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चाणक्य नीति के अनुसार समाज



चाणक्य नीति के अनुसार समाज के साथ ऐसे  व्यवहार करे, वास्तविक सुख मिलेगा


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साथियों आज हम चर्चा करेंगे कि आचार्य चाणक्य के अनुसार वास्तविक सुख क्या है। और किस तरह व्यवहार को अपना कर वास्तविक सुख को पाया जा सकता है। आइए आज की चर्चा प्रारंभ करते है।


सबसे पहले हम जानते है कि आचार्य ने किसे वास्तविक सुख बताया है।


चाणक्य नीति के अध्याय 2 श्लोक 3 के अनुसार जिसका बेटा वश में रहता है, पत्नी पति की इच्छा के अनुरूप कार्य करती है। जो धन के कारण पूरी तरह संतुष्ट है। उसके लिए पृथ्वी ही स्वर्ग के समान है। 


प्रत्येक व्यक्ति इस संसार में सुखी रहना चाहता है यही तो स्वर्ग है। स्वर्ग में भी सभी प्रकार के सुखों का उपभोग करने की कल्पना की गई है इस बारे में चाणक्य कहते हैं। जिसका पुत्र उसकी बात मानता है। जिसकी पत्नी उसकी ईच्छा के अनुसार कार्य करती है। जो अपने कमाए हुए धन से संतुष्ट है ज्यादा कमाने की इच्छा तो है, लेकिन कोई लालच नहीं है। ऐसे मनुष्य के लिए इस धरती में ही स्वर्ग है।


जो व्यक्ति संतोष रूपी अमृत से तृप्त है मन से शांत है उसे जो सुख प्राप्त होता है वह धन के लिए इधर-उधर दौड़-धूप करने वालों को भी कभी प्राप्त नहीं होता है संतोष की बड़ी महिमा है जो व्यक्ति संतोष के कारण अपना जीवन व्यतीत करते हैं और शांत रहते हैं उन्हें जितना सुख प्राप्त होता है वह धन के लालच के लिए हर समय दो टूक करने वाले व्यक्ति को प्राप्त नहीं हो सकता है।


 इस विषय में एक अन्य श्लोक पर चर्चा करते है। क्योंकि मैं कभी भी एक श्लोक पर चर्चा नही करता नही तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। 



चाणक्य नीति के अध्याय 2 श्लोक 2 के अनुसार भोजन के लिए अच्छे प्रदार्थ का उपलब्ध होना। उसे खाकर पचाने की शक्ति होना, सुंदर स्त्री का मिलना, उसके उपभोग के लिए कामशक्ति का होना, धन के साथ-साथ दान देने की इच्छा का होना—ये बात मनुष्य को किसी महान तप के कारण प्राप्त होती है। 


हम तप के माध्यम से सुख की कामना करते है। भोजन में अच्छी वस्तुओ की कल्पना है सभी करते हैं परंतु वस्तुएं प्राप्त होना और उसे पचाने की शक्ति होना भी आवश्यक है प्रत्येक पर प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसे सुंदर स्त्री मिले लेकिन उसके उपभोग के लिए व्यक्ति में काम शक्ति भी होनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसके पास धन हो लेकिन धन प्राप्ति के बाद कितने ऐसे लोग हैं जो उसका सदुपयोग कर पाते हैं। अच्छी जीवनसंगिनी, अच्छी शारीरिक शक्ति, धन और वक्त जरूरत पर किसी के काम आने की प्रवृत्ति आदि पूर्व जन्मों के कर्मों का फल होता है।


जो व्यक्ति धन धन के लेनदेन में विद्या अथवा किसी कला के सीखने में भोजन के समय अथवा व्यवहार में लज्जा हीन होता है अर्थात संकोच नहीं करता है वह सुखी रहता है। इसे ही वास्तविक सुख कहते है। 


अब जानते है कि चाणक्य के अनुसार वे कौन से व्यवहार है जिन्हे अपना कर हम वास्तविक सुख पा सकते है। 


चाणक्य नीति के अध्याय 12 श्लोक 3 के अनुसार अपने बंधु बांधव के साथ वही व्यक्ति सुख से रह सकता है, जो उनके साथ

सज्जनता और न्रमता का व्यवहार करता है, दूसरे लोगो पर दया और दुर्जनों के प्रति भी

उनके अनुकूल व्यवहार करता है, सज्जन लोगो से जो प्रेम रखता है, दुष्टों के प्रति जो कठोर होता है और विद्वानों के साथ सरलता से पेश आता है। जो शक्तिशाली लोगो के साथ शूरवीरता और पराक्रम से काम लेता है, गुरु, माता-पिता और आचार्य के साथ जो सहनशीलता पूर्ण व्यवहार रखता है तथा स्त्रियों के प्रति अधिक विश्वास न करके जो उनके प्रति चतुराई पूर्ण व्यवहार करता है, वही कुशलता पूर्वक इस संसार में रह सकता है। 


मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसिकरण उसे समाज के साथ कुशलता पूर्वक व्यवहार करना चाहिए। यह व्यवहार मनुष्य को संसार में वास्तविक सुख दिला सकते है। आचार्य चाणक्य ने मनुष्य को वह व्यवहार बताए है जिनका मनुष्य उपयोग करके समाज में सुख से रह सकता है। आइए जानते है मनुष्य का समाज में किस प्रकार व्यवहार करना चाहिए।


सगे संबंधियों के प्रति - चाणक्य के अनुसार अपने सगे संबंधियों के साथ सज्जनता और न्रमता का व्यवहार करना चाहिए जिससे वह लोग भी आपके प्रति सज्जनता और न्रमता का व्यवहार करे। जिससे सभी सुख पूर्वक रह सके।


