घर में निवास करे तो 3 बातो का ध्यान रखे। 

1.  जहां मूर्खो की पूजा नही होती अर्थात जिस जगह का मुखिया मूर्ख नहीं व्यक्ति होता है चाहे वह आपका घर हो व्यापार हो या देश या राज्य हो।  अतः हमे अपने परिवार, राज्य और देश का मुखिया बहुत सोच समझ कर चुनना चाहिए।

2. जहा अन्न आदि काफी मात्रा में इकट्ठे रहते हो, अर्थात जहां आपत्ति काल अर्थात एमरजेंसी का ध्यान रख कर धन और अन्न आदि काफी मात्रा जमा किया जाता है।  इसीलिए आपत्ति काल के लिए एमरजेंसी फंड अवश्य बनाए। क्याकि एमरजेंसी कभी बताकर नही आती।

3. जहा पति और पत्नी के बीच कलह नही होता हैं। यह सबसे अधिक अनिवार्य विषय है जिस घर में आपस में कलह नही होता है। परिवार के  लोगो के बीच में शांति होती है। वहा मां लक्ष्मी निवास करती है। अतः अपने परिवार में होने वाले मतभेदों को दूर कर परिवार में शांति बनाना चाहिए।

धन्यवाद




नमस्कार साथियों, आपका स्वागत है Life Lessons के माध्यम से अपने जीवन यात्रा को  सफल और सुगम बनाने वाले अपने अभियान में।आज की चर्चा सुरु करे उससे पहले आप सभी को दीपावली उत्सव की हार्दिक सुभकमनाए। मां लक्ष्मी और भगवान गणेश आपके परिवार को सुख और समृद्धि प्रदान करे। हम दीपावली उत्सव पर अपने परिवार की सुख और समृद्धि के लिए मां लक्ष्मी को अपने निवास पर आमंत्रित करते है।   इसीलिए हमारा आज  चर्चा का विषय है कि आचार्य चाणक्य ने मां लक्ष्मी को आमंत्रित करने के लिए कोन कोन सी नीतियां बनाई है साथियों आज का विषय बहुत महतवपूर्ण है इसीलिए वीडियो थोड़ी लम्बी हो सकती है इसीलिए जब आपके पास समय हों तभी विडियो देखे वीडियो को अधूरा न छोड़े क्योंकि आधा अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है। तो चलिए आज की चर्चा शुरू करते है।

 आचार्य चाणक्य के अर्थशास्त्र के विषय में जानकारी की बात करे। आचार्य चाणक्य ने अपनी योग्यता और नीतियों के बल पर चंद्रगुप्त मौर्य को मगध का सम्राट बनाकर खुद मगध के प्रधान मंत्री बने । इन्ही नीतियों के बल पर संपूर्ण भारत को एक किया और मगध को सबसे शक्तिशाली और समर्द्ध राज्य बना दिया।   चाणक्य ने विश्वप्रसिद्ध पुस्तक अर्थशास्त्र लिखी है।  जब चाणक्य की नीतियों का पालन कर मगध सबसे शक्तिशाली और धनवान राज्य बन सकता है तो उन नीतियों का पालन कर हम भी शक्तिशाली और धनवान बन सकते है। इसीलिए चाणक्य नीति का पालन कर अपने जीवन को सफल बनाएं। आइए देखते है कि चाणक्य नीति में मां लक्ष्मी के सम्मान में क्या कहा है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 10 श्लोक 14 के अनुसार  कमला देवी अर्थात लक्ष्मी जिसकी माता है और सर्वव्यापक श्री विष्णु जिसके पिता है प्रभु के भक्त जिसके भाई बंधु है ऐसे पुरुष के लिए तीनो लोक अपने देश के समान है।

हमारे समाज में मां लक्ष्मी को सुख, शांति समृद्धि धन और वैभव की देवी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जिस व्यक्ति को देवी।लक्ष्मी।का आशीर्वाद प्राप्त होता है  वह व्यक्ति सुख शांति धन वैभव के साथ समाज में सम्मान पाता है। चाणक्य नीति के अनुसार जिसकी मां लक्ष्मी हो पिता भगवान विष्णु हो और जो भक्तो के संगति में रहता है उस  व्यक्ति को पूरी दुनिया में कहीं भी दिक्कत नही हो सकती है।  

