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शत्रु नीति

नमस्कार साथियों, आपका स्वागत है आपके अपने चैनल life lessons by guruji में , इस चैनल पर हम जीवन यात्रा को सुगम और सफल बनाने वाले विषयों पर चर्चा करते है। आज चर्चा प्रारंभ करे उससे पहले आप सभी को दशहरा उत्सव की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। दशहरा उत्सव अपने शत्रुओं पर विजय पाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है । यह शत्रु हमारे शरीर के अंदर भी हो सकता है जैसे नशा और बुरी आदतें। बाहर भी हो सकता है जैसे जो लोग आपकी सफलता से खुश नहीं है और आपसे बैर रखते है।

इसी कारण इस पावन अवसर के उपलक्ष्य पर आज हम चर्चा करेंगे कि आचार्य चाणक्य ने शत्रु पर विजय पाने के लिए कॉन सी नीतियां बताई है। आचार्य चाणक्य को खुद भी शत्रु पर विजय पाने के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। आइए चर्चा करते है कि चाणक्य ने शत्रुओ पर विजय पाने के लिए कौन सी नीतियां बताई है।


साथियों जिन शत्रुओं को हम पहचानते है उनसे लड़ना और उन पर विजय पाना आसान होता है जबकि जो शत्रु आस्तीन के सांप होते है उन्हे पहचानना बहुत कठिन होता है जब पहचानना कठिन होता है तो उनसे जीतना और भी कठिन होता है। चाणक्य ने ऐसे शत्रुओं को पहचानने के लिए यह उपाय बताया है।

चाणक्य नीति के अध्याय 14 के श्लोक 10 के अनुसार जिसका बुरा करने की इच्छा हो, उससे सदा मीठी बात करनी चाहिए, जैसे शिकारी हिरण को पकड़ने से पहले मीठी आवाज में गीत गाता है। 

अर्थात हमे अपने शत्रु को मीठी बात करके उसे अपनी तरफ आकर्षित करना चाहिए। मीठी बात का आशय यह है कि ऐसी बात करना जो शत्रु को अच्छी लगे उसकी चापलूसी करे जिससे वह बहक जाए।, यह श्लोक आपके और शत्रु दोनो के लिए समान हितकारी है क्योंकि शत्रु के लिए इसलिए हित कारी ताकि वह अपने शत्रु का बुरा कर सके और आपके लिए इसलिए हित कारी है क्योंकि आप इस नीति के माध्यम से अपने आस्तीन के सांप को पहचान पाएंगे अर्थात हम यह भी कह सकते है जो हमसे मीठी और लुभावनी बात करे हमे उससे सावधान रहना चाहिए। हो सकता है वह हमे अपने जाल में फसाना चाहता हो। 

इस तरह के शत्रु से लड़ना आसान नहीं होता है सबसे पहले इन्हें पहचानना आसान नहीं होता और अगर समय रहते पहचान गए तो इनसे कैसे लड़ा जाए यह बहुत कठिन होता है। आचार्य ने इस तरह के शत्रु से लड़ने के लिया यह नीति बताई है 

चाणक्य नीति के अध्याय 3 के श्लोक 3 के अनुसार, समझदार व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपनी कन्या का विवाह किसी अच्छे कुल में करे, पुत्र को अच्छी शिक्षा दे। उसे इस प्रकार की शिक्षा दे, जिससे उसका मान सम्मान बढे।
शत्रु को किसी ऐसे व्यसन में डाल दे , जिससे उसका बाहर निकलना कठिन हो जाए। और अपने मित्र को धर्म के काम में लगाए। 

अन्य बातों पर उनके उनके चर्चित विषय के दिन चर्चा करेंगे आज हम इस श्लोक के शत्रु वाली नीति पर चर्चा करते है। इस श्लोक में आचार्य ने कहा है कि शत्रु को किसी ऐसे व्यसन में डाल दे जिससे उसका बाहर निकलना कठिन हो जाए। देख लीजिए आज से लगभग 3000 साल पहले भी आचार्य नशा के बुरे प्रभावों को जानते थे। इसीलिए मैं हमेशा इस पुस्तक को अपना मार्ग दर्शक मानता हु। अर्थात अपने शत्रु को मीठी और लुभावनी बातों से ऐसे नशे के जाल में फंसा दे जिससे वह उबर ही न पाए अपने नशे में हमेशा खोया रहे कभी भी आपके बारे में सोच पाने का मौका ही na mile। आज कल कई तरह के नशे बाजार में है जिनके जाल में।कोई फंस जाए तो जीवन भर उस नशे से नही निकल पाएगा।