दुर्जन लोगो के प्रति - आचार्य के अनुसार दुर्जन लोगो के साथ जैसे तो तैसा वाला व्यवहार करना चाहिए। अर्थात जो व्यक्ति आपके साथ जैसा व्यवहार करे उसके साथ उसी के अनुकूल व्यवहार करना चाहिए।


सज्जन लोगो के प्रति - आचार्य के अनुसार सज्जन लोग प्रेम के भूखे होते है अतः सज्जन लोगो के साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार करना चाहिए। इससे आपको समाज में यश मिलेगा।


दुष्टों के प्रति - आचार्य ने हमेशा दुष्टों के प्रति बहुत ही कठोर नीति अपनाई थी। इसी संदर्भ में वह हमे भी दुष्टों के प्रति बहुत ही कठोरता का व्यवहार करने को कहते है। दुष्टों को कभी भी क्षमा नहीं करना चाहिए। दुष्टों का समूल नाश कर देना चाहिए।


शक्ति शाली लोगो के प्रति - जो व्यक्ति शक्ति शाली और शूरवीर हो आचार्य के अनुसार ऐसे व्यक्ति के साथ शूरवीरता और पराक्रम का व्यवहार करना चाहिए। क्योंकि यह लोग ऐसा ही व्यवहार पसंद करते है।



गुरु, माता पिता, और आचार्य के प्रति - आचार्य के अनुसार गुरु, माता पिता और आचार्य को हमेशा सम्मान देना चाहिए। अगर यह लोग कभी गलत बोले तो उसे भी सहन करना चाहिए। क्योंकि यह लोग कभी भी आपका अहित नहीं चाहेंगे।


स्त्रियों के प्रति - आचार्य के अनुसार स्त्रियों पर कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए। इनके प्रति सजग होकर चतुराई पूर्वक व्यवहार करना चाहिए।


ये तो हुई आचार्य की बात वैसे मैं व्यक्तिगत रूप से आचार्य चाणक्य का बहुत सम्मान करता हूं उनकी सभी नीतियों को अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करता हूं। लेकिन जब बात स्त्रियों के प्रति व्यवहार की आती है तो मुझे इनकी नीतियां समझ में नही आती । स्त्रियों के प्रति आचार्य की नीतियां संदेह से युक्त है। हो सकता है इसके लिए तत्कालीन समाज का प्रभाव हो, क्योंकि गौतम बुद्ध ने भी प्रारंभ में बौद्ध धर्म में स्त्रियों के प्रवेश के लिए मना किया था, लेकिन अपने प्रिय शिष्य आनंद के आग्रह पर बौद्ध धर्म में स्त्रियों के प्रवेश की अनुमति प्रदान की थी।  


मेरे अपने अनुभव के अनुसार स्त्रियां प्रेम और सम्मान की भूखी होती है स्त्रियों के साथ प्रेम और सम्मान का व्यवहार करना चाहिए। चाहे वह मां हो बहन हो बेटी हो पत्नी हो या मित्र हो। उन्हे हमेशा प्यार और सम्मान देना चाहिए।


साथियों चाणक्य नीति में बताए गए व्यवहारों को अपने जीवन में अपना अपने जीवन सुखमय बनाइए। 


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चाणक्य नीति के अध्याय 1 श्लोक 5 के अनुसार दुष्ट स्वभाव वाली, कठोर वचन बोलने वाली, दुराचारिणी स्त्री और धूर्त और दुष्ट स्वभाव वाला मित्र सामने बोलने वाला मुंहफट नौकर और ऐसे घर में निवास जहां सांप के होने की संभावना हो ये सब बाते मृत्यु के समान है। 


चाणक्य नीति के अध्याय 1 श्लोक 4 के अनुसार मूर्ख शिष्य को उपदेश देने, दुष्ट- व्यभाचारिणी स्त्री का पालन-पोषण करने, धन के नष्ट होने तथा दुखी व्यक्ति के साथ व्यवहार रखने से बुद्धिमान व्यक्ति को भी कष्ट उठाना पड़ता है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 1 श्लोक 17 के अनुसार पुरुषो के अपेक्षा स्त्रियों का आहार अर्थात भोजन दोगुना होता है, बुद्धि चौगुनी,
साहस छह गुना और कामवासना आठ गुना होती है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 2 श्लोक 1 के अनुसार झूठ बोलना, बिना सोचे समझे किसी काम को प्रारंभ कर देना, दुस्साहस करना, छलकपट करना, मूर्खता पूर्ण कार्य करना, लोभ करना, अपवित्र रहना और निर्दयता- ये स्त्रियों के स्वाभाविक दोष है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 2 श्लोक 15 के अनुसार जो वृक्ष नदी के किनारे उगते है, जो स्त्री दुसरो के घर में।रहती।है जिस राजा के मंत्री अच्छे नहीं होते है। वे जल्द नष्ट हो जाते है इसमें कोई भी संशय नहीं है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 2 श्लोक 17 के अनुसार  वैश्या निर्धन पुरुष को, प्रजा पराजित राजा को, पक्षी फलहीन वृक्ष को और अचानक आया हुआ अतिथि  भोजन करने के बाद घर को त्याग को चले जाते है। 


चाणक्य नीति के अध्याय 2 श्लोक 20 के अनुसार प्रेम व्यवहार बराबरी वाले व्यक्ति में ठीक रहता है। यदि नौकरी करनी ही हो तो
राजा की नौकरी करनी चाहिए। कार्य अथवा व्यवसाय में सबसे अच्छा काम व्यवसाय करना
है। इसी प्रकार उत्तम गुणों वाली स्त्री की शोभा घर में है।  