इसीलिए आचार्य चाणक्य मां लक्ष्मी को अपने निवास में हमेशा के।लिए बनाए रखने के लिए कहा है। और बताया है कि ये कार्य करने पर मां लक्ष्मी त्याग कर चली जाती है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 15 श्लोक 4 के अनुसार  गंदे कपड़े पहनने वाले , दांतो की सफाई न करने वाले अधिक भोजन करने वाले  कठोर वचन बोलने वाले सूर्य उदय और सूर्यास्त के समय सोने वाले व्यक्ति को लक्ष्मी, स्वास्थ्य सौंदर्य और शोभा त्याग देती है भले ही वह विष्णु क्यों न हो।

 मां लक्ष्मी को अपने निवास में रोक कर रखने के लिए लोग कई तरह के प्रयास करते है लेकिन उनके सभी प्रयास व्यर्थ हो जाते है। और मां लक्ष्मी त्याग कर चली जाती है।  आचार्य चाणक्य ने इसका कारण बताया  कि मां लक्ष्मी ऐसे लोगो को त्याग देती है जो ये कार्य करता है।

जो लोग गंदे कपड़े पहनते है, अपनी और अपने निवास की सफाई नही करते। अर्थात ऐसे लोग अपनी सफाई के प्रति बिलकुल भी जागरूक नहीं रहते है। खुद भी गंदे बने रहते है और अपने निवास को भी गंदा रखते है। ऐसे जगह को मां लक्ष्मी त्याग देती है।

जो लोग आवश्यकता से अधिक भोजन करते है और ऐसे लोग परिश्रमी नहीं होते है। अधिक भोजन और कम परिश्रम से ऐसे लोगो का स्वास्थ्य खराब रहता है। ऐसे लोग अपने परिवार पर बोझ बनते है।  ऐसे लोगो को मां लक्ष्मी त्याग देती है। 

जो लोग दूसरे लोगो को कठोर वचन बोलते रहते  है।  कहा जाता है कि व्यापार में बोली ही हमारा धन है अगर आप लोगो से अपशब्द बोलेंगे तो लोग आपसे संबंध तोड़ लेंगे और आपका व्यापार बंद हो जायेगा। फिर मां लक्ष्मी आपको त्याग देगी। आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में बताया है कि हमे लोगो से कैसे बात करनी है इसके बारे में हम आगे आने वाली वीडियो में चर्चा करेंगे अभी अपने विषय पर बने रहते है।

सूर्य उदय और सूर्यास्त के समय सोने वाले व्यक्ति । अर्थात ऐसे लोगो का कोई निश्चित शेड्यूल नहीं होता है। बिना शेड्यूल के ऐसे लोगो का सारा काम बिखरा हुआ होता है। और कोई भी काम पूरा नहीं होता है। ऐसे लोगो को मां लक्ष्मी त्याग देती है। 

 इसके अलावा आचार्य चाणक्य ने बताया है कि कुछ काम ऐसे होते है जिन्हे करने से मां लक्ष्मी हमेशा के लिया आपके घर में निवास करने लगती है।

चाणक्य नीति के अध्याय 3 श्लोक 21 के अनुसार जहा मूर्खो की पूजा नही होती, जहा अन्न आदि काफी मात्रा में इकट्ठे रहते है। जहां पति पत्नी में किसी प्रकार का कलह नही होता है। ऐसे स्थान पर माता लक्ष्मी स्वयं आकर निवास करने लगती है।

चाणक्य के अनुसार अगर आप चाहते है कि मां लक्ष्मी आपके घर में निवास करे तो 3 बातो का ध्यान रखे। 

1.  जहां मूर्खो की पूजा नही होती अर्थात जिस जगह का मुखिया मूर्ख नहीं व्यक्ति होता है चाहे वह आपका घर हो व्यापार हो या देश या राज्य हो।  अतः हमे अपने परिवार, राज्य और देश का मुखिया बहुत सोच समझ कर चुनना चाहिए।

2. जहा अन्न आदि काफी मात्रा में इकट्ठे रहते हो, अर्थात जहां आपत्ति काल अर्थात एमरजेंसी का ध्यान रख कर धन और अन्न आदि काफी मात्रा जमा किया जाता है।  इसीलिए आपत्ति काल के लिए एमरजेंसी फंड अवश्य बनाए। क्याकि एमरजेंसी कभी बताकर नही आती।

3. जहा पति और पत्नी के बीच कलह नही होता हैं। यह सबसे अधिक अनिवार्य विषय है जिस घर में आपस में कलह नही होता है। परिवार के  लोगो के बीच में शांति होती है। वहा मां लक्ष्मी निवास करती है। अतः अपने परिवार में होने वाले मतभेदों को दूर कर परिवार में शांति बनाना चाहिए।

