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भगवद गीता कहानी 1 से 10


1 हिंदुओं का धार्मिक ग्रंथ महाभारत इसके बारे में कहा जाता है कि जो भारत में है वह महाभारत में है वह सब महाभारत में है और इन सब चीजों का उत्तर भी क्योंकि इसी महाभारत से निकला है महान गीता ज्ञान ऐसे उपदेश जो आपकी हर समस्या का हाल बताते हैं भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिया गया श्रीमद् भागवत गीता का ज्ञान हो जाएगा महाभारत से निकला है महान गीता ज्ञान जो आपकी हर समस्या का हाल बताते हैं फिर चाहे समस्या किसी भी युग कल्या समय की हो सबका एक ही निदान भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिया गया श्रीमद् भागवत गीता का ज्ञान।

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥5॥

BG 6.5: मन की शक्ति द्वारा अपना आत्म उत्थान करो और स्वयं का पतन न होने दो। मन जीवात्मा का मित्र और शत्रु भी हो सकता है।

 
 सीखना था और कभी भी बेवकूफी बड़े सवालों पर गुस्सा नहीं होता था इस लड़के का नाम संदीप डांसर रहने लगा था उसके पर हमेशा रहने वाली मुस्कान जैसेराहत और एक अजीब सी सड़नेस उसकी आंखों में बनी रहती है जानते थे कि अगर इस चीज में डिप्रेशन में पकड़ लिया तो जिंदगी खराब कर देगा इसीलिए उन्होंने संदीप से बात करने की सूची और एक दिन उसे दिन पर खाना खाने के बाद पंडित जी उसे साथ लेकर वॉक पर निकल गए फिर बातों बातों में उसकी परेशानी का कारण पूछा जिससे पहले तो वोट डालता रहा लेकिन फिर उसने अपनी परेशानी का रीजन बताएं तैयारी कर रहा था और लगातार मेहनत की बात भी तीसरी बार उसे फैलियर ही मिली थी जिसने उसकी हिम्मत पूरी तरीके से मेहनत के बाद भी तीसरी बार उसे फैलियर ही मिली थी जिसे उसकी हिम्मत पूरी तरीके से तोड़ दी थी डरने लगा था कि उसकी जिंदगी के 5 साल बस यूं ही वेस्ट हो गए और अब उसका कोई फ्यूचर नहीं होगा के बाद मिले ने उसे चौथे और आखिरी मौके के लिए भी मायूस कर दिया था वह अब आगे एग्जाम की तैयारी नहीं करना चाह रहा था और कहीं ना कहीं अपनी फिल्म के लिए खुद को ही गिल्टी मार रहा था यह सब सुनकर बृजभूषण जी ने तुरंत संदीप को श्रीमद् भागवत गीता का एक श्लोक सुनाएं गीता के दूसरे चैप्टर का 47 श्लोक है 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।
 

।।2.47।। कर्तव्य-कर्म करनेमें ही तेरा अधिकार है, फलोंमें कभी नहीं। अतः तू कर्मफलका हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यतामें भी आसक्ति न हो।
 


जब अर्जुन रणभूमि पर अपने सगे संबंधी अपने गुरु भाई और दोस्तों को देखकर युद्ध छोड़ देना चाहते हैंभगवान उसे गीता का उपदेश देते हैं और गीता का यह श्लोक तो संपूर्ण गीता की समरी जैसा ही है इसका अर्थ अगर समझ ले तो जीवन की सारी परेशानियां दूर हो जाए संदीप ने पूछा कि आखिर क्या है श्लोक का अर्थ और इसमें ऐसा क्या है जो आप इसे हर परेशानी का सॉल्यूशन बता रहे हैं इसका अर्थ है अर्जुन तेरा अधिकार कम करने में उसके फल में नहीं तू कर्म के फल के प्रति आसक्त न हो या कम न करने के प्रति प्रेरित ना हो सिंपल वर्ड्स में कहें तो हम में से हर कोई कुछ भी करने से पहले उसे काम के रिजल्ट के बारे में सोचता है जैसे बच्चे पढ़ाई शुरू करने से पहले फर्स्ट आने की विश करते हैं शाम तक मटेरियल पूरी तरीके से उसे हो जाने की विश करता है इंजीनियर नक्शा बनाने से पहले ही कोई मास्टरपीस बनाने की ख्वाहिश है कि आज का खाना खाकर तो उसका परिवार उसकी तारीफ करें हर कोई अपने हर काम से अच्छे से अच्छे फल की उम्मीद करता है जबकि हमारे हाथ में सिर्फ और सिर्फ अपना काम करना है उसका रिजल्ट क्या मिलेगा कैसा मिलेगा कैसे मिलेगा इस पर ना तो हमारा कोई कंट्रोल है और नहीं रखेंगे तो उसे काम के लिए मोटिवेशन क्या रह जाएगा ऐसे तो हम कोई भी काम बस टाइम पास के लिए करेंगेया अपने एफर्ट्स में कमी करें इसका मतलब यह है कि हम यह समझ ले कि हमारे कंट्रोल में सिर्फ हमारा काम है उदाहरण के लिए एक बच्चे का काम पूरे साल भर अच्छे से पढ़ाई करना है लेकिन परीक्षा का रिजल्ट और भी कई बातों पर डिपेंड करता है जैसे कई बार कॉपी चेक करने वाले के मोड पर भी ऐसे में यदि नंबर उसे बच्चों की एक्सपेक्टेशन से काम आ जाते हैं तो उसे ना तो अपनी एबिलिटी पर शक करना है नहीं आगे मेहनत करने में कोटा ही करनी है हमें हर हाल में अपना बेस्ट उसके बाद क्या होता है यह ईश्वर पर छोड़ देना है तब वह अपना काम कर रहा है लेकिन अगर सूखा पड़ जाए या उसकी फसल को कोई बीमारी लग जाए तब किस को अपने आप को इसकी वजह नहीं समझना चाहिए क्योंकि यह बात उसकी कंट्रोल में नहीं थी जीवन में बहुत कुछ ऐसा है जिस पर हमारा कोई वश नहीं है खुद पर और अपने कर्म पर हमारा पूरा वर्ष इसीलिए उसमें कमी नहीं रहनी चाहिए जब हम इस बात को समझ लेंगे तो जीवन की छोटी बड़ी बातों में हौसला नहीं आ रही खुद पर विश्वास रखेंगे और हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए तैयार रहेंगे परीक्षा की तैयारी करने का फैसला कर लिया थाकंप्यूटर ट्रेनिंग पूरी हुई और सिखाने वाली टीम को विदा किया जा रहा था तब संदीप ने सब कोई इकट्ठा किया और कहा हम सबको हमेशा कुछ ना कुछ सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए टीचर कहीं भी किसी भी रूप में मिल सकते हैं और हो सकता है कोई ऐसा टीचर मिल जाए जो लाइफ के लिए आपका एटीट्यूड ही बदलते हैं जिन्हें जीवन का बहुत एक्सपीरियंस है यह गुरु है बृजभूषण जी जिन्हें मैं आज से पंडित जी का कर पुकारूंगा क्योंकि पंडित का अर्थ होता है क्या ज्ञान देने वाला साथ ही गुरु दक्षिणा में मैंने उनके लिए एक ब्लॉक तैयार किया है इसका नाम रखा हैगीता ज्ञान 