लेकिन कभी कभी शत्रु से लड़ने में नहीं बल्कि उससे दूर जाने में ही ज्यादा समझदारी है जिससे आपकी जान बच सकती है जैसे 

चाणक्य नीति के अध्याय 3 के श्लोक 19 के अनुसार प्राकृतिक आपदा जैसे वर्षा होना और सूखा पड़ना अथवा दंगे-फसाद आदि होनेपर, महामारी के रूप में रोग फैलने, शत्रु के आक्रमण करने पर, भयंकर अकाल पड़ने पर और नीच लोग का साथ होने पर जो व्यक्ति सब कुछ छोड़-छाड़कर भाग जाता है, वह मौत के मुंह में जाने से बच जाता है। 

अर्थात अगर कोई शत्रु ऐसा है जो प्राकृतिक आपदा जैसा है जिससे आप जीत नही सकते वैसे शत्रु से लड़ने में कोई समझदारी नहीं है बल्कि उस शत्रु से दूर जाने में समझदारी है जिससे आपकी जान बच सके। क्योंकि वह शत्रु इतना ताकतवर है जिससे आप जीत नही सकते। एक अन्य श्लोक में आचार्य कहते है।


चाणक्य नीति के अध्याय 7 श्लोक 10 के अनुसार, बलवान शत्रु को अनुकूल व्यवहार तथा दुर्जन शत्रु को प्रतिकूल व्यवहार के द्वारा अपने वश में करे। इसी प्रकार अपने समान बल वाले शत्रु को विनम्रता या बल द्वारा, जो भी उस समय उपयुक्त हो, अपने वश करने का प्रयत्न करना चाहिए।  

चाणक्य ने तीन तरह के शत्रु की बात की है और यह बताया है कि इन पर कैसे विजय पाया जाए। 

जो शत्रु आपसे बलवान हो उसके साथ अनुकूल व्यवहार करना चाहिए। कोशिश करनी चाहिए कि ऐसे व्यक्तियों से ऐसा व्यवहार करे जो इस तरह के शत्रु को प्रसन्न कर सके जिससे इनके साथ जल्द से जल्द द्वेष खतम हो और वह बलवान व्यक्ति आपका मित्र बन जाए। 
 
जो शत्रु दुष्ट प्रवृति का हो उसके साथ प्रतिकूल व्यवहार करना चाहिए। इन्हे बलपूर्वक या जैसे भी संभव हो कुचल कर नष्ट कर देना चाहिए। जिससे अन्य व्यक्तियों को सबक मिले और कोई भीं आपका शत्रु बनने की हिम्मत न कर सके।

अंत में जो शत्रु आपके समान बलवान हो उसके साथ शत्रु के चरित्र और समय के अनुसार विनम्रता से या बलपूर्वक जिस व्यवहार से वह शत्रु आपके वश में आता है उसे वश में करना चाहिए।

इन दोनों श्लोक में एक छुपी हुई बात है कि हम शत्रु के साथ सुसंगत व्यवहार तब ही कर पाएंगे जब हम शत्रु के बारे में पूरी तरह जानेंगे। इसीलिए शत्रु के साथ सुसंगत व्यवहार करने से पहले उसके बारे में अच्छी तरह से जानकारी।प्राप्त कर ले कि शत्रु का चरित्र कैसा है वह कितना बलवान है। और वह आपका नुकसान किस तरह से और कितना कर सकता है। आधे अधूरी जानकारी से उठाया गया कोई भी कदम खतरनाक हो सकता है।

इसी के साथ आज चर्चा यही समाप्त होती है वीडियो या चैनल के लिए कोई सलाह , सुझाव या शिकायत भी हो तो कमेंट करे उसे आपका एक एक कमेन्ट हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अगर वीडियो अच्छी लगी हो तो Like कर हमे प्रोत्साहित करे। वीडियो को शेयर करे ताकि अन्य लोग भी इस वीडियो का लाभ उठा सके। धन्यवाद