अतः मां लक्ष्मी को अपने घर पर आमंत्रित करने से पहले यह अवश्य देख ले कि आप मां लक्मी को  निवास करने के लिए दी गई सभी बाते आपके निवास में हो।  तभी मां लक्ष्मी आपके घर में निवास करेंगी। मां लक्ष्मी जहा निवास करती है वहा धन सम्पदा बनी रहती है समाज में उस परिवार की प्रसिद्धि रहती है। अतः सुखी जीवन के लिए मां लक्ष्मी का आगमन बहुत जरूरी है। मां लक्ष्मी को अपने घर में निवास करवाने के लिए लोग न जाने कैसे कैसे टोटके करते है जबकि आचार्य चाणक्य ने इसके लिए बहुत ही आसान नीतियां बताई है है अतः वह सभी चाणक्य नीति का पालन करे जिससे मां लक्ष्मी आपके घर में निवास करे।

धन्यवाद



नमस्कार दोस्तो मैं हूं आपका दोस्त और गुरु मनोज, आपका स्वागत करता हु अपनीं क्लास life Lessons by Guruji में, इस क्लास में आपको जीवन में सफलता प्राप्त करने वाला महत्त्वपूर्ण ज्ञान दिया जाता है। जिसके लिए हमारी टीम बहुत मेहनत करती है इसीलिए video को लाइक और शेयर कर हमारी टीम का मनोबल बढ़ाए। 

अच्छा गुरु ही आपको जीवन का सच्चा ज्ञान दे सकता । इसीलिए गुरु जी की क्लास में पहली बार आए है तो subscribe वाली ghanti बजा कर अपना एनरोलमेंट करवा ले। क्लास को कभी भी बीच में छोड़ कर न जाय क्योंकि आधे अधूरे ज्ञान के कारण ही वीर अभिमन्यु चक्रव्यूह से निकल नही पाया था। 

पैसे का हमारे समाज में बहुत महत्व है। हमारा स्टेटस पैसे पर निर्भर करता है। जैसे उच्च अमीर वर्ग, मध्यम वर्ग, निम्न वर्ग और गरीबी रेखा के नीचे वाला वर्ग। अर्थात पैसा हमारी पहचान  है।  पैसा हमारा सबसे बड़ा बंधु है।

अध्याय 10 श्लोक 12 के अनुसार भले ही मनुष्य सिंह , बाघ और  नवरों के साथ जंगल में निवास करे, किसी पेड़ पर अपना घर बना ले, वृक्ष के पत्ते और फल खाकर नदी का पानी पीकर गुजारा करे कांटो की सैय्या पर सो ले, फटे पुराने वृक्ष के छाल के कपड़े पहन ले, परंतु अपने भाई बंधु के बीच में धन से रहित होकर जीवन न बिताए।  

अध्याय 7 श्लोक 15 के अनुसार संसार उसके सभी मित्र है उसी के सभी भाई बंधु और स्वजन होते है। धनवान व्यक्ति को श्रेष्ठ व्यक्ति माना जाता है। इस प्रकार वह आदरपूर्वक अपना जीवन बिताता है।

अध्याय 15 श्लोक 5 के अनुसार जब मनुष्य के पास धन नही रहता तो उसके मित्र, स्त्री, नौकर-चाकर और भाई-बंधु सब उसे छोड़ कर चले जाते है। यदि उसके पास फिर से धन- वापस आ जाए तो वे फिर उसका आश्रय ले लेते है। संसार में धन ही मनुष्य का सबसे बड़ा बंधु है।
पिछले वीडियो में हमने जाना की आचार्य ने धन के महत्व के बारे में क्या बताया है। आज की वीडियो में हम जानेंगे कि हमे धन की इच्छा किस प्रकार करनी चाहिए और धन की देवी कैसे लोगो को त्याग देती है। 


जब चाणक्य की नीतियों का पालन कर मगध सबसे शक्तिशाली और धनवान राज्य बन सकता है तो उन नीतियों का पालन कर हम भी शक्तिशाली और धनवान बन सकते है। इसीलिए चाणक्य नीति का पालन कर अपने जीवन को सफल बनाएं। 

लोग धन के महत्त्व को जानने के बाद धन की कामना करने लगते है। उन्हें यह जान लेना चाहिए कि धन की कामना कैसे करनी चाहिए।