3 बताओ आम डायमंड के बाद बृजभूषण जी उसे पंडित जी के साथ कुछ उल्टा ही हो गया जहां लोग आमतौर पर रिटायरमेंट के बाद समय काटने के लिए वह सारे काम करने लगते हैं जिसे जिंदगी भर वह बजाते रहे थे जैसे कि सुबह शाम घूमने जाना आज पड़ोस में दोस्त बनाना पौधों में पानी डालना वगैरा लेकिन पंडित जी का हाल कुछ उल्टा ही था उनके पास उनका गीता ज्ञान का ब्लॉक था जिसके जरिए उन्होंने जाने कितने लोगों से दोस्ती कर ली थी उनकी कंप्यूटर स्क्रीन की छोटी सी खिड़की थी जिससे वह सारी दुनिया को देख सकते थे अपनी बातें कह सकते थे दूसरों की सुन सकते थेअपना सीखा दूसरों को बांटने की और दूसरों से सीखने की उनकी भूख थी पंडित जी को कभी पता नहीं चलने देती थी कि अब धीरे-धीरे बुढ़ापा उनकी हड्डियों पर हावी हो रहा है जिंदगी धीरे-धीरे रेप की तरह नमस्कार दोस्तों आप सुन रहे हैं और अब आगे की बात रोज जाने कितने लोग ईमेल के जरिए पंडित जी से अपनी जिंदगी की परेशानियों का हाल मांगते और अपने गीता ज्ञान से हर बार कोई ना कोई ऐसा हीरा निकल ही लेट थे जो अंधेरी रात जैसी मुश्किल में भी उजाले की किरण भी खीर देता लेकिन कई बार दूर के लोगों को समझना आसान होता है अपने आसपास के लोगों को बिल्कुल नहीं तब आप भी उनके दुख में दुखी होते हैं और तब उनके साथ आपको खुद को भी समझाना होता है जो की दुनिया का सबसे मुश्किल काम है पंडित जी भी कल रात से ऐसे ही एक दिलवा में उनके बहुत खास दोस्त रविकांत दुख की नदी में डूब रहे हैं और पंडित जी को समझ नहीं आ रहा है कि कैसे अपने दोस्त को डूबने से बचाए क्या उनके मन को हिम्मत मील खाने जाते भी हैं तो अपना ही गला रूमैसा हो जाता है आंखों के आगे आ जाती है उनकी पत्नी है रविकांत है और रविकांत की पत्नी रश्मि है जो कल अचानक से उनके दोस्त को अलविदा कहकर अनंतारा पर निकल गई है उनके दोस्त को इसके बारे में तमाम मित्र मंडली मजाक बनाती थी कि वह तो किसी के सपने में भीबिना रश्मि और रविकांत की कहानी याद करके पंडित जी बार-बार भाव खो जाते हैं कुछ 40 बरस पहले नई-नई शादी करके यह दोनों इस मोहल्ले में किराए का मकान लेकर रहने आए थे दोनों ही बैंक में काम करते थे और कुछ काम की विशेषता तो कुछ नए होने के संकोच के कारण मोहल्ले के काम ही लोगों से उनकी जान पहचान हो पाई थी पंडित जी के दोनों बेटे तब बहुत छोटे थे और रविकांत से पहले उनकी दोस्ती उन दोनों से हुई थी शायद इसका कारण रविकांत का बच्चों से बहुत प्रेम करना रहा हूं धीरे-धीरे बच्चों की यह दोस्ती उनके मां-बाप तक पहुंची और यह चारों भी आपस में बहुत अच्छे दोस्त बन गए ईश्वर के खेल भी अजब निराले जी रविकांत को बच्चों से आधार प्रेम था उसी को औलाद के सुख से वंचित रखा पंडित जी की पत्नी के साथ रश्मि ने जाने कितने डॉक्टर के चक्कर लगाए कितने मंदिरों में माता ठेका जाने कितने दिन भूखे रहकर व्रत उपवास किया लेकिन औलाद भाग्य में नहीं थी तुम नहीं मिली रश्मि के आगे यह जाहिर नहीं होने दिया की संतान न होने का बल्कि वे टू रश्मि को समझाते रहते कि उसे सच को स्वीकार कर लेना चाहिए और एक कमी के पीछे जीवन की बाकी खुशियों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए हालांकि रश्मि को यह मलाल सदा रहा कि वह मन नहीं बन सकी और वह हमेशा अपनी ममता पंडित जी के दोनों बेटों पर लुटती रहे समय के साथ दोनों परिवारों की दोस्ती और मजबूत होती है कि वह मां और वह हमेशा अपनी ममता पंडित जी के दोनों बेटों पर लुटती रहे समय के साथ दोनों परिवारों की दोस्ती और मजबूत होती गई और हर सुख दुख एक दूसरे के सहारे आराम से निपटा रहा उन दोनों में अलग तरह का प्रेम और समर्पणभाव था ऐसा लगता था कि जैसे दोनों की ही पर्सनालिटी एक ही रंग से लिखी गई थी उनके मन एक ही सांचे में डाले गए थे एक दूजे के बिना उन दोनों की कल्पना भी नहीं हो सकती थी और आज वही जोड़ा टूट गया था जो अकेला छूट गया था उसके बाकी बचे जीवन की कल्पना भी अब मन में सेवन पैदा कर रही थी तरह बड़ी मुश्किल से रविकांत को सहारा देकर उन्होंने अंतिम क्रिया से जुड़ी भी दिया करवाई थी रविकांत का हाल ऐसा था कि जिसे देखकर पत्थर भी पिघल जाए उसका विलाप उसके आंसू देखकर तो मौत के देवता की आंखें भी बधाई होगी कभी मजाक में शायद रश्मि ने रविकांत से कहा होगा कि अंत समय में उन्हें गंगा किनारे जलाया जाए और उनकी अस्थियां मां गंगा की गोद में पाई जाए तो उनकी इसी इच्छा का सम्मान करते हुए रविकांत ने पंडित जी से रश्मि को हरिद्वार ले जाने की बात करें और इंतजाम करने का अनुरोध किया हरिद्वार के पूरे रास्ते जैसे रविकांत उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि मानो यह दुख में डूब जाना चाहते हैं ना उनके उभरने की शक्ति बची थी और नहींरविकांत को कुछ होश नहीं था कि कब लोगों ने जबरदस्ती उनसे अंतिम क्रिया की रस्में करवाई और कब उन्होंने किसी और के सहारे से खड़े होकर रश्मि को अंतिम विदा देकर अग्नि के हवाले कर दिया उनकी नजरों के सामने बस रखी और बेजान संस्कार के साथ आए लोगों के लिए पंडित जी ने नाश्ते का इंतजाम करवा दिया था तब उधर बिजी थे और रविकांत अकेले एक पेज पर बैठ जाने दुख की कितने गहरे समंदर में डूबे जा रहे थे दूर खड़े पंडित जी यह सब देख रहे थे उन्होंने तय किया कि उन्हें रविकांत को इस समय से बाहर लाना ही होगा उन्हें सच को स्वीकार करने का हौसला देना ही होगा क्योंकि अगर यह अभी ना हुआ तो कभी नहीं हो सकेगा के पास जाकर उन्होंने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा और उनकी आवाज में भागवत गीता का ही श्लोक 

