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bhagwad Geeta gyan current

जो हमारे ही भीतर रहते हैं धर्म ग्रंथो में मनुष्यों के छह ऐसे शत्रु बताए गए हैं बाल मनुष्यों के जीवन को कष्ट में बनाते हैं बल्कि उनके मोक्ष की राह में रुकावट पैदा करते हैं बहुत ही संसार में आत्मा को जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसा कर रखते हैं इनमें पहले तीन शत्रु तो इतनी ज्यादा नुकसानदायक है दुश्मन भले ही अलग-अलग हो पर जब भी हमारे दिमाग में क्या हमारे मन में आ जाए तो एक साथ प्रभावी हो जाते हैं और तब हम ना चाहते हुए भी भले पूरे का फर्क नहीं कर पाते सोच रहे होंगे कौन से दुश्मन है जो और हमें पता भी नहीं हम सभी अक्सर अपने मन को पहचान ही नहीं अक्सर अपने मन को पहचान यानी क्रिकेट जिसे एशिया भी कहा जाता है तो चलिए आज की इस बार हम में हैं हमारे मस्तिष्क का सबसे पहले शत्रु है काम यानी हमारी देसी रेड काम के अंतर्गत सभी प्रकार की छाया आती है मनुष्य से जगन से जख्म करवा लेती है अमित कर देती है बल्कि का मतलब क्या सेक्स को मान लिया जाता है हमारी ऐसी सभी इच्छाएं काम के अंदर शामिल है पूरा करने के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हो कई बार हमें कुछ चीजों की आदत भी लग जाती है हम चाह कर भी उन चीजों को छोड़ नहीं पाते इन आदतों को भी काम में ही शामिल किया जाता है काम का अर्थ है आप भगवान को भूलने लगता है आप एक शराबी से जब उसे अल्कोहल की क्रेविंग होती है तो उसका एक अल्कोहल उसके लिए वह क्या तरीका अपना है यह वह भी नहीं सोच पता फिर अच्छे या बुरे किसी भी तरीके से वह अपनी क्रेविंग को मिटाने की कोशिश करने लगता है इस तरह देखा जाए तो काम का मतलब हुआ इसमें किसी भी चीज की लत हो सकती है नशे की पैसे की पावर की या फिर शारीरिक शक्ति कुल मिलाकर जब हम किसी भी चीज के लिए उसके लिए हम अपने परिवार दोस्त और अपने आसपासों का पूरा करने से काम है लिखा जाए तो हम मनुष्य के अंदर थोड़े बहुत दोष होते हैं और उन्हें देशों के अंदर यह छह विकार आते हैं राम को सबसे ऊपर रखा गया है कुछ लोगों में काम की मात्रा ज्यादा होती है इसलिए लोगों से हमेशा आगे ही रहे दूसरों के साथ कुछ भी बुरा क्यों ना करना पूरी बात नहीं है मगर सफल होने के लिए आप क्या-क्या तरीके अपन इसके लिए उसे दूसरों के साथ कुछ भी पूरा क्यों न करना पड़े तो यह भी एक तरह से कम ही है यहां उसे व्यक्ति के अंदर सक्सेस की क्रेविंग है सफल होना पूरी बात नहीं है मगर सफल होने के लिए आप क्या-क्या तरीके अपनाते हैं इस पर गौर किया जाना चाहिए अपने किसी भी क्रेविंग को सेटिस्फाई करने के लिए आप किसी दूसरे व्यक्ति को काम जब भी हमारे दिमाग पर हावी होता है तो हम इतना स्वभाव को हमारे सबसे बड़ा दुश्मन बताया गया है अपना खता तो आपने सुना ही हो वह काम के वशीभूत होकर ही भगवान राम और लक्ष्मण के सामने विवाह प्रस्ताव लेकर पहुंची थी उसके बाद परिणाम सामने आए वह काम के वशीभूत होकर निर्णय की वजह से ही थे समझ सकते हैं जरा मनुष्य के दिमाग को भटका देता है दूसरा शत्रु है क्रोध क्रोध यानी गुस्सा या फिर गुस्सा तो हम सभी को आता है मगर थोड़े बहुत गुस्से के बाद अगर हम उसे कंट्रोल कर ले तो वह हमारे दिमाग पर हाफी नहीं हो पता मगर जब ऐसा नहीं होता तो क्रोध हमारा सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है वैसे देखा जाए तो क्रोध भी कम से जुड़ा हुआ है जब भी हमारी कोई डिजायर पूरी नहीं हो पाई क्या कोई काम हमारे मन मुताबिक नहीं हो पता तो हमारे मन की जो स्थिति होती है वही क्रोध