चाणक्य नीति के अध्याय 8 श्लोक 1 के अनुसार जो लोग संसार में केवल धन की इच्छा करते है वे अधम अथवा नीच कोटि के होते है। मध्यम श्रेणी के लोग धन और सम्मान दोनो की इच्छा करते है जबकि उत्तम श्रेणी के मनुष्य को केवल आदर और सम्मान चाहिए होता है।

चाणक्य के अनुसार धन की इच्छा करने वाले लोगो को तीन भागों में बांटा है। 

नीच कोटि के लोग - चाणक्य के अनुसार जो।लोग सिर्फ धन की कामना करते है वो अत्यंत नीच कोटि के होते है। ऐसे लोग भोग विलास के लिए धन की कामना करते है और ये लोग धन की प्राप्ति के लिए कोई भी कार्य कर सकते है। चाहे वो कार्य अनैतिक ही क्यों न हो। अतः ऐसे लोगों से बच कर रहना चाहिए।

उत्तम कोटि के लोग - चाणक्य के अनुसार जो लोग सिर्फ सम्मान की कामना करते है ऐसे लोग धन सिर्फ आवश्यक कार्यों के लिए चाहते है। इसके लिए सिर्फ नैतिकता के साथ परिश्रम करके धन कमाते है। ऐसे लोगो के द्वारा कमाया गया धन पवित्र होता है और जन कल्याण के कार्यों में लगता है। अतः ऐसे लोगो से साथ रहने से आपका भीं कल्याण हो जायेगा।

मध्यम कोटि के लोग - मध्यम कोटि के लोग धन और सम्मान दोनो की कामना करते है। या कहे कि ये लोग धन की कामना करते है लेकिन इनमें अनैतिक कार्यों को करने का साहस नहीं होता है। समाज में ऐसे लोग बहुतायत की संख्या में है। ऐसे लोगों को चाहिए कि सिर्फ सम्मान की कामना करे। अनैतिक कार्य तो ऐसे लोग तो कभी भी नही कर पाएंगे।

शोभा त्याग देती है भले ही वह व्यक्ति भगवान विष्णु क्यों न हो। 

हमारे समाज के धन और वैभव की देवी लक्ष्मी को माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जिस व्यक्ति को देवी।लक्ष्मी।का आशीर्वाद प्राप्त होता है ऐसे लोगो को जीवन में सम्मान और धन दोनो की प्राप्ति होती है। देवी लक्ष्मी ऐसे लोगो को त्याग देती है। 

जो लोग गंदे कपड़े पहनते है, अपनी और अपने निवास की सफाई।नही करते। अधिक भोजन करते है। लोगो को अपशब्द।बोलते है। दिन रात सोते रहते है बिल्कुल भी परिश्रम नही करते। ऐसे लोगो का तो न तो धन मिलता है न हो सौंदर्य। 

ऐसे लोगो।का स्वास्थ्य भी खराब रहता है। जिस कारण ऐसे लोग अपने परिवार पर बोझ बनते है। और उनका भीं धन और सम्मान की हानि करवाते है। 

अतः चाणक्य नीति के अनुसार आपको धन की इच्छा त्याग कर सम्मान सहित जीवन की कामना करनी चाहिए। हमेशा खुद को और अपने आस पास को साफ सुथरा रखना चाहिए। जिससे आप स्वस्थ रहे और परिश्रम करके धन कमा सके। परिश्रम से कमाया गया धन कई।पीढ़ियों। तक साथ रहता है।




नमस्कार साथियों, 
पैसा कमाना हमारे लिए कितना महत्व पूर्ण हैं यह बात किसी बताने की जरूरत नहीं है। हर व्यक्ति पैसा कमाना चाहता है। जल्दी धन कमाने के लालच में  व्यक्ति कई बार गलत साधनों का भीं उपयोग करने से कतराता नही है और अपना नुकसान कर बैठता है। 

 आज हम जानेंगे कि आचार्य चाणक्य ने अपनी पुस्तक चाणक्य नीति में  किन साधनों से धन कमाने के लिए मना किया है। चाणक्य ने खुद अपने लिए भी इन साधनों से प्राप्त  धन को लेने से मना किया है। आइए देखते है कि वे कौन से साधन है 
 
Intro 

चाणक्य नीति के अध्याय 16 श्लोक 11 के अनुसार जो धन दूसरो को हानि और पीड़ा पहुचाकर, धर्म विरुद्ध कार्य करके, शत्रु के सामने गिड़गिड़ा कर प्राप्त होता है वह धन मुझे नहीं चाहिए। ऐसा धन मेरे पास न आए तो अच्छा है।
आचार्य चाणक्य ने हमे निम्न लिखित साधनों से धन कमाने से मना किया है
1 . दूसरो को हानि पहुंचा कर- जो धन दूसरो को मारकर देकर, घायल कर , छीन कर कमाया जाता है ।