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥

श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं: इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते हैं और अग्नि इसे जला नहीं सकती है | जल इसे गीला नहीं कर सकता है और वायु इसे सुखा नहीं सकती है ।।

जनता को विकास का अर्थ क्या है लोग का अर्थ है आत्मा को सकता है ना हवा उसे सुख सकती है आत्मा हजार और हमारे शोक श्रीमद् भागवत के दूसरे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से अमृत बनाकर बरसे और जिसकी ज्ञान गंगा में भीगने वाला हर मां मोक्ष पा लेता है रविकांत का ध्यान आज सुनी हुई सारी बातों में बस इसी बात में थोड़ा साउन्होंने पंडित जी से पूछा कि उनके सुनाएं श्लोक का यहां क्या मतलब है क्या संबंध है क्योंकि तुम शरीर और आत्मा का फर्क भूल रहे हो मेरे दोस्त अपनी प्रिय पत्नी के शोक में तुम्हें सच को अनदेखा कर रहे हो कि उसका सिर्फ शरीर नष्ट हुआ है दिवाली आत्मा नहीं क्योंकि आत्मा तो फजर रहमान है एक शरीर से और मिट्टी में जान फूंकने चली गई है उसके लिए शो करना बेकार है यह उसे आत्मा का अपमान भी है उसे सम्मान के साथ विदा करना ही समझदारी है यही बात हमें गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को समझने के बहाने समझ रहे हैं हमारे मोह माया के बंधन हमें सच्चे लगते हैं और यह वही सच है जिसे भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया है की आत्मा अजर और अमर है इसीलिए शरीर के प्रति प्रेम रखना व्यर्थ है तुम्हारी रश्मि की देवी का साथ तुम्हारे साथ बस यही तक कथा से उसके साथ कुछ शिकार किया था माता-पिता बेटा पति पत्नी यह सब रिश्ते दिल से जुड़े अभिनेता की तरह बस किरदार निभाने तक देख में रहती है किरदार तो आत्मा भी किसी और किरदार को निभाने निकल जाती है जो अब तक जिया उसकी अच्छी यादों को समय वही जीवन की कमाई उसी के सहारे आगे का जीवन काटना है उसे आत्मा को प्रणाम करो और खुद को शरीर के मुंह से आजाद करो पंडित जी की भागवत गीता के श्लोक की व्याख्या सुनकर रविकांत के मन को ऐसी हिम्मत मिली को किसी मजबूत हाथ का सहारा मिल गया जीवन के लिखे को स्वीकार करने की प्रेरणा ने जैसे उसके डगमगाते कदमों में ताकतवर थी उसने तय किया कि अपनी मर चुकी पत्नी की यादों को सम्मान देते हुए अब उसकी मृत्यु की सच्चाई को भी सम्मान देगा और साथ ही और भी गहराई से श्रीमद् भागवत गीता के ज्ञान को समझेगा इधर खुद पंडित जी का मंदिर उन्होंने मन ही मन श्रीमद् भागवत गीता और भगवान श्री कृष्ण को प्रणाम किया उनका धन्यवाद दिया कि उन्होंने गीता के रूप में मनुष्य के लिए हर मुश्किल परिस्थिति का हाल पहले से ही बता दिया है बस उसे ढूंढने और समझने की जरूरत है 