चाणक्य नीति के अध्याय 3 श्लोक 9 के अनुसार कोयल का सौंदर्य उसके स्वर में है  उसकी मीठी आवाज  में है, स्त्रियों का सौंदर्य उनका पतिव्रता होना है, कुरूप लोगो का सौंदर्य उनकी विद्यावान होने में है। और तपस्यियो का सौंदर्य उनकी क्षमावान होने में है  

चाणक्य नीति के अध्याय 4 श्लोक 8 के अनुसार अशिक्षित तथा अनुपयुक्त स्थान या ग्राम में।रहना नीच व्यक्ति के सेवा, अरुचिकर और पाष्टिकता से रहित भोजन करना, झगड़ालू स्त्री  मूर्ख पुत्र और विधवा कन्या , ये छह बाते ऐसी है तो बिना अग्नि  के ही शरीर को जलाती रहती है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 4 श्लोक 10 के अनुसार इस संसार में दुखी लोगो को तीन बातो से ही शांति  हो सकती है—अच्छी 
संतान, पतिव्रता पत्नी और सज्जन का संग। 

चाणक्य नीति के अध्याय 4 श्लोक 13 के अनुसार पति के लिए वही पत्नी उपयुक्त होती है, जो मन, वचन और कर्म से एक जैसी हो और अपने कार्यों में निपुण हो, इसके साथ ही वह अपने पति से प्रेम रखने वाली तथा सत्य बोलने वाली होनी चाहिए  ऐसी स्त्री को ही श्रेष्ठ पत्नी माना जा सकता है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 5 श्लोक 15 के अनुसार विदेश में विद्या ही मनुष्य की सबसे सच्ची मित्र होती है।  घर में अच्छे स्वभाव वाली और गुणवती पत्नी ही मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र होती है। रोगी व्यक्ति को दवाई मित्र है और जो मनुष्य मार गया होता है धर्म कर्म ही उसका मित्र होता है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 6 श्लोक 12 के अनुसार बुरे राज्य की अपेक्षा किसी प्रकार का राज्य न होना अच्छा है। दुष्ट मित्र के अपेक्षा मित्र न होना अच्छा है। दुष्ट शिष्यों की अपेक्षा शिष्य न होना अच्छा है। और दुष्ट पत्नी का पति होने से अच्छा है पत्नी ही न हो।   

नमस्कार साथियों, आप सभी को दशहरा उत्सव की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।  जैसा की आप सब जानते है कि दशहरा उत्सव अपने शत्रुओं पर विजय पाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है । इसी कारण इस पावन अवसर पर  आज हम चर्चा करेंगे कि आचार्य चाणक्य ने शत्रु पर विजय पाने के लिए कॉन सी नीतियां बताई है। आचार्य चाणक्य को खुद भी शत्रु पर विजय पाने के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। चाणक्य  एक गरीब ब्राह्मण और साधारण अध्यापक होते हुए भी भारत के सबसे शक्तिशाली शासक धनानंद को भरे दरबार में चुनौती देकर हराया था। उस धनानंद के बारे में यह जानकारी भी महत्वपूर्ण है कि धनानंद की शक्ति से घबकर विश्व विजय के अभियान पर निकले सिकंदर की सेना वापस लौट गई थी। यहीं कारण चाणक्य की नीतियां हमारे लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। आइए जानते है कि चाणक्य ने शत्रुओ पर विजय पाने के लिए कौन सी नीतियां बताई है।

इंट्रो 

चाणक्य के अनुसार  हमे किसी से बैर भाव या द्वेष नहीं रखना चाहिए क्योंकि द्वेष से हम अपना ही नुकसान करते  है। चाणक्य ने हमे बताया है कि हमे किस से द्वेष नहीं रखना चाहिए। 

चाणक्य नीति के अध्याय 10 श्लोक 11 के अनुसार,  जो मनुष्य अपनी ही आत्मा से द्वेष  रखता है वह स्व को नष्ट कर लेता है। दूसरो से द्वेष रखने से अपना धन नष्ट होता है। राजा से वैर-भाव रखने से मनुष्य अपना नाश करता है और ब्राह्मणों से द्वेष रखने से कुल का नाश हो जाता है।

चाणक्य नीति  के अनुसार जो व्यक्ति अपनी आत्मा की बात नहीं सुनता वो व्यक्ति अपने को और अपनी कीर्ति दोनो को नष्ट कर लेता है। 

 जो व्यक्ति अन्य दूसरे व्यक्ति से द्वेष रखता है वो अपना धन नष्ट करता है क्योंकि लड़ाई झगड़े और कोर्ट कचहरी में अपना समय और पैसा दोनो व्यय होता है। 

इसी प्रकार जो व्यक्ति अपने राजा से द्वेष रखता है वो अपना नाश करवा लेता है क्योंकि राजा उस व्यक्ति से बहुत शक्तिशाली होता है। आपने वह कहावत तो सुनी ही होगी कि जल में रहकर मगर से बैर नहीं लेना चाहिए।

लेकिन सबसे बुरी स्थिति तब होती है जब व्यक्ति ब्राह्मणों या विद्वानों से द्वेष रखता है वो अपने समस्त कुल का नाश करवा देता है। क्योंकि अगर विद्वान से द्वेष रखेगा तो विद्वान उस व्यक्ति और उसके परिवार को अच्छी शिक्षा नहीं देंगे अच्छी शिक्षा न मिलने के कारण उस व्यक्ति के कुल का ही नाश हों जाएगा। इसीलिए किसी से द्वेष या बैर नहीं रखना चाहिए। 

लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियां हो जाती है कि आप किसी से बैर या द्वेष भी रखना नही चाहते  फिर भी कुछ लोग आपके शत्रु बन जाता है  क्योंकि चाणक्य के अनुसार कुछ लोग हमेशा शत्रु ही रहते है। जैसा कि इस श्लोक में स्पष्ट हो जाता है।

चाणक्य नीति के अध्याय 10 श्लोक 6 के अनुसार, मांगने वाला लोभी मनुष्य का शत्रु होता है। मूर्खो का शत्रु उपदेश  देने वाला
होता है। व्यभारिणी स्त्री का शत्रु उनका पति होता है और चोर का शत्रु चांद होता है। 

चाणक्य के अनुसार कुछ लोग कर्मो के कारण ही दूसरो के शत्रु बन जाते है जैसे 
लालची व्यक्ति किसी को कुछ देना नही चाहता इसिलियें जो व्यक्ति लालची व्यक्ति से कुछ मांगने आता है वह व्यक्ति लालची व्यक्ति का शत्रु बन जाता है। 

मूर्ख व्यक्ति किसी की बात नहीं सुनते इसीलिए जो व्यक्ति मूर्ख व्यक्ति को उपदेश देता है वो व्यक्ति मूर्ख व्यक्ति का शत्रु बन जाता है। इसीलिए विद्वान व्यक्ति को चाहिए कि वो मूर्ख व्यक्ति को सलाह या उपदेश न दे।

इसी प्रकार जो स्त्री दूसरे पुरुष से अनैतिक संबंध बनाती है ऐसी स्त्री का शत्रु खुद उनका पति होता है। इसी तरह  जो पुरुष दूसरी महिला से अनैतिक संबंध बनाता है ऐसे पुरुष की शत्रु खुद उसकी पत्नी होती है। अतः ऐसी स्त्री के पति और पुरुष की पत्नी को सदैव सावधान रहना चाहिए।

चोर अंधेरी काली रात में चोरी करना पसंद करते है ऐसे में चांद न चाहते हुए भी चोरों का शत्रु बन जाता है।


चाणक्य ने शत्रु को पहचाने के बाद शत्रु पर विजय पाने की बहुत कारगर नीति बनाई है यह नीति जितनी कारगर 2500 वर्ष पूर्व थी आज भी उतनी ही करकर है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 7 श्लोक 10 के अनुसार, बलवान शत्रु को अनुकूल व्यवहार तथा दुर्जन शत्रु को प्रतिकूल व्यवहार के द्वारा अपने वश में करे। इसी प्रकार अपने समान बल वाले शत्रु को विनम्रता या बल द्वारा, जो भी उस समय उपयुक्त हो, अपने वश करने का प्रयत्न करना चाहिए।  


चाणक्य ने तीन तरह के शत्रु की बात की है और यह बताया है कि इन पर कैसे विजय पाया जाए। 

जो शत्रु आपसे बलवान हो उसके साथ अनुकूल व्यवहार करना चाहिए। कोशिश करनी चाहिए कि ऐसे व्यक्तियों से ऐसा व्यवहार करे जो इस तरह के शत्रु को प्रसन्न कर सके जिससे इनके साथ जल्द से जल्द द्वेष खतम हो और  वह बलवान व्यक्ति आपका मित्र बन जाए। 
 
जो शत्रु दुष्ट प्रवृति का हो उसके साथ प्रतिकूल व्यवहार करना चाहिए। इन्हे बलपूर्वक या जैसे भी संभव हो कुचल कर नष्ट कर देना चाहिए। जिससे अन्य व्यक्तियों को सबक मिले और  कोई भीं आपका शत्रु बनने की हिम्मत न कर सके।

अंत में जो शत्रु आपके समान बलवान हो उसके साथ शत्रु के चरित्र और समय के अनुसार विनम्रता से या बलपूर्वक जिस व्यवहार से वह शत्रु आपके वश में आता है उसे वश में करना चाहिए।

इस श्लोक में एक छुपी हुई बात है कि हम शत्रु के साथ सुसंगत व्यवहार तब ही कर पाएंगे जब हम शत्रु के बारे में पूरी तरह जानेंगे।  इसीलिए शत्रु के साथ सुसंगत व्यवहार करने से पहले उसके बारे में ठीक से जानकारी कर ले  कि शत्रु का चरित्र कैसा है वह कितना बलवान है। और वह आपका नुकसान किस तरह से और कितना कर सकता है। आधे अधूरी जानकारी से उठाया गया कोई भी कदम खतरनाक हो सकता है।

साथियों आज की वीडियो यही समाप्त हुई भगवान राम से यही प्रार्थना है कि भगवान  सभी के शत्रुओं को समाप्त कर,  सभी का जीवन सुखमय बनाए।

धन्यवाद



नमस्कार साथियों, आपका स्वागत है आपके अपने चैनल life lessons by guruji में , इस चैनल पर हम जीवन यात्रा को सुगम और सफल बनाने वाले विषयों पर चर्चा करते है। आज चर्चा प्रारंभ करे उससे पहले आप सभी को दशहरा उत्सव की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। दशहरा उत्सव अपने शत्रुओं पर विजय पाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है । यह शत्रु हमारे शरीर के अंदर भी हो सकता है जैसे नशा और बुरी आदतें। बाहर भी हो सकता है जैसे जो लोग आपकी सफलता से खुश नहीं है और आपसे बैर रखते है।

इसी कारण  इस पावन अवसर के उपलक्ष्य पर  आज हम चर्चा करेंगे कि आचार्य चाणक्य ने शत्रु पर विजय पाने के लिए कॉन सी नीतियां बताई है। आचार्य चाणक्य को खुद भी शत्रु पर विजय पाने के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। आइए चर्चा करते है कि चाणक्य ने शत्रुओ पर विजय पाने के लिए कौन सी नीतियां बताई है।