2. दूसरो को पीड़ा पहुंचा कर - हमेशा खुशी।मन से धन लेना और देना चाहिए। चाणक्य के अनुसार जिन धन को देने में देने वाले का मन दुखी हो ऐसा धन नहीं लेना चाहिए। जैसे जूए में जीता गया धन, रिश्वत से कमाया गया धन , घोटाले से कमाया गया धन, इत्यादि

3. धर्म विरुद्ध कार्य करके - अब हमे  पहले यह जानना होगा कि धर्म क्या है। तभी तो हम जान पाएंगे कि धर्म विरुद्ध कार्य कौन से होते है। इसके लिए हमे एक अन्य पुस्तक से मदद लेनी होगी जिसका नाम है भगवद गीता।  

इसीलिए हम दो महान पुस्तक चाणक्य नीति और भगवद गीता को एक साथ लेकर चल रहे है ताकि आपको व्यवहारिक और आध्यात्मिक ज्ञान हो सके। चाणक्य नीति व्यवहारिक ज्ञान की महान पुस्तक है और भगवद गीता आध्यात्मिक ज्ञान की महान पुस्तक है।

धर्म के बारे में भगवद गीता में विस्तृत चर्चा की गई है इसीलिए यहां पर हम संक्षेप में बात करेंगे। भगवद गीता के अनुसार धर्म से आशय है कि जो धारण करने योग्य हो। अर्थात ऐसा आचरण जिसे आप लिए चाहते है। और दुसरो को भीं समस्या न हो। 
अतः चाणक्य नीति के अनुसार आपको ऐसे पैसे कमाना चाहिए जिससे किसी को समस्या न हो।

4. शत्रु के सामने गिड़गिड़ा कर - चाणक्य ने शत्रु के सामने गिड़गिड़ा  कर  धन कमाने से मना किया है। वास्तव में हमे किसी के भी आगे याचना कर या भीख मांग कर धन नहीं कमाना चाहिए। 

अब सवाल उठता है कि हमे इस तरह से पैसा क्यों नहीं कमाना चाहिए। आचार्य ने इसका भीं उत्तर दिया है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 15 श्लोक 6 के अनुसार अन्याय से कमाया हुआ धन अधिक से अधिक दस वर्ष तक आदमी के पास ठहरता है और ग्यारहवां वर्ष आरंभ होते ही ब्याज और मूल सहित नष्ट हो जाता है।

चाणक्य के अनुसार अन्याय से कमाया गया पैसा 10।वर्ष तक ही टिकता है और उसके बाद ब्याज सहित नष्ट हों जाता है।

इसीलिए हमे मेहनत कर धन कमाना चाहिए मेहनत कर के कमाया गया धन कई पीढ़ियों तक साथ में रहता है। मेहनत से कमाए गए धन से  हमे शांति और सुकून मिलती  है।
 धन्यवाद


नमस्कार साथियों , 
आप सभी के सहयोग  चाणक्य की धन नीति की सीरीज वायरल हो रही है इसके लिए आप सभी का धन्यवाद, जैसा की हमने वादा किया हैं कि दीपावली तक चाणक्य की धन नीति को पूरी तरह स्पष्ट कर देंगे उसी  सीरीज में आज हम चर्चा करेंगे कि चाणक्य नीति के अनुसार वह कौन से कार्य है जिसके धन की कमाई होती है और  माता लक्ष्मी आपके घर में निवास करती  है। 

पिछली वीडियो में हमने चर्चा की थी कि हमे किन साधनों से धन नहीं कमाना चाहिए आज हम बात करेंगे कि चाणक्य नीति के अनुसार हम किन साधनों से धन कमा सकते है।


अध्याय 3 श्लोक 11 के अनुसार उद्योग या परिश्रम करने वाला व्यक्ति दरिद्र नही हो सकता। प्रभु का नाम जपने से मनुष्य पाप में लिप्त नहीं होता। मौन रहने से लड़ाई झगडे नही होते और जो सतर्क रहता है उसे किसी प्रकार कर भय नहीं होता है। 

बाकी नीति पर उनके संबंधित वीडियो पर चर्चा करेंगे आज हम चर्चा करेंगे कि उद्योग या परिश्रम करने वाला व्यक्ति कभी दरिद्र नही हो सकता है। इस चर्चा में चाणक्य नीति के अन्य श्लोक को भी सामिल कर ले जिससे यह नीति पूरी तरह से स्पष्ट हों जाए।