4 पंडित जी ने गीता ज्ञान ब्लॉक जब से लिखना शुरू किया मैं बहुत सारे बदलाव आए हैं हर बदलाव अच्छा हो यह जरूरी है लेकिन उनके साथ इस मामले में लगभग सारे बदलाव अच्छे ही होंगे वैसे तो उन्हें बचपन से ही गीता में गहरी दिलचस्पी थी लेकिन जब से ब्लॉक पर लिखना शुरू किया तब से असल जिंदगी में इसके प्रयोग को लेकर उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला है जो कि आप और हम पर यहां सुन रहे हैंतब अपना ऑपरेशन खुद नहीं कर पता नै अपने बाल खुद नहीं कट पता और इससे भी सेटिंग एक और कहावत के घर की मुर्गी दाल बराबर होती है लगभग यही हाल पंडित जी के घर का है उनकी पत्नी के अलावा उनके घर में दो बेटे हैं जो अच्छे पढ़े लिखे समझदार और अच्छी नौकरियों पर है लेकिन जब बात पिता के अनुभव सुनने और उनकी सलाह मानने पर आती है कभी नहीं बेटों को अपने पिता की सोच पुराने जमाने की लगने लगती है समय ऐसा आया जब पंडित जी को लगने लगा कि उनके बच्चों को न सिर्फ गीता के ज्ञान जन बल्कि अपनी जिंदगी में उतरने की भी सख्त जरूरत है 5 साल 2020 की है वही साल जब कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को अपने घटक पंजों में जाकर लिया पूरी दुनिया इसके ढंग से कर रही थी हर देश हर व्यक्ति ऐसा भयानक मंजर शादी में पहली बार देखा था बीमार थे उन्हें बीमारी ने तबाह किया जो बीमारी से बच भी गए उनके रोजगार खतरे में आ गए लोगों को घरों में सीमेंट कर काम करना पड़ा और लगभग हर इंसान का मानसिक स्वास्थ्य किसी न किसी हद तक प्रभावित हुआ उनकी पत्नी हर वक्त परेशान रहती कि कहीं उनके परिवार में किसी कोई बीमारी ना हो जाए बेचारी हमेशा होताअपने दोनों बच्चों की चिंता में रहती है जो दूर दूसरे शहरों में लॉकडाउन के कारण फंसे हुए किसी तरह कोशिश करके पंडित जी का छोटा बेटा अभिनव अपने शहर वापस आते हैं उसकी ऑफिस में घर से काम करने की सुविधा दी रखी थी इस बात से पंडित जी की पत्नी को थोड़ा सुकून तो मिला कि चलो कम से कम एक बेटा तो आंखों के सामने उसकी मां ने ऐसे उठाया मानो बेटा ना हो कोई वीआईपी घर बैठे खुद को और अपने परिवार को संभालने की सलाह मांगता तो कोई दिमाग की शांति के उपाय तलाशता हुआ उनके बॉक्स में दस्तक देता कुल मिलाकर हर तरफ बस एक अजीब उदास आई का पंडित जी ने नोट किया कि उनका बेटा थोड़ा बदला सा लग रहा है मां के लाड का जवाब कभी जलाकर तो कभी चिड़चिड़ा स्वर में देता है उसे 5 साल के बच्चे की तरह व्यवहार मत करो मां से कहकर अपने कमरे में मंगवा दे इधर पिछले कुछ दिनों से उसके फोन पर चिल्लाने की आवाज में बाहर तक आने लगी थी शुरू में पंडित जी ने सोचा कि काम का तालाब होगा वैसे ही आजकल सब का समय खराब ही चल रहा है लेकिन हर बीते दिन के साथ उनके बेटे का व्यवहार और ज्यादा चिड़चिड़ा और कुछ पूछो तोवह चिल्लाने पंडित जी ने कई बार बेटे से बात करने की उसे समझाने की कोशिश की लेकिन वह भी बेकार हो गई एक दिन तो हद ही हो गईये तो बेटे के कमरे से फोन पर चिल्लाने की और फिर कमरे की चीज पटने की आवाज आने लगी पंडित जी और उनकी पत्नी ने दरवाजा खटखटाया लेकिन बेटे ने उन्हें चिल्ला कर उसके मामलों से दूर रहने को कहा बड़े बेटे से फोन पर यह परेशानी बाती तो उसने भी यही कहा कि आजकल हर कोई परेशान है नौकरियां खतरे में है खुद को सबसे बेहतर साबित करने का ऐसा दबाव है कि लोग इसे संभाल नहीं पा रहे उसे थोड़ा समय दीजिए वह खुद ही ठीक हो जाएगा एक रात जब पंडित जी पानी पीने की क्षमता गए तो उन्होंने अभिनव के कमरे की लाइट चली गई तो उनका लाडला बेटा घुटनों में सर्दी हो रहा है उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ और वह तुरंत अंदर चले गए बेटे के सर पर हाथ पैर कर पूछा कि क्या हुआ अपने पिता के प्यार से छूने से अभिनव को जाने क्या महसूस हुआ पंडित जी ने उसे सीने से लगा लिया बेटे का यह हाल देखकर उनका कलेजा थोड़ी देर में सामान्य होकर अभिनव बोला उसने सब खराब कर दिया पापा पता नहीं मुझे क्या हो गया है मुझसे बर्दाश्त नहीं होता मुझे उस के मारे भूल जाता हूं कि हम सब इंसान है सब बुरे दौर से गुजर रहे हैं ऐसे में अगर किसी ने जाने अनजाने गलतियां कर दी थी तो उसे नजरअंदाज कर देना चाहिए आप ही बताओ पापा मैं क्या करूं पंडित जी ने बड़े प्यार से अपने बेटे के सर पर हाथ फेरते हुए कहाना और मानना चाहो तो मैं तुम्हें वह बताता हूं जो भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था और जिस मान्य भर से तुम्हारी यह समस्या अपने आप दूर हो जाएगी तो सुनोगे आप बताओ मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आपकी हर बात को समझो और उसे अमल मेल अभिनव पंडित जी ने श्रीमद् भागवत गीता का यह श्लोक

क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।

स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2.63।।
 

।।2.62 -- 2.63।। विषयोंका चिन्तन करनेवाले मनुष्यकी उन विषयोंमें आसक्ति पैदा हो जाती है। आसक्तिसे कामना पैदा होती है। कामनासे क्रोध पैदा होता है। क्रोध होनेपर सम्मोह (मूढ़भाव) हो जाता है। सम्मोहसे स्मृति भ्रष्ट हो जाती है। स्मृति भ्रष्ट होनेपर बुद्धिका नाश हो जाता है। बुद्धिका नाश होनेपर मनुष्यका पतन हो जाता है।
 

 अभिनव को सुनाया क्रोध भगवती सम्मोहक सम्मोहन स्मृति विवाद हो ओटी वां श्लोक इसका अर्थ है क्रोध से मनुष्य की माटी यानी बुद्धि मारी जाती है मतलब वह मूड हो जाती है इससे याददाश्त नष्ट हो जाती है याददाश्त नष्ट हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही नाश कर बैठता है इस लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को यह समझ रहे हैं कोई भी युद्ध से आपको अपनी इंद्रियों को भी अपने नियंत्रण में रखना सीखना वरना आपके हारने के लिए बाहरी दुश्मनों की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी आप खुद के ही दुश्मन बन जाए क्योंकि गुस्सा आते ही हम सबसे पहले अच्छे बुरे का विवेक खो देते हैं सामने कौन है उसके सम्मान की परवाह के बिना बातें बोलने लग जाते हैं या कोई ऐसा कदम उठा लेते हैं जिससे हमें पछतावे की सिवाय कुछ और नहीं मिलताक्रोध बड़े से बड़े वीरों के बाल को भी एक पल में समाप्त कर देता है बड़े-बड़े ज्ञानियों के ज्ञान को खत्म कर देता है और जीवन भर के कमाई पुणे और सम्मान को एक पल में चकनाचूर कर देता है इसीलिए सबसे पहले अपने क्रोध को जितना की लड़ाइयां जीत पाओगे लेकिन मैं कैसे करूं पापा हां हो सकता है छूट है गलत काम तो करता है अपने दिमाग को यह मैसेज देखकर चाहे कुछ भी हो जाए सिचुएशन हो अपना अपन नहीं होना है दूसरों की जगह खुद को रखकर देखने की आदत बनानी है और अगर किसी से कुछ ऐसा हो भी जाए जो गलत हो हमारा नुकसान हुआ हो तब भी पूरी कोशिश करनी है कि उसे के बजाय शांति और धैर्य से अगले को इसका एहसास कराया जाए पिता की प्यार भरी जीवन और गीता ज्ञान की ठंडी बुखार से अभिनव गण एकदम शांत हो गया था वह जानता था कि एक दिन में खुद को नहीं बदल पाएगा के श्लोक और उसके अर्थ के अनुसार अगर हर पूरी तरह बदलने और एक बेहतर इंसान बनने में कामयाब हो जाएगा बदले नजरिया की पहली शुरुआत में अभिनव से माफी दिल उन्हें कितनी बार दुखाया था और मन से अपने मन को पूरी तरह कंट्रोल करने का प्रॉमिस किया ताकि वह किसी और का दिल न दुखा है पंडित जी ने एक बार फिर भगवान श्री कृष्णा और श्रीमद् भागवत गीता को मन ही मां प्रणाम किया और हर बार हीरा दिखाने का आभार जाता है और आप भी गीता ज्ञान सुन रहे हैं 

विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।

निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति।।2.71।।
 

।।2.71।। जो मनुष्य सम्पूर्ण कामनाओंका त्याग करके स्पृहारहित, ममतारहित और अहंकाररहित होकर आचरण करता है, वह शान्तिको प्राप्त होता है।
 देने वाले बाबा जी के उपदेशों का कलेक्शन नहीं था तंत्र-मंत्र से आपके जीवन की प्रॉब्लम सॉल्व करने की गारंटी देने की बात कहता था पंडित जी सीधे सरल शब्दों में श्रीमद् भागवत गीता के श्लोक का अर्थ और उन्हें किस तरह असल जिंदगी में उतर जाए यह बताते थे पढ़ने वाले उनसे अरगुमेंट भी करते थे कि यहां पर ऐसा कहा गया है पंडित जी हर सवाल का स्वागत करते हैं क्योंकि सवालों से जवानों के रास्ते खोलते हैं कई बार सवाल हमें उसे जवाब तक ले जाते हैं जिसे हम ना तो पहले सोच पा रहे थे ना किसी बात को देखने का ऐसा नजरिया बन पा रहे थे ऐसा नहीं था कि पंडित जी का गीता ज्ञान बस उनके ब्लॉक तक ही सीमित था अभी भी अपने दोस्तों के बीच सुबह शाम की सैर या हर शाम पार्क में जमने वाली बैठक में कभी-कभार स्पिरिचुअल डेबिट कर लेते थे वहां भी उन सब में अक्सर मतभेद होते लेकिन मनभेद कभी नहीं बड़ा कपड़ों का बिजनेस था जिसे अब उनके बेटे संभालते थे वर्मा साहब ने तो अब खुद को पूजा पाठ और दान पुण्य तक ही सीमित कर लिया था शहर की कोई धर्मशाला कोई मंदिर कोई सरकारी स्कूल ऐसा नहीं था जहां वर्मा साहब की दान की हुई कोई चीज ना होपता चलेगा कि कोई चीज वर्मा साहब ने दी है तो उसके लिए वाटर कूलर पंखे वगैरा दान की हुई चीजों पर हर दानी की तरह उसका नाम जो लिखा रहता था रोज शाम की बैठक में वर्मा साहब अपने किया दान पूर्णिमा की बातें करते हैं ऐसा करने के पीछे उनका शायद कोई स्वार्थ ना हो बस आदतन कर देते थे लेकिन बाकी के बुजुर्गों को ऐसा महसूस होता कि वह अपने अगले जन्म के लिए कुछ भी पूर्ण नहीं कमा पा रहे हैं अब सब लोग वर्मा साहब की तरह तो पैसे वाले हैं नहीं अभी भी घर की जिम्मेदारियां से गिरे हुए हैं और दान तो कोई तब करें जब फैमिली की ज़रूरतें पूरी सब कुछ विरासत में मिलाओ उनके पिता की शहर के बड़े चौराहे पर एक छोटी सी किरण की दुकान थी और फैमिली बड़ी थी तो बसर करने वाले हालात आया लेकिन मजबूरी थी यह तो पढ़ाई करो या दुकान संभालो वर्मा साहब छोटी सी उम्र से दुकानदारी करने लगे थे और जिंदगी घर और दुकान के बीच अचानक उनके पिताजी पूरे परिवार को बांधे हुए थे उनके बाकी भाई तो पढ़ाई में बिजी थे और उनकी पढ़ाई के सारे खर्चे इस छोटी सी दुकान पर ही डिपेंड करते थेछोटी सी उम्र में एक तरह से पूरे परिवार की जिम्मेदारियां वर्मा साहब पर आ गई और कम उम्र में पड़े बोझ ने उन्हें वक्त से पहले ही सीरियस बना दिया था अपनी मेहनत और बिजनेस माइंड के दम पर वर्मा साहब ने एक छोटी सी दुकान से शहर के सबसे बड़े कपड़ा व्यापारी तक का सफर तय किया था आज उनके बेटों के पास एक सफल कारोबार है सारे सुख और सम्मान होने के बाद भी वर्मा साहब के चेहरे पर सुकून गायब रहता है लेकिन उनके सामने वाले को अच्छा ना लगे उन्हें वक्त से पहले ही सीरियस बना दिया था अपनी मेहनत और बिजनेस माइंड के दम पर वर्मा साहब ने एक छोटी सी दुकान से इस शहर के सबसे बड़ेकपड़ा वय अर्जुन के बेटों के पास एक सफल कारोबार है जिसकी नींद उनके पिता के पसीने की पंडित जी अक्सर एक बात नोट करते थे तमाम पूजा पाठ और दान पूर्णिमा के बाद भी किसी से जुकाम बुखार की बात पूछना अलग बात है लेकिन उनके बिना कहे चेहरे से छाती टेंशन का जिक्र करना सामने वाले को अच्छा ना लगे पार्क में आना कम कर दिया पूछो तो बता दे की तबीयत थोड़ी सही नहीं लगती कुछ और ही था उसका पता पंडित जी को जल्द चलने वाला था जब लगातार एक हफ्ते तक नहीं है कि क्यों ना उनके घर चला जाए उनका हाल पूछा जाए जिसके पास जब समय था उनके घर मिलने