साथियों जिन शत्रुओं को हम पहचानते है उनसे लड़ना और उन पर विजय पाना आसान होता है जबकि जो शत्रु आस्तीन के सांप होते है उन्हे पहचानना बहुत कठिन होता है जब पहचानना कठिन होता है तो उनसे जीतना और भी कठिन होता है। चाणक्य ने ऐसे शत्रुओं को पहचानने के लिए यह उपाय बताया है।

चाणक्य नीति के अध्याय 14 के श्लोक 10 के अनुसार जिसका बुरा करने की इच्छा हो, उससे सदा मीठी बात करनी चाहिए, जैसे शिकारी हिरण को पकड़ने से पहले मीठी आवाज में गीत गाता है। 

अर्थात हमे अपने शत्रु को मीठी बात करके उसे अपनी तरफ आकर्षित करना चाहिए। मीठी बात का आशय यह है कि ऐसी बात करना जो शत्रु को अच्छी लगे उसकी चापलूसी करे जिससे वह बहक जाए।, यह श्लोक आपके और शत्रु दोनो के लिए समान हितकारी है क्योंकि शत्रु के लिए इसलिए हित कारी ताकि वह अपने शत्रु का बुरा कर सके और  आपके लिए इसलिए हित कारी है क्योंकि आप इस नीति के माध्यम से अपने आस्तीन के सांप को पहचान पाएंगे अर्थात हम यह भी कह सकते है जो हमसे  मीठी और लुभावनी बात करे हमे उससे सावधान रहना चाहिए। हो सकता है वह हमे अपने जाल में फसाना चाहता हो। 

इस तरह के शत्रु से लड़ना आसान नहीं होता है सबसे पहले इन्हें पहचानना आसान नहीं होता और अगर समय रहते पहचान गए तो इनसे कैसे लड़ा जाए यह बहुत कठिन होता है। आचार्य ने इस तरह के शत्रु से लड़ने के लिया यह नीति बताई है 

चाणक्य नीति के अध्याय 3 के श्लोक 3 के अनुसार, समझदार  व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपनी कन्या का विवाह किसी अच्छे कुल में करे, पुत्र को अच्छी शिक्षा दे। उसे इस प्रकार की शिक्षा दे, जिससे उसका मान सम्मान बढे।
शत्रु को किसी ऐसे व्यसन में डाल दे , जिससे उसका बाहर निकलना कठिन हो जाए। और अपने मित्र को धर्म के काम में लगाए। 

अन्य बातों पर उनके उनके चर्चित विषय के दिन चर्चा करेंगे आज हम इस श्लोक के शत्रु वाली नीति पर चर्चा करते है। इस श्लोक में आचार्य ने कहा है कि शत्रु को किसी ऐसे व्यसन में डाल दे जिससे उसका बाहर निकलना कठिन हो जाए। देख लीजिए आज से लगभग 3000 साल पहले भी आचार्य नशा के बुरे प्रभावों को जानते थे। इसीलिए मैं हमेशा इस पुस्तक को अपना मार्ग दर्शक मानता हु। अर्थात अपने शत्रु को मीठी और लुभावनी बातों से ऐसे नशे के जाल में फंसा दे जिससे वह उबर ही न पाए अपने नशे में हमेशा खोया रहे कभी भी आपके बारे में सोच पाने का मौका ही na mile। आज कल कई तरह के नशे बाजार में है जिनके जाल में।कोई फंस जाए तो जीवन भर उस नशे से नही निकल पाएगा।

लेकिन कभी कभी शत्रु से लड़ने में नहीं बल्कि उससे दूर जाने में ही ज्यादा समझदारी है जिससे आपकी जान बच सकती है जैसे 

चाणक्य नीति के अध्याय 3 के श्लोक 19 के अनुसार प्राकृतिक आपदा जैसे वर्षा होना और सूखा पड़ना अथवा दंगे-फसाद आदि होनेपर, महामारी के रूप में रोग फैलने, शत्रु के  आक्रमण करने पर, भयंकर अकाल पड़ने पर और नीच लोग का साथ होने पर जो व्यक्ति सब कुछ छोड़-छाड़कर भाग जाता है, वह मौत के मुंह में जाने से बच जाता है। 

अर्थात अगर कोई शत्रु ऐसा है जो प्राकृतिक आपदा जैसा है जिससे आप जीत नही सकते वैसे शत्रु से लड़ने में कोई समझदारी नहीं है बल्कि उस शत्रु से दूर जाने में समझदारी है जिससे आपकी जान बच सके। क्योंकि वह शत्रु इतना ताकतवर है जिससे आप जीत नही सकते। एक अन्य श्लोक में आचार्य कहते है।


चाणक्य नीति के अध्याय 7 श्लोक 10 के अनुसार, बलवान शत्रु को अनुकूल व्यवहार तथा दुर्जन शत्रु को प्रतिकूल व्यवहार के द्वारा अपने वश में करे। इसी प्रकार अपने समान बल वाले शत्रु को विनम्रता या बल द्वारा, जो भी उस समय उपयुक्त हो, अपने वश करने का प्रयत्न करना चाहिए।  

चाणक्य ने तीन तरह के शत्रु की बात की है और यह बताया है कि इन पर कैसे विजय पाया जाए। 

जो शत्रु आपसे बलवान हो उसके साथ अनुकूल व्यवहार करना चाहिए। कोशिश करनी चाहिए कि ऐसे व्यक्तियों से ऐसा व्यवहार करे जो इस तरह के शत्रु को प्रसन्न कर सके जिससे इनके साथ जल्द से जल्द द्वेष खतम हो और  वह बलवान व्यक्ति आपका मित्र बन जाए। 
 