अध्याय 17 श्लोक 14 के अनुसार जिन सज्जन लोगो के दिल में दूसरो का उपकार करने की भावना जाग्रत रहती है, उनकी विपत्तियां नष्ट हो जाती है और पग-पग पर उन्हें धन संपत्ति की प्राप्त होती है।

चाणक्य नीति के अनुसार जो व्यक्ति ईमानदारी से परिश्रम करते है और अन्य व्यक्तियों के प्रति उपकार की भावना रखते है। जरूरत मंद की सामर्थ्य अनुसार मदद करते है। उन्हे पग पग पर धन संपत्ति प्राप्त होती है उनकी विपत्तियां नष्ट हो जाती है। जिससे वह व्यक्ति कभी दरिद्र नही हो सकता है। 

अतः हम सभी को ईमानदारी और परिश्रम से काम करना चाहिए। मन में परोपकार की भावना रखते है तो हम कभी दरिद्र नही हों सकते। आचार्य चाणक्य इसके अलावा अपने श्लोक में बताया है कि वो हमे किन बातों ध्यान रखना चाहिए जिससे मां लक्ष्मी आपके घर में निवास करे।

चाणक्य नीति के अध्याय 3 श्लोक 21 के अनुसार जहा मूर्खो की पूजा नही होती, जहा अन्न आदि काफी मात्रा में इकट्ठे रहते है। जहां पति पत्नी में किसी प्रकार का कलह नही होता है। ऐसे स्थान पर माता लक्ष्मी स्वयं आकर निवास करने लगती है।

चाणक्य के अनुसार अगर आप चाहते है कि मां लक्ष्मी आपके घर में निवास करे तो 3 बातो का ध्यान रखे। 

1.  जिस जगह का मुखिया मूर्ख नहीं व्यक्ति होता है चाहे वह आपका घर हो व्यापार हो या देश या राज्य हो।  

2. जहां आपत्ति काल अर्थात एमरजेंसी का ध्यान रख कर धन और अन्न आदि काफी मात्रा जमा किया जाता है।

3. जहा पति और पत्नी के बीच कलह नही होता हैं।

मां लक्ष्मी जहा निवास करती है वहा धन सम्पदा बनी रहती है समाज में उस परिवार की प्रसिद्धि रहती है। अतः सुखी जीवन के लिए मां लक्ष्मी का आगमन बहुत जरूरी है। दीपावली पर मैं मां लक्ष्मी पर स्पेशल वीडियो बनाऊंगा तब उस वीडियो में इस विषय पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे। 

चाणक्य नीति के तीनों श्लोक को एक साथ समझने पर यह स्पष्ट होता है कि धन संपदा और सम्मान के लिए 5 चीजों।का होना अत्यंत आवश्यक है। 

1. परिश्रम
2. परोपकार
3. मुखिया का समझदार होना
4. एमरजेंसी के लिए फंड
5. आपस के कलह न होना

अतः धन संपदा अर्जित करने के लिए इन 5 कार्यों का करना आवश्यक  है अगर आप इन 5 बातो को पूरा करेंगे तो आपको धन की कमाई होती है और  माता लक्ष्मी आपके घर में निवास करती  है। 
 जैसा कि आज आपने देखा कि किसी एक श्लोक से आचार्य की बात समझ कर उस।पर कार्य करना खतरनाक होता है। चाणक्य ने धन संबंधी एक नीति अध्याय 3 में बनाई है तो उससे संबंधित दूसरी नीति अध्याय 17 पर। अतः चाणक्य नीति समझने के लिए पूरी चाणक्य नीति को पढ़ कर उस पर कोई कार्य करना चाहिए
धन्यवाद

 
नमस्कार साथियों, आपका स्वागत है Life Lessons के माध्यम से अपने जीवन यात्रा को सफल और सुगम बनाने वाले अभियान में।

जैसा हमने वचन दिया था कि दीपावली उत्सव तक चाणक्य नीति की धन नीति श्रृंखला में धन कमाने की चाणक्य नीति पर चर्चा कर लेंगे। आप लोगो के सहयोग से हमने वचन पूरा कर लिया है। अब हम इस श्रृंखला में आगे चर्चा करेंगे कि धन कमाने के बाद हमे उस धन का क्या करना चाहिए। उसे कैसे सुरक्षित रखना चाहिए । तो चलिए आज की चर्चा प्रारंभ करते है।