गया समय निकालकर पंडित जी भी गए और वहां जाकरनहीं मन की परेशानी थी जिसे वह किसी से भी बात नहीं रहे थे थोडा एकांत मिलने पर आखिर पंडित जी ने वर्मा साहब से पूछ लिया की वजह क्या है क्यों हमेशा उनका मन अशांत ऐसा लगता है कि इसके पीछे परिवार या कारोबार की कोई समस्या है वर्मा साहब जैसे किसी के इस तरह के सवाल पूछने के इंतजार में ही थे और पंडित जी के प्रति तो उनके मन में बड़ा सम्मान था ही जानते थे कि पंडित जी बहुत सुलझे हुए इंसान है की मां को समझने वाले और समझने वाले भी हैं यार पंडित मेरा मन हमेशा शांत रहता है मैं कितना भी पूजा पाठ करूंगा लेकिन मुझे शांति नहीं मिलती मुझे हर वक्त यही लगता है कि मुझे कुछ कमी रह रही है मेरी पूजा ईश्वर तक पहुंच नहीं रही है मेरे दान मेरे अगले जन्मों के लिए पुणे में नहीं बदल रहे हैं और मैं सब कुछ करते हुए भी कुछ छुपा रहा हूं पंडित जी ने एक लंबी सांस भरी और फिर गीता का यह श्लोक का मन यह कारवां कुमार उसे ही शांति प्राप्त होती है और कामनाओं को त्याग कर ममता रहित और अहंकार रहित होकर अपने कर्तव्यों का पालन करता है उसे ही शांति प्राप्त होती है अब सरल शब्दों में इसका मतलब जब हम कोई भी काम करते हैं चाहे वह अपना रोजमर्रा का काम हो या किसी की मदद करने जैसा काम यदि हम किसी भी तरह के स्वार्थ या अहंकार से भरकर करते हैं। तब हम निस्वार्थ भावना से दान नहीं कर रहे हैं हो सकता है अपने बच्चों को भी अपना इन्वेस्टमेंट नहीं समझना चाहिए की तरह से उसे काम का सुकून नहीं मिल पाता अब जैसे हम किसी की मदद करना चाहते हैं देखा जाए तो यह बहुत अच्छा विचार है लेकिन इसके साथ ही हम यह भी सोचते हैं कि भाई हमारी हो इस मदद या दान के बदले हमें पुणे में ले हमारे पाप कटे तब हम निस्वार्थ भावना से दान नहीं कर रहे हैं इसीलिए हो सकता है कि हमें पुणे तो मिल जाए लेकिन शांति ना मिले यह रूल जीवन के हर काम पर लागू होता है अपने बच्चों को भी अपना इन्वेस्टमेंट नहीं समझना चाहिए कि आज हमने अच्छे से का लेंगे तो कल हमारी केयर करेंगे हम दान करते हैं क्योंकि हम काबिल है लेकिन उसके बदले ही उम्मीद रखना इसके बदले हमारा प्रचार होगा घमंड की निशानी करते जहां घमंड हो उसे हृदय में सुकून को भी जगह नहीं मिलती काम करना किसी की मदद करना हमारा फर्ज है जिसे पूरा करना हर किसी की जिम्मेदारी है इसके बदले कुछ मिलने की एक्सपेक्टेशन रखना गलत है आपको लगता है कि आपके परिवार को आपके प्रति थैंकफूल होना चाहिए एक समय के बाद करना बंद कर देंगे लेकिन आप उनसे हर समय ही सुनना चाहेंगे ऐसा न होने पर आपको दुख होगा जबकि देखा जाए तो आपने किसी पर कोई एहसान नहीं कियाआपने जो किया वह परिवार के सदस्य होने के नाते आपकी रिस्पांसिबिलिटी थी हर कोई अपने परिवार और समाज के प्रति इसी तरह अपनी रिस्पांसिबिलिटी में रहता है आप पूजा पाठ करते हैं इस भगवान के प्रति हमारा फर्ज ही है जिसने हमें मनुष्य के रूप में जन्म दिया और इस धरती के सभी सुख भोगने का अवसर दिया अपनी पूजा का प्रदर्शन करके भी हम उसे सुख से ध्यान दो बैठते हैं इसीलिए कोई भी काम बिना घमंड और सेलफिशनेस के किया जाना चाहिए तब मां पर किसी तरह का बोझ नहीं होता हम जानते हैं कि हमने अपना काम अच्छे से किया है बाकी उसका फल जो भी मिले उसे ईश्वर और किस्मत पर छोड़ देना चाहिए लोगों द्वारा उनके एफर्ट्स को स्वीकार जाने उनका गुणगान किया जाने की इच्छा रही और जब इसमें कहीं कोई कमी थी उनके मन का सुकून छिन गया मुझे समझ आ गया है कि शांति की राह बिना किसी अहंकार और स्वास्थ्य के लिए काम में है उनके चेहरे पर थोड़ा सुकून लगने लगा था देर आए दुरुस्त आए वाला एक और मां को जीवन का सही रास्ता मिल गया उन्होंने मन ही मन भगवान श्री कृष्णा और श्रीमद् भागवत गीता को प्रणाम किया और मुस्कुराते हुए अपने घर की ओर निकल पड़े और आप जोअभी 