जो शत्रु दुष्ट प्रवृति का हो उसके साथ प्रतिकूल व्यवहार करना चाहिए। इन्हे बलपूर्वक या जैसे भी संभव हो कुचल कर नष्ट कर देना चाहिए। जिससे अन्य व्यक्तियों को सबक मिले और  कोई भीं आपका शत्रु बनने की हिम्मत न कर सके।

अंत में जो शत्रु आपके समान बलवान हो उसके साथ शत्रु के चरित्र और समय के अनुसार विनम्रता से या बलपूर्वक जिस व्यवहार से वह शत्रु आपके वश में आता है उसे वश में करना चाहिए।

इन दोनों श्लोक में एक छुपी हुई बात है कि हम शत्रु के साथ सुसंगत व्यवहार तब ही कर पाएंगे जब हम शत्रु के बारे में पूरी तरह जानेंगे।  इसीलिए शत्रु के साथ सुसंगत व्यवहार करने से पहले उसके बारे में अच्छी तरह से जानकारी।प्राप्त कर ले  कि शत्रु का चरित्र कैसा है वह कितना बलवान है। और वह आपका नुकसान किस तरह से और कितना कर सकता है। आधे अधूरी जानकारी से उठाया गया कोई भी कदम खतरनाक हो सकता है।

इसी के साथ आज चर्चा यही समाप्त होती है वीडियो या चैनल के लिए कोई सलाह , सुझाव या शिकायत भी  हो तो कमेंट करे उसे आपका एक एक कमेन्ट हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अगर वीडियो अच्छी लगी हो तो Like कर हमे प्रोत्साहित करे। वीडियो को शेयर करे ताकि अन्य लोग भी इस वीडियो का लाभ उठा सके। धन्यवाद


नमस्कार दोस्तों मैं हूं आपका दोस्त मनोज, आपका स्वागत करता हु आपके चैनल life lessons by Guruji पर, आपके इस चैनल में आपको अपनी जीवन यात्रा के बीच में पड़ने वाली कठिनाइयों से बचने के उपाय बताए जाते  है। जीवन में सफल होना है तो subscribe करके इस चैनल से जुड़े रहे।  सबसे महत्वपूर्ण बात वीडियो को कभी बीच में छोड़ कर न जाए क्योंकि आधा अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है।  

दोस्तो मैंने YouTube पर चाणक्य नीति से संबंधित कई वीडियो देखे है लेकिन ज्यादातर पर जो जानकारी दी है जो चाणक्य नीति में कही भी नही लिखी है। और उनके थंबमेल uff total click bate,  जो चाणक्य जैसे महान व्यक्ति को अपमानित करने जैसा है। लेकिन मेरे चैनल पर आपको अध्याय संख्या  और श्लोक संख्या के साथ सीधी और सच्ची जानकारी मिलेगी। आज इंट्रो कुछ ज्यादा ही बड़ा हो गया है। तो अब देर न करके वीडियो शुरू करते है। 

आज हम बात करेंगे कि चाणक्य नीति के अनुसार दुर्जन व्यक्तियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए। जैसा की हम सब जानते है कि दुर्जन व्यक्ति मानव समाज के दुश्मन होते है वो बुरे काम करते है और उन्हे इस अपराध का बिलकुल भी  पछतावा नही होता है। 

अज्ञानता वश कई लोग शत्रु और दुर्जन व्यक्ति को एक ही मान लेते है। जबकि दोनो अलग अलग है। आपका शत्रु दुर्जन व्यक्ति हो भीं सकता है और नही भी। हों सकता है कि कोई व्यक्ति बहुत अच्छे चरित्र का हों लेकिन परिस्थिति वश आपका शत्रु बन गया हो, जैसे महाभारत में गुरु द्रोण और भीष्म पितामह। शत्रु से हमे किस तरह का व्यवहार करना है इसके बारे में आगे आने वाली वीडियो में बात करेंगे।
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चाणक्य नीति के अध्याय 17 श्लोक  8 के अनुसार सांप का विष उसके दांत में होता है, मक्खी का विष उसके सिर में होता है बिच्छू का विष उसके पुंछ में  होता है लेकिन दुर्जन व्यक्ति के सभी अंग विष से भरे होते है। 

अर्थात विषैले जानवरों का अंग विशेष में विष होता है और समय विशेष पर विष का प्रयोग करते है जबकि दुर्जन व्यक्तियों के हर अंग में विष होता है और वो हर समय समाज में जहर छोड़ते रहते है। ये समाज के लिए घातक होते है। 

चाणक्य नीति के अध्याय 15 श्लोक 3 के अनुसार दुर्जन व्यक्ति और कांटे से बचने के दो उपाय है कि या तो उनसे दूर रहा जाए या फिर उनको  कुचल कर उनका अस्तित्व समाप्त कर दिया जाए।

इस सिलसिले में एक आचार्य चाणक्य से जुड़ा एक प्रसंग है, यह बात उस समय की है जब सिकंदर महान अपने विश्वविजय के अभियान पर छोटे छोटे राज्यों जीत कर तेज़ी से भारत की तरफ बढ़ रहा था। उसका निशाना भारत था। इस बात की सूचना आचार्य को अपने गुप्त सूत्रों से प्राप्त हुई। आचार्य तुरंत सम्पूर्ण भारत को एक करने के अभियान पर मगध की राजधानी पाटली पुत्र की तरफ निकल पड़े। मगध उस समय भारत का सबसे बड़ा और शक्तिशाली राज्य था। पाटलिपुत्र जल्दी पहुंचने के लिए उन्होंने मुख्य मार्ग न चुन कर एक शॉर्ट कट रास्ता चुना। मार्ग में एक जगह उनके पैरों में किसी पौधे का कांटा चुभ गया। आचार्य अत्यंत क्रोधित हुए और शिष्यों को आदेश दिया कि जड़ से उखाड़ फेंको इस पौधे को। शिष्यों ने आचार्य के आदेश का पालन करते हुए उस पौधे को जड़ से उखाड़ फेंका। इस प्रसंग से आचार्य की दुर्जन व्यक्तियों के प्रति मानसिकता का पता चलता है। 

अर्थात दुर्जन व्यक्तियों से बचने के सिर्फ दो ही उपाय है या तो उनसे पर्याप्त दूरी बनाया जाए। ताकि दुर्जन व्यक्तियों से कभी सामना न हो। 
लेकिन परिस्थिति वश दुर्जन व्यक्ति से सामना हो जाए तो उन्हें अपने कृत्य की इतनी कड़ी  सजा दी जाएं ताकि  दुर्जन व्यक्ति की भविष्य में अपराध करने हिम्मत न हो। और समाज के अन्य लोगो को भी सबक मिले। ताकि कोई व्यक्ति दुबारा उस अपराध को करने का प्रयास न करे। 




नमस्कार साथियों, आपका स्वागत है life Lessons के माध्यम से अपने जीवन को सफल और सुगम बनाने वाले अपने अभियान में। 

साथियों आपने समाज में देखा होगा कि कोई व्यक्ति जब किसी स्थान पर रहता है तो न वह आजीविका कमा पाता है और न ही उसके सम्मान में वृद्धि होती है लेकिन जब वही व्यक्ति जैसे ही दूसरे स्थान पर निवास करता है तो मात्र स्थान बदलने से वह व्यक्ति अमीर होकर सफल हो जाता है जिससे उस व्यक्ति के  मान सम्मान में वृद्धि हो जाती है। तब हम कहते है कि वह स्थान उस व्यक्ति की लिए बहुत भाग्यशाली साबित हुआ।  इसीलिए स्थान विशेष का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है। 

अतः व्यक्ति को अपनी आजीविका का स्थान अर्थात अपनी कर्म भूमि चुनते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। इस संदर्भ में आचार्य चाणक्य की पुस्तक चाणक्य नीति आपकी बहुत सहायक सिद्ध हो सकती है।   

आचार्य चाणक्य ने अपनी पुस्तक चाणक्य नीति में बताया है कि व्यक्ति को किस स्थान पर रहना चाहिए और किस स्थान छोड़ कर दूसरे स्थान पर चले जाना चाहिए। आइए आज हम इसी विषय पर  चर्चा प्रारंभ करते है और समझते है कि आचार्य चाणक्य ने किस स्थान को छोड़ कर जाने को कहा है और किस स्थान को निवास  के लिए उत्तम बताया है। 

इस संबंध में हम आचार्य के तीन श्लोक पर चर्चा करेंगे और फिर सम्मिलित रूप से आचार्य के भाव को समझेंगे।

चाणक्य नीति की अध्याय 1 श्लोक 8 के अनुसार  जिस देश में आदर सम्मान नही है और न ही आजीविका का कोई साधन है, जहां कोई बंधु-बांधव, रिश्तेदार भी नही है तथा किसी प्रकार के विद्या और गुण की प्राप्ति की संभावना भी नही है ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए, ऐसे  स्थान पर रहना उचित नहीं है। 

अर्थात आचार्य ने कहा है कि किसी भी कारण वश  ऐसे देश या स्थान पर निवास कर रहे है जिस देश या स्थान में सम्मान न हो, आजीविका का साधन न हो, अपने सगे संबंधी और रिश्तेदार न हो,और ज्ञान प्राप्त कर अपने गुणों में बढ़ोत्तरी का साधन न हो, ऐसे देश या स्थान को छोड़ देना चाहिए वहा निवास नही करना चाहिए। आइए अब दूसरे श्लोक पर चर्चा करते है। 

चाणक्य नीति की अध्याय 1 श्लोक 9 के अनुसार जहां ब्राह्मण, राजा, धनिक, नदी और वैध ये पांच चीजे नही हो इस स्थान में मनुष्य को एक दिन भी नही रहना चाहिए।

अर्थात आचार्य कहते है कि जिस स्थान पर यह पांच चीजे ब्राह्मण, राजा, धनिक, नदी, और वैध न हो ऐसे स्थान पर एक दिन भी नही रहना चाहिए। आइए अब इन्हें विस्तृत रूप से  समझते है कि आचार्य ने ऐसा क्यों कहा।

ब्राह्मण - ब्राह्मण ज्ञान का प्रतीक है और वह ज्ञान देने के कारण गुरु होते  है । उनसे ज्ञान प्राप्त कर  हम अपने जीवन में सफल हो सकते है।  अतः हमे  ऐसे स्थान पर रहना चाहिए जहां निरंतर ज्ञान की प्राप्ति हो।

राजा - बुद्धिमान राजा सुरक्षित कानून व्यवस्था का प्रतीक है अतः बुद्धिमान राजा शांति पूर्वक जीवन यापन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।  आज के परिवेश में राजा से आशय उस देश का प्रधान मंत्री या मुख्य मंत्री। व्यक्ति को ऐसे स्थान पर रहना चाहिए जहा का मुख्य मंत्री या प्रधान मंत्री मूर्ख न हो।

धनिक - धनिक व्यक्ति अपने धन के माध्यम से व्यापार करते है जिससे बहुत से लोगो को  आजीविका का साधन उपलब्ध होता है। आजीविका व्यक्ति को सुख पूर्वक जीवन यापन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अतः ऐसे स्थान को चुने जहा अधिक संख्या में धनिक निवास करते है। 

नदी - नदी जल का प्रतीक है। और जल हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसीलिए तो कहा जाता है जल ही जीवन है।  चाणक्य नीति की यह बात उस समय की है जब जल के लिए व्यक्ति मात्रा नदी पर आश्रित था।  लेकिन आधुनिक समय में व्यक्ति जल के लिए केवल  नदी पर आश्रित नहीं है जल के और भी बहुत से साधन उपलब्ध है। इसीलिए अब व्यक्ति के लिए नदी उतना महत्वपूर्ण नही है।

वैध - हमारा शरीर एक मशीन की तरह है और इसमें कब कोई समस्या  आ जायेगी इसका पूर्वानुमान नही लगाया  जा सकता है। अतः व्यक्ति को ऐसे स्थान का चुनाव करना चाहिए जहा हर समय वैध या डॉक्टर उपलब्ध हो। जिससे समस्या आने पर समुचित इलाज मिल सके।

 अब एक अन्य श्लोक को देखते है 

चाणक्य नीति की अध्याय 1 श्लोक 10 के अनुसार जहां आजीविका चलाने का साधन न हो, व्यापार आदि विकसित न हो किसी प्रकार के दंड मिलने का भय न हो। लोक लाज न हो, व्यक्तियों में शिष्टता और उदारता न हो अर्थात दान देने के प्रवृत्ति न हो। जहा यह पांच चीजे विद्यमान न हो व्यक्ति को ऐसे स्थान पर निवास नही करना चाहिए।

इस श्लोक में आचार्य  ने चुने हुए स्थान विशेष के समाज के बारे में जानकारी करने के कहा है और बताया है कि जहा आजीविका का साधन उपलब्ध न हो व्यापार विकसित न हो, लोग शिष्ट न हो लोगों को न तो लोक लाज का भय  हो और न ही दंड मिलने का भय हो। व्यक्ति को ऐसे स्थान पर निवास नही करना चाहिए।

आइए अब हम तीनों श्लोक के सम्मिलित अर्थ को देखते है क्योंकि मैंने पहले के अपने वीडियो में बताया है कि एक श्लोक  विशेष का अर्थ निकालने से अक्सर अर्थ का अनर्थ हो जाता है जैसा वर्तमान में महाकवि तुलसीदास की विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ राम चरित मानस  के साथ राजनीति हो रही है। यह प्रसंग अपने बात को साबित करने के लिए उठाया अन्यथा राजनीति हमारा विषय नहीं है। अब हम अपने विषय पर वापस लौटते है। इसीलिए हमे कई श्लोक का सम्मिलित अर्थ निकलना चाहिए। 

आचार्य ने बताया है कि अपनी कर्मभूमि चुनते समय निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए 

आय का साधन- आजीविका किसी व्यक्ति के जीवन का महत्व पूर्ण विषय है। आजीविका के कारण ही व्यक्ति जन्मभूमि को छोड़ कर दूसरे स्थान की ओर गमन करते है। अतः व्यक्ति को सर्वप्रथम यह जानकारी ले लेना चाहिए कि वह जिस स्थान जा रहा है वहां पर कौन कौन से आय के साधन उपलब्ध है। 

ज्ञान का साधन - ज्ञान व्यक्ति के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण विषय है। अच्छे ज्ञान से व्यक्ति अपने गुण के साथ उसके आय में भी वृद्धि होती है। अतः व्यक्ति को जानकारी होनी चाहिए कि स्थान विशेष पर ज्ञान के साधन उपलब्ध है कि नही।

सगे संबंधी - व्यक्ति के  सगे संबंधी और मित्र उसकी मुसीबत के वक्त काम आते है और कई बार उसे मुसीबत से बचा लेते है। अतः व्यक्ति को ऐसे स्थान को चुनना चाहिए जहा पर उसके सगे संबंधी और मित्र पहले से रहते है जो व्यक्ति का सही मार्ग दर्शन करे। और मुसीबत के समय व्यक्ति के काम आए। 


कानून व्यवस्था - कानून व्यवस्था व्यक्ति को शांति पूर्वक जीवन यापन के लिए महत्वपूर्ण है। अतः व्यक्ति को स्थान विशेष की कानून व्यवस्था की जानकारी ले लेनी चाहिए।

चिकित्सा के साधन -  रोग मुक्त होकर व्यक्ति सुख पूर्वक और पीड़ा मुक्त जीवन यापन कर सकता है। अगर समय पर रोग का।पता चल जाए और उसका सही इलाज मिल जाए तो व्यक्ति बड़ी बीमारी से आसानी से बच सकता है। अतः व्यक्ति को ऐसे स्थान को चुनना चाहिए जहा चिकित्सा के अच्छे साधन उपलब्ध हो।

समाज - अच्छा समाज व्यक्ति और उसके बच्चो को सही दिशा प्रदान कर सकता है। अतः व्यक्ति को समाज का सही आकलन करना चाहिए की समाज  शिष्ट है की नही, समाज को दंड का भय है कि नही और सबसे महत्वपूर्ण समाज को लोक लाज का भय है कि नही। क्योंकि अगर भय न हो तो व्यक्ति गलत काम करने मे संकोच नहीं करेगा । अतः इन बातो का सही आकलन कर ही स्थान का चुनाव करना चाहिए।

साथियों अगर आप आचार्य की इन बातो को ध्यान में रख कर अपनी कर्मभूमि का चुनाव करेंगे तो अपने जीवन को सफल बना कर सुख और शांति से अपना जीवन यापन कर सकेंगे। 

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