आचार्य चाणक्य ने सिर्फ धन कमाने के बारे नही बताया  बल्कि यह भी बताया है कि पैसा कैसे संचय किया जाता है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 12 श्लोक 19 के अनुसार जैसे बूंद-बूंद से घड़ा भर जाता है, उसी प्रकार निरंतर इकट्ठा करते रहने से धन, विद्या और धर्म की प्राप्ति होती है।

धन कमाना ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि उसे संचय करना भी महावपूर्ण है । चाणक्य नीति में आचार्य ने बताया है कि जैसे बूंद बूंद से घड़ा भर जाता है उसी तरह बूंद बूंद से धन इकठ्ठा करना चाहिए। आपने समाज में कई उदाहरण देखे होंगे की किसी को कही से अचानक धन मिला है। लेकिन आपको जान के आश्चर्य होगा कि अचानक प्राप्त हुआ धन किसी काम नही आ पाता है और उचित प्रबंधन के अभाव में  धीरे धीरे नष्ट हो जाता है साथ में कई तरह की बुराइयां छोड़ जाता है। जबकि थोड़ा थोड़ा करके इकट्ठा किया गया धन आपका जीवन तो सुखमय बनाता ही है साथ में आने वाली कई पीढ़ियों का जीवन भी सुखमय बनाता है। इसीलिए हमे अपना धन थोड़ा थोड़ा करके इकट्ठा करना चाहिए।

आचार्य ने बताया है धन को संचित  कर धन की रक्षा करनी चाहिए अब प्रश्न उठता है कि हमे धन की रक्षा क्यों करनी चाहिए।  इकट्ठा धन किस काम में उपयोग में लाया जाय और किस काम उपयोग में नही लाना है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 1 श्लोक 6 के अनुसार किसी कष्ट अथवा आपत्तिकाल से बचाव के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए और धन खर्च कर स्त्री की रक्षा करनी चाहिए। लेकिन व्यक्ति स्त्री और धन से अधिक महत्वपूर्ण है इसीलिए सबसे पहले व्यक्ति अपनी रक्षा करे।

आचार्य चाणक्य के अनुसार एमरजेंसी अथवा आपत्तिकाल के।लिए धन बचाकर रखना चाहिए।  और इस धन को कही सुरक्षित रखना चाहिए ताकि इस धन को किसी तरह का संकट न हो। अगर स्त्री पर  और परिवार पर संकट आए तो धन का मोह न करके उस धन से उस संकट का सामना करना चाहिए। लेकिन अगर स्वयं व्यक्ति पर संकट आए तो सबसे पहले खुद को बचाना चाहिए। क्योंकि अगर व्यक्ति सुरक्षित रहेगा तभी वह किसी और की भी रक्षा कर पाएंगे। 

इसीलिए अपनी आमदनी का एक हिस्सा हमेशा आपत्ति काल के लिए बचा कर सुरक्षित रखना चाहिए। जिससे आपत्तिकाल का आप आसानी से सामना कर पाए। इसके अलावा संचित का उपयोग आपत्ति काल के अलावा इस धन का किसी और काम में उपयोग नहीं करना चाहिए। हमे अपनी आय का 50% आवश्यक खर्चों पर 30% अपनी इच्छाओं पर और बाकी  20% आपत्ति काल और रिटायरमेंट के लिए संचित करना चाहिए। और आय प्राप्त  होते ही सबसे पहले 20% हिस्सा संचय करना चाहिए उसके बाद  बाकि खर्च करना चाहिए।

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साथियों ये वीडियो चाणक्य नीति धन नीति सीरीज की अंतिम वीडियो है। अब तक इस सीरीज में हमने धन के महत्व, धन कमाने के तरीके , और धन बचाने के तरीके पर चर्चा की है आज हम जानेंगे की हमे किस तरह धन खर्च करना चाहिए। जिससे जीवन में फाइनेंसियल फ्रीडम मिल सके।  चलिए आज की चर्चा प्रारंभ करते है।


आचार्य ने चाणक्य नीति में धन के एक व्यक्ति के पास संचित होने को सही नही बताया है। चाणक्य के अनुसार धन को हमेशा चलते रहना  चाहिए।

चाणक्य नीति के अध्याय 16 श्लोक 12 के अनुसार ऐसे धन का भी कोई लाभ नहीं जो कुलवधू के समान केवल एक ही मनुष्य के लिए उपभोग की वस्तु हो। धन संपत्ति तो वही अच्छी है जिसका फायदा राह चलते लोग भी उठाते है।

चाणक्य के अनुसार ऐसे धन का कोई लाभ नहीं है जो एक व्यक्ति के खजाने में पड़ी रहे उसकी सेवा करे जैसे का घर की पतिवर्ता स्त्री करती है। जिस की सेवा से केवल उसका पति की संतुष्ट होता है। बल्कि धन संपत्ति तो वैश्या की तरह होनी चाहिए जो कभी भी एक व्यक्ति के पास नही रुकती है और उसकी सेवा से राह चलते व्यक्ति भी संतुष्ट रहते है।  

धन को एक साथ व्यय नही करना चाहिए बल्कि उसे धीरे धीरे खर्च करना चाहिए। धन का व्यय इस प्रकार से हो को संचित धन हमेशा बना रहे। अर्थात जितनी आय हो उतना ही धन खर्च करे।

चाणक्य नीति के अध्याय 7 श्लोक 14 के अनुसार अर्जित अथवा कमाए गए धन का त्याग करना अर्थात उसका सही ढंग से व्यय करना और उसका लाभ कमाना ही उसकी रक्षा करना है। जिस प्रकार तालाब से भरे हुए जल को निकालते रहने से तालाब का पानी शुद्ध और पवित्र रहता है।

अर्थात धन को सही तरह से व्यय करना ही धन की रक्षा करना है।  जब हमारा धन गलत कामों में नही लगेगा तो अपने आप धन बचेगा। धन को हमेशा  चलायमान होना चाहिए। धन चलायमान होने से धन उसी तरह साफ और पवित्र बना रहता है जिस तरह लगातार निकलते रहने से तालाब का पानी साफ और पवित्र बना रहता है।  

धन को सोच समझ कर खर्च करना चाहिए क्योंकि धन के खर्च करने से कोई भी व्यक्ति संतुष्ट  नहीं हुआ है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 16 श्लोक 13 के अनुसार इस संसार में ऐसा कोई प्राणी नही है जो धन का विभिन्न प्रकार के से उपभोग करने पर तृप्त हुआ हो। इस धन का उपभोग इस जीवन के कार्यों, स्त्रियों के सेवन और विभिन्न प्रकार के भोजन, आदि पर व्यय करने से मनुष्य अतृप्त रहेगा और अतृप्त रहते हुए ही इस संसार से चला जायेगा। अर्थात धन के किसी भी प्रकार के उपभोग से मनुष्य कभी तृप्त नहीं होता है।

चाणक्य के अनुसार गलत तरीके से धन के व्यय से कोई भी व्यक्ति तृप्त नहीं हो सकता है। धन का सही जगह उपभोग करने से ही व्यक्ति संतुष्ट और तृप्त हो सकता है। इसीलिए खर्च करते समय हमेशा सही और गलत का ध्यान रखे।  गलत जगह धन व्यय करने से व्यक्ति कभी तृप्त नहीं हो सकता चाहे पूरा धन क्यों न खत्म कर दे। जबकि सही जगह पर खर्च किया गया धन संतुष्टि प्रदान करता है और फाइनेंसियल फ्रीडम प्रदान कर आपके जीवन को सफल बना देगा।  

तो साथियों आज चाणक्य नीति की धन नीति सीरीज समाप्त होती है आप लोगो ने इस सीरीज को बहुत पसंद किया। अब इन नीतियों को अपने जीवन में शामिल कर अपने जीवन को सफल बनाइए। सच बताइए गा क्या आपने कभी सोचा था कि आचार्य चाणक्य ने धन के बारे में भी कुछ लिखा है। आचार्य को हमेशा शत्रु और पारिवारिक रिश्तों के बारे में नीति बनाने के बारे में सुना होगा। अभी आचार्य के खजाने में बहुत कुछ है शायद ही जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा होगा जिस के लिए आचार्य ने कोई नीति न बनाई हो। तो साथियों जल्द ही मिलते है नई वीडियो या नई सीरीज में। 

चाणक्य नीति के अनुसार 
अध्याय 16 श्लोक 20 के अनुसार जो विद्या पुस्तकों तक ही सीमित है और जो धन दूसरो के पास पड़ा है, आवश्यकता पड़ने पर न तो वह विद्या काम आती है और न ही वह धन उपयोगी हो पाता है।

अध्याय 1 श्लोक 7 के अनुसार आपत्तिकाल से बचाव के।लिए धन की रक्षा करनी चाहिए। लेकिन सज्जन पुरुषो के पास विपत्ति का क्या काम। लक्ष्मी तो वैसे भी चंचला है वह संचित करने पर भीं नष्ट हो जाती है।