6 महासागर से कुछ मूर्ति भी हम सुन पाए तो समझिए जीवन सफल हुआ आज के लिए बस इतना ही बाकी कल इतना लिखकर बृजभूषण पंडित जी ने अपने गीता ज्ञान ब्लॉक की पोस्ट को और किया पर आप जाएंगे सवाल भेजते रहते हैं जिनका इंतजार भी उन्हें हर दिन रहता ही है अपनी कहानी किसी ने भेजी पंडित जी के मन को उल झाकर पंडित जी आपको कोई सवाल ना भेज कर अपने जीवन की अब तक की कहानी भेज रहा हूं और आपसे उम्मीद करता हूं कि आप इसे पढ़ कर अब मुझे आगे अपने जीवन में क्या करना चाहिए इस बारे में बताएंगे मेरी कहानी कुछ इस तरह से है मेरा नाम उदय है मैं उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव से हूं मेरे पिता कोई बड़े इंसान तो नहीं थे लेकिन एक बात जो मैं अपने बचपन की यादों के आधार पर कह सकता हूं तीनों भाई बहनों को कोई कमी नहीं होने दे हालांकि उनका सैया हमारे सर से बहुत जल्दी उठ गया था उसे वक्त मेरी उम्र शायद 10 साल की रही होगी और मुझसे बड़ी बहन और भाई 12 और 15 साल के रहे होंगे सबसे छोटा होने की वजह से मैं अपने पिता का लाडला था ऐसा मेरी मां कहती है और कहीं ना कहीं मैं भी इस बात को महसूस करता था तभी तो पिताजी के अचानक चले जाने का सदमा कई साल तक मेरा मन संभल नहीं पाया था लेकिन मैंने कई बार अपने मां और मां की बातों में सुना कि उनके सौतेले भाइयों ने जमीन के लालच में उन्हें मरवा दिया था हमारे पूछने पर मां ने हमेशा इस बात को डाल दिया बल्कि हमें कसम दीबारे में जिक्र नहीं करेंगे पिताजी की मौत के बाद मन एकदम बदल गई थी और लगभग हर दिन जब हम पढ़ने बैठते तो मां कहती कि जल्दी से पढ़ लिखकर इस काबिल बन जाओ किस गांव से बाहर जा सकूं मैं नहीं चाहती कि तुम लोग यहां ज्यादा वक्त रहो हिदायत थी की पढ़ाई के अलावा हमें और किसी बात पर ध्यान नहीं देना है अक्सर मेरे सोने के बाद बड़ी बहन और भाई कुछ बातें करते हैं और हमारे पास खेतों के नाम पर बस टुकड़े ही बचे हैं हमारा पेट भर रही है इन सब बातों को सुनकर मुझे बहुत दुख होता लेकिन मैं किसी से पता नहीं सकता था मां का सख्त ऑर्डर था और वैसे भी मेरा दुख सुनने वाला था ही कौन समय के साथ बड़ा भाई आगे की पढ़ाई करने के लिए शहर चला गया था बहन ने आगे पढ़ाई की जगह सिलाई सीखने की इच्छा बताएं मां ने उसे पड़ोस के गांव की स्टिचिंग सेंटर में एडमिशन दिलवाती है मैन खुद उसके साथ जाती है और उसकी वापसी के वक्त तक केंद्र के बाहर बैठकर इंतजार करती फिर दोनों साथ ही वापस आते में बहन को चढ़ता की इतनी बड़ी होकर के भी अकेले आज नहीं सकती मैं नहीं जानता था की मां किस देश से उसके साथ जाती थी मैं हर वक्त मन से बस यही सुना कि किसी तरह इस गांव से निकल जाना है खेतों के नाम पर जो चांद टुकड़े बच्चे थे मैन उनमें बहुत मेहनत से फसल लगती हालांकि उनसे फसल के नाम पर कुछ भी ना निकलता लेकिन मन उनके नहीं छोड़ना चाहती थी कि उनके स्वर्गवासी सास ससुर और पति की निशानी है यह खेत हो सकेगा आबाद रखूंगी तुम्हें काम करती उनके चेहरे पर अजीब सा डर और उदासी फैल जाती इस दौरान भाई की ठीक-ठाक नौकरी लग गई थी तो उसकी मदद से घर के हालात समझने लगे थे फिर इसकी पूरी हो गई थी और मामा ने बहन के लिए भी कोई अच्छा रिश्ता देखकर उसकी सगाई करवा दी थी अब मुझे भी गांव से बाहर जाकर आगे की पढ़ाई करनी थी बहन की शादी के बाद मन को एकदम अकेले ही गांव में रहना होगा बहन की शादी के बाद मन को एकदम अकेले ही गांव में रहना होगा इस सोचकर मुझे बहुत बुरा लगता था कि लाख समझाने पर भी मन हमारे साथ शहर नहीं है कि वह खुश है कि हम लोग गांव से निकल गए अब वह आराम से रह सकती है गांव के घर में पिताजी की यादें हैं जिन्हें छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे जैसे मंदिर जाकर शांति मिलती है उन्हें इन खेतों में वही शांति मिलती थी मुझे गांव से निकले कई साल बीत गए हैं अच्छी नौकरी पर हूं मेरे भाई बहनों के अपने परिवार है और मां अब भी गांव में है लेकिन मेरे पिता के सौतेले भाई और उनके बच्चे उसे परेशान करने लगे हैं अनचंद खेतों के लिए जो हमारे हैं जिन पर मेरी मां ने इतने साल अपना प्यार लुटाया है जो की वजह हैसब बातें मुझे गांव से शहर मिलने आए एक दोस्त ने बताई है मेरे भाई का कहना है की मां कभी नहीं जाएंगे कि हम किसी लड़ाई में पढ़े और वह भी नहीं चाहता क्योंकि अब उसकी अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारियां हैं वह उन्हें निभाना चाहता है कुछ जमीन के टुकड़ों के लिए उन जंगली लोगों से नहीं लड़ना चाहता है उनके लिए हमारे पिताजी की जान ले ली थी पंडित जी मेरी कहानी यहीं पर रुकी है मुझे क्या करना चाहिए कि यह सब नजरअंदाज कर देना चाहिए पत्र को अच्छे से पढ़ कर उसकी स्थिति को समझ कर पंडित जी ने उसे जवाब देखा तुम्हारी जीवन कथा पड़ी संघर्षों ने मुझे प्रभावित किया अब जो सिचुएशन तुम्हारे सामने सवाल बनकर खड़ी है मां श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था अरे लिए गीता ज्ञान के महासागर से यह मोदी चुनकर लाया हूं इसे ध्यान से पढ़ो समझो और अपने आगे का रास्ता तय करो 0 यदि को प्राप्त होते हो मिलेगा तो धरती का सुख पाओगे उनका मन नहीं दे रहा था तब भगवान कृष्ण ने उन्हें समझाया कि धर्म युद्ध में एक पक्ष को चुनना ही पड़ेगा अन्याय के प्रति चुप रहना समझदारी नहीं कहलाता है तुम्हें यह श्लोक सुनकर के प्रति हिंसा के लिए नहीं उठा रहा हूं बल्कि श्लोक के जरिए दिए गए संदेश के भाव को समझने की कोशिश कर रहा हूं युद्ध हमेशा हथियारों से नहीं लड़े जाते हैं और अगर जरूरत पड़े भीप्यार की जगह अपनी बुद्धि और दूसरी क्षमताओं का इस्तेमाल किया जाता है न्याय के लिए लड़ते हुए हर जाना तुम्हारे पास तुम्हारी शिक्षा ही वह हथियार है जिससे तुम अपने परिवार के प्रति हुए अन्याय का बदला ले सकते हो तुम अपना आत्म सम्मान भी बच्चा लोग और अपनी मां के प्रति अपनी जिम्मेदारी का पालन भी कर पाओगे इस लड़ाई में अगर तुम हर भी गए तब भी तुम्हें एक संतुष्टि रहेगी कि तुमने अपना पूरा जोर लगाया था अपनी बात को खत्म करता हूं और भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना करता हूं कि तुम्हें सही निर्णय लेने की शक्ति दे पंडित जी ने गहरी सांस ली और मन ही मन द्वारा आया जय श्री कृष्णा भगवत गीता दिखाएं 