हैऐसे समय पर हम अपनी प्रतिक्रिया को जिन उग्र भावनाओं के साथ व्यक्त करते हैं वही क्रोध है क्रोध जब किसी मनुष्य पर हावी हो जाता है तो वह उसके सोचने समझने खत्म करने लगता है क्रोध जब किसी मनुष्य पर हावी हो जाता है तो वह उसे क्रोध में मनुष्य कई बार कुछ ऐसा भी कर जाता है जिसका उसे बाद में अफसोस भी होता है लेकिन फिर बाद में अफसोस करने का कोई फायदा नहीं होता इसका उदाहरण आप अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से भी ले सकते हैं मान लीजिए आप किसी टीम के लीडर है और आपका कोई टीम में अचानक से बिना बताए छुट्टी कर चला गया क्या आपको इन्फॉर्म किए बिना आपके टीममेट का नुकसान तो होगा अगर तब आप गुस्से में आकर उसे अपनी टीम से निकाल देंगे तो उसमें किसका नुकसान होगा जाहिर सी बात है आपके टीममेट का नुकसान तो होगा ही मगर साथ ही आपका भी नुकसान होगा आपको नई टीम मेंबर ढूंढना पड़ेगा और फिर उसे टास्क समझाना पड़ेगा इसके लिए हो सकता है उसे ट्रेन भी करना पड़े इस तरह इस पूरे प्रोसेस में आपका ही टाइम वेस्ट होगा वहीं अगर आप ठंडे दिमाग से सोच कर अपने टीममेट की लीव का रीजन जानकर उसकी हेल्प करेंगे तो आपको इतनी परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी और आप स्थिति को बेहतर तरीके से संभाल पाएंगे आजकल के यंग जनरेशन में एंगर इश्यूज की प्रॉब्लम काफी देखने को मिलती है अक्टूबर उन्हें गुस्सा आने लगता है कई बार गुस्से में आकर ऐसा कदम तक उठा लेते हैं जिनका असर उनकी पूरी लाइफ पर पड़ जाता है किसी के साथ झगड़ा करना मारपीट करना यह सब क्रोध की वजह से ही होता है अगर कोई हमारे साथ बुरा बर्ताव भी करें और हम उसकी प्रतिक्रिया में क्रोध न करते हुए समझदारी से और शांत भाव से स्थिति को संभालने का प्रयास करें तो उसके परिणाम काफी बेहतर हो सकते हैं मगर जब क्रोध हमारे दिमाग पर छा जाता है तो हमें हर चीज पूरी दिखाई देती हर कोई गलती लगता है ऐसे में सही निर्णय लेना तो हमें हर चीज पूरी जिंदगी क्रोध से बचने के लिए हमेशा एक बात ध्यान रखनी चाहिए जो पेरिस तिथि मारे हाथ में नहीं जा शक्तियों का सम ना करना चाहिए रामायण में बाली और सुग्रीव का प्रसंग यह स्पष्ट करता है कि कैसे क्रोध के वशीभूत बाली ने अपने ही भाई को अपना दुश्मन बना लिया था यह कुछ पलों का क्रोध होता है मगर इसका परिणाम सारी उम्र झेलना पड़ता है क्रोध के बाद जो तीसरा दुश्मन है वह हेलो मनुष्य की कामना ही उसमें लोग पैदा करती है और लोग के वश में मनुष्य चोरी और इसके जैसे ही कई बात करते हो को अंजाम दे देता है लोग किसी भी मनुष्य को सांसारिक जीवन में से मुक्त होने के बारे में कभी सोच ही नहीं सांसारिक जीवन में उलझन जाता है और वह इसे मुक्त होने के बारे में कभी सोच ही नहीं पता जब भी हम किसी भौतिक सुख को पकड़ आनंद से भर जाते हैं और हमारे मन में इस आनंद को बार-बार अनुभव करने की इच्छा होने लगती है तो वही लोग पैदा होने लगता हैलोग यानी की लालच भी एक तरह से कम से ही जुड़ा हुआ है काम का मतलब है किसी चीज की इच्छा करना वही लोग का मतलब है इस इच्छा की पूर्ति करने के लिए और ज्यादा पानी की चाहत रखने लोग का अंत आसानी से नहीं होता क्योंकि हमारी इच्छाओं की सीमा कभी खत्म नहीं होती इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए हम लगातार कोशिश करते रहते हैं इसी तरह धीरे-धीरे और ज्यादा और ज्यादा पानी की चाहत पढ़ने लगती है यही तो लोग है जरूरी नहीं कि लोग धन संपत्ति या रूपए पैसे को लेकर ही पैदा हो किसी भी भौतिक वस्तु के लिए हमारे मन में लोग पैदा हो सकता है लोग के वशीभूत होकर हमारी मानसिक दशा कुछ ऐसी हो जाती है कि हम यह तक नहीं देख पाते कि हमारी आवश्यकता की पूर्ति करने वाले साधन हमारे पास उपलब्ध हो चुके हैं कई बार पर्याप्त मात्रा में साधनों की उपलब्धि होने पर भी ज्यादा पानी की चाहत बनी रहती है हमारे मन में हमारे पास उपलब्ध हो चुके हैं कई बार पर्याप्त मात्रा में साधनों की उपलब्धि होने पर भी ज्यादा पानी की चाहत बनी रहती है और यही चाहत हमारे मन में रूप को बढ़ाती है ऐसे में जरूरी है कि हम अपनी आवश्यकता को पहचाने और यह निश्चय करें कि किसी भी भौतिक साधन को छूटने के लिए हम सिर्फ आवश्यकता समाप्त हो जाए वहां साधनों को जितना भी बंद कर देना चाहिए ऐसा करने पर ही सीता माता स्वर्ण ब्रिक को पाने का लोक करती है तो उन्हें भी कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है इसीलिए इसका ध्यान रखना चाहिए कि हमारा मन मस्तिष्क लोग से मुक्त रहे इसके बाद हमारे मन मस्तिष्क का जो अगला दुश्मन है

मोह
जब हमें किसी भी व्यक्ति या वस्तु की इतनी ज्यादा आदत हो जाए कि हम उसके बिना रहने में असमर्थ हो जाए तो इसे ही मोह कहा जाता है मुंह में हम आंतरिक चेतना की उपेक्षा कर देते हैं और अज्ञानता को पोषित करते हैं यानी कि हम यह भूल जाते हैं कि असल में हम मनुष्य इस संसार का हिस्सा तो है परंतु हमारा अस्तित्व उसे परमात्मा के अंश के रूप में है हमें यह बात याद रखना चाहिए की भौतिक संसार में रहते हुए हम केवल अपने कर्तव्यों का निर्माण कर रहे हैं हमारे आसपास की भौतिक वस्तुएं और इस संसार में बने रिश्ते नाते सभी एक न एक दिन खत्म हो जाएंगे आपको ध्यान में रख ईश्वर में मन लगा तो हमारा मन मुंह से मुक्त हो जाता है और अज्ञान के कारण ही और उसे मानने से इनकार कर देते हैं हम अपने भौतिक शरीर के सुख को सब कुछ मान बैठे हैं और मोहर्रम इस संसार के कासन और बंधनों में फंसे रहते हैं मुंह किसी व्यक्ति से भी हो सकता है और वस्तुओं से भी हो सकता है हम सभी को अपने परिवार वालों से तो मोह होता ही है हमारे आसपास रहने वाले ऐसे लोग जिन्हें हमारे माता है दोस्त यह सभी हमारे मुंह का कारण बनते हैं मुंह के वशीभूत होकर कोई इंसान कुछ भी करने को तैयार हो जाता हैकई बार ऐसा भी होता है कि हम किसी के मुंह में इस तरह फस जाते हैं कि उसे व्यक्ति के अलावा हमें कुछ और दिखाई ही नहीं देता वह किसी भी रिश्ते में हो सकता है मां बेटे के रिश्ते में पति-पत्नी के रिश्ते में भाई-बहन के रिश्ते में दोस्त के रिश्ते में आप सबको रामायण का कैक प्रसंग तो बधाई होगा जिसमें महारानी को वनवास भेजने के लिए कहती है पूरी कामना के पीछे सबसे बड़ा कारण था उनका पुत्र उन्होंने भारत जी के मुंह में आकर महाराज दशरथ से ऐसा वचन मांगा था और इस मुंह के कारण बाद में उन्हें कितने सारे दुखों का सामना भी करना पड़ा था मनुष्य का जो एक और बड़ा दुश्मन है वह है मध्य का अर्थ अहंकार अथवा अभियान होता है जिसे हम एरोगेंस भी कहते हैं मत वह अब गुण है जिसमें मां केवल अपने ही सतपाल भरोसा करता है और कई बातों को समझ ले और मानने से इनकार कर देता है मत कई लोगों के पतन का कारण भी बनता है जब हम ऐसा सोचने लगते हैं कि हमारे द्वारा किया गया काम ही सर्वश्रेष्ठ है किसी भी क्षेत्र में हम ही सबसे बेहतर है सबसे आगे हैं और सबसे श्रेष्ठ है तो इसी भाव को मत कहा जाता है कुल मिलाकर जब कोई भी इंसानआपको मत कहा जाता है कुल मिलाकर जब कोई भी इंसान मैं की भावना को सर्वोपरि रखता है या जब उसे अपने सिवाय कोई दूसरा नजर नहीं आता क्या वह किसी दूसरे व्यक्ति को अपने बराबर नहीं समझता है तो उसे मानसिक अवस्था को ही मत कहा जाता है अपने ही मत में डूबे हुए इंसान के लिए किसी भी स्थिति को समझाना मुश्किल हो जाता है क्योंकि वह हर स्थिति में खुद को आगे रखकर सोता है ऐसे में कई बार वास्तविकता उसे दिखाई नहीं देती है जैसे मध्य में डूबा हुआ व्यक्ति कभी भी अपनी गलती नहीं मान सकता क्योंकि उसे लगता है कि वह जो कर रहा है वही सही है और ऐसे में उसे अपने आसपास के लोगों की काबिलियत भी दिखाई नहीं देती है और ना ही वह किसी की सलाह सुनता है और ना किसी की सलाह पर कॉल कर रामायण के प्रसंग को समझते हुए अगर हम मत का उदाहरण देखें तो रावण एक अहंकारी व्यक्ति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है रावण को अपने ज्ञान का मत था और वह इसी मध्य में डूबा रहता था भगवान शिव से वरदान प्राप्त है उसे कोई नहीं मार सकता और नहीं होकर उसने कितने ही अपराध किया और उसका परिणाम भी उसे भुगतना ही पड़ा इस तरह मत के वशीभूत होकर हमारा मन मस्तिष्क भी सही गलत का निर्णय नहीं कर पता है

जलन की भावना को मानसरे की भावना कहते हैं इसमें लोग अपने सुख को पाने की कोशिश नहीं करते बल्कि दूसरों के सुख में डी उखियों के प्रति चिंतनकर मनुष्य में उनके प्रति लगाव आ सकती उत्पन्न हो जाती है उसे आसक्ति से कामना जन्म लेती है कामना से क्रोध जन्म लेता है क्रोध से मुंह जन्म लेता है मुंह से स्मृति का नाश हो जाता है बुद्धि का ना स होने मनुष्य का पतन हो जाता है और इस तरह सभी विकार मिलकर मांसाहारी को जन्म देते हैं जब भी किसी की तरक्की देखकर आपके मन में यह विचार आए यह इतना आगे कैसे बढ़ गया इससे ज्यादा डिस्टर्ब तो मैं करता था तो आपको सचेत हो जाना चाहिए क्योंकि कहीं ना कहीं आपके मन में जन्म ले रही है हमें दूसरों के सुख को देखकर दुखी नहीं होना चाहिए बल्कि हमारे मन मस्तिष्क में शत्रु को आने से भी रोकता है हमारे मन में घर-घर जाए तो हम चाह कर भी अपने आसपास उपलब्ध सुख के साधनों को देख नहीं पाते हैं अपने सुख के बचाएं दूसरों के सुख पर जाता रहने लगता है तब में जो सुख हमें प्राप्त है वह भी फिर हमारे लिए मायने नहीं रख ता इसलिए हमेशा इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि जो हमें मिलता है उसी में संतुष्ट रहना चाहिए और दूसरों के सुपर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए मंत्र भगवान राम और भारत को एक साथ खेलते हुए देखी थी और माता कही गई को दोनों ही बालको पर सामान प्रेम लूटते हुए देखी थी मन में भगवान राम को लेकर चालान का भाव उत्पन्न होता था इसके वशीभूत होकर ही मंत्र के मन में विकार उत्पन्न हुआ और उसने माता कही गई पर इसके लिए दबाव डालना शुरू किया कि वह राम के बारे में ना सोचकर भारत के बारे में ही सूची इस तरह मंत्र के मन में जन्म लेने वाली ईर्ष्या नहीं माता कैकई के मन में भी विकार उत्पन्न किया तो अब आपको समझ आ गया होगा कि हमारे मन मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाले यह भी कार्य हमारे सबसे बड़े दुश्मन है वैसे देखा जाए अलग-अलग नाम से बताए गए हैं मगर यह सभी एक साथ भी प्रभावित हो जाते हैं क्योंकि सभी आपस में ऐसा नहीं हो सकता है कि किसी भी मनुष्य में सिर्फ एक ही विकार का प्रभाव देखने को मिले अगर इन 6 दुश्मनों में से कोई एक भी आपके दिमाग पर हाफिज करें तो तुरंत ही आपको सतर्क हो जाने की आवश्यकता है मनुष्य का मन बड़ा चंचल होता है और वह स्वयं का दुश्मन बना लेता है उम्मीद है कि आपको इन दुश्मनों के बारे में अच्छी तरह समझ आ गया होगा और आगे से आप खुद को इनसे बचने की पूरी कोशिश कर पाएंगे