7 जब से अपना गीता ज्ञान ब्लॉक लिखना शुरू किया है उनके ऊपर तो अभी तक वह सिर्फ अपने मां के सुकून के लिए गीत और समझते थे अब अपने ब्लॉक के पाठकों के सवालों के जवाब देने के लिए गीता को फिर से पढ़ रहे हैं ताकि उनके जवाब की तलाश भी पूरी हो और उन्हें सही मायने में गीता ज्ञान भी मिल सके और इसी गीता ज्ञान को आप सुन रहे हैं कोई सवाल पंडित जी के पास आ ही जाता है हर सवाल के पीछे एक कहानी होती है क्योंकि जीवन की कोई भी परेशानी अचानक से नहीं आती उसके पीछे सालों से भूमिका बन रही होती है हमारे फैसला हमारी इच्छाएं और हमारा व्यवहार सब मिलकर आने वाले कल की इबादत लिखते हैंअगर आज की किसी परेशानी का हल तलाशना है तब पुराने दिनों के पन्ने पलटने जरूरी हो जाते हैं आपके पन्ने पलटने जा रहे हैं पंडित जी ताकि उसकी मदद से किसी की परेशानी का हाल गीता के पन्नों में तलाश पंडित जी के पास जो समस्या सवाल बन कर आई है वह कहीं बाहर से नहीं है उनके खुद के घर से उनकी जान से ज्यादा प्यारी छोटी बहन उर्मिला के घर से आई है उन्हें कल शाम फोन पर बताई है लेकिन पंडित जी कोई जानते हैं कि अगर उन्होंने इसका हल ना निकला तो उनकी बहन की जिंदगी भर की मेहनत जो सपना की जीवन हम कर दिया वह बिखर जाएगा यह सोचते हुए पंडित जी की आंखों के आगे अपनी बहन का पूरा जीवन तीन भाइयों की गलती और मिला सबसे छोटी विधि इसीलिए मां-बाप के साथ भाइयों की भी लाडली थी तीनों भाइयों की पूरी कोशिश रहती थी कि उनकी बहन को कोई परेशानी ना हो उसकी कोई फरमाइश अधूरी ना रहे उसकी आंखों में कभी कोई ना सुनाएं और पैर तले कोई काटा न चुभे लेकिन अगर हमारे चैनल को भी कभी कोई परेशानी होती ही नहीं कई बार हमारी इच्छाओं के एकदम उलट होता है और इस पर किसी का जोर चलता ही नहीं उर्मिला और पंडित जी समेत सभी भाई बहन जी वक्त में पड़े हुए उसके समय लड़कियों को पढ़ाई के काम ही मौके मिलते थे उनके माता-पिता ने उर्मिला को आठवीं कक्षा तक पढ़ाया और फिर एक अच्छे परिवार के पढ़े लिखे लिए उसकी शादी भी करवा दी उर्मिला का जीवन बहुत अच्छा चल रहा था पति बहुत समझदार और उलझा हुआ इंसान था भगवान ने एक बेटा और एक बेटी के परिवार को संपूर्ण कर दिया था की जीवन की उम्मीद कोई भी लड़की कर सकती है उर्मिला के जीवन में उसे सब कुछ था लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था एक शाम ऑफिस से घर लौटते हुए उर्मिला के पति की रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई एक हंसता खेलता परिवार जैसे अचानक से दुखों के पहाड़ के नीचे आ गया उर्मिला खुद इस सदमे से ऊपर नहीं पा रही थी तो बच्चों को क्या समझती समझाने बुझाने के बाद बहुत लंबे वक्त के बाद उर्मिला थोड़ा सामान्य हुई उसके आगे एक लंबी जिंदगी थी जिसे उसे अकेले काटना था साथ ही दोनों बच्चों का भविष्य भी देखना था जिंदगी की कड़वी सच्चाइयां मुंह के आगे खड़ी हूं तब इंसान को शोक मनाने का भी वक्त नहीं मिलता अपनी तरफ से हर संभव मदद करने का फायदा तो किया लेकिन उर्मिला जानती थी कि उनके भी अपने परिवार अपनी जिम्मेदारियां हैं आखिर कब तक वह लोग उसका और उसके बच्चों का बोझ उठाएंगे उसेखुद ही खुद ही कुछ करना होगा उसे ज्यादा पढ़ी-लिखी तो थी नहीं इसीलिए कहीं अच्छी नौकरी से मिल नहीं सकती थी और इसीलिए उसने सिलाई का काम करने की ढाणी बृजभूषण जी से वह तीनों भाइयों में सबसे ज्यादा करीब थी इसलिए उसने इस बारे में उन्हीं से सलाम मांगी भाई को बहन का फैसला सही लगा तो उन्होंने उर्मिला का पूरा साथ देने का वादा किया बृजभूषण जी ने उर्मिला को सिलाई का डिप्लोमा करवा दिया और परी उर्मिला को सिलाई का काम मिलने लगातार बढ़ता गया जब काम बढ़ता गया तब उर्मिला ने अपने आज पड़ोस की महिलाओं को सिलाई सीखकर काम देने का फैसला किया इस तरह कुछ ही सालों में उसका अच्छा बड़ा सिलाई केंद्र बन गया था जिस तरह की कई जरूरतमंद महिलाएं काम करती थी और एक रिस्पेक्टफुल जिंदगी की रही थी उर्मिला की दोनों बच्चे भी होनहार निकले दोनों ने खूब पढ़ाई की नौकरी उन दोनों ने उर्मिला से एक फैक्ट्री खोलने को कहा था कि और ज्यादा महिलाओं को रोजगार मिल सके इन सब में पूरी तैयारी और मदद उसके दोनों बच्चों के साथ बृजभूषण जी ने भी का उद्घाटन था उसे दिन बृजभूषण जी अपनी बहन के प्रति बेहद गर्व का अनुभव कर रहे थे उनकी बहन ने अपनी विपरीत परिस्थितियों को खुद पर हावी नहीं होने दिया था और अपने साथजितनी महिलाओं को संकट से उभर लिया था बेटी और बेटी की शादियां करके उर्मिला ने अब उनके प्रति अपने दायित्व पूरे कर लिए थे उनकी बहुत दिव्या ने मैनेजमेंट की पढ़ाई की थी और अब वह अपनी सास के साथ फैक्ट्री संभाल रही थी चल रहा था लेकिन एक दिन उर्मिला बाथरूम में फिसल कर गिर गई और उसकी कमर में बहुत बड़ी चोट लगी जिसकी वजह से डॉक्टर ने उसे पूरे 6 महीने के बेड रेस्ट के लिए कहा 6 महीने में हालात सुधारने के बजाय बिगड़ती चली गई और उर्मिला तमाम इलाज के बावजूद बिस्तर से लग गई अब घर और फैक्ट्री की सारी जिम्मेदारी दिव्या पर आ गई उसने कोशिश तो पूरी की उर्मिला की फैक्ट्री ना जाने से वहां के कर्मचारियों के बीच कई समस्याएं आने लगी कम से ज्यादा काम चोरी होने लगी अनुशासन खत्म होने लगा जिससे कम पर फर्क पड़ता और कारोबार पर पूरा असर होने लगा इसी समस्या से परेशान होकर दिव्या ने पंडित जी को फोन किया था वह जानती थी कि उनके पास कोई ना कोई हल जरूर होगा कोई अच्छी एडवाइस तो वह जरूर देंगे पंडित जी ने उसकी तमाम शिकायतें सुनी की फैक्ट्री में काम करने वाली महिलाएं देर से कम पर आती है चोरी करती है इसका अर्थ है कोई अच्छी एडवाइस तो जरूर देंगे पंडित जी ने उसकी तमाम शिकायत सुनी की फैक्ट्री में काम करने वाली महिला रंपरा है काम चोरी करती है संपर्क में आने वाला पुरुष भी वैसा ही आचरण करते हैंवह जो कुछ प्रमाणित कर देता है समस्त मनुष्य समुदाय इस का अनुसरण करने लगते हैं इसका मतलब यह है की बेटी हमारा समाज और इसमें बसने वाले लोग अपने लिए आदर्श होते हैं ऐसा आदर्श जब उन्हें मिल जाता है तभी भी उसके गुना को अपने व्यक्तित्व में उतारने लग जाते हैं इस तरह पूरा समाज एक आदर्श समाज बन जाता है अगर इसका दूसरा अर्थ हम देखें तो वह इस तरह होगा किसी भी कुछ अपेक्षा रखने से पहले हमें वैसा आचरण खुद भी करना पड़ता है तभी हम अधिकार से दूसरों से अपेक्षा रख सकते हैं कि तुम्हारे लिए काम करने वाले लोग आदर्श हो तब तुम्हें भी उनके लिए आदर्श बनना पड़ेगा ताकि वह तुम जैसा बनना चाहे तुम्हारी सास यानी उर्मिला उनके लिए वही आदर्श थी वह हमेशा फैक्ट्री का समय शुरू होने से आधा घंटे पहले पहुंच जाती थी गेट पर खड़ी होकर आने वाले लगभग सभी स्टाफ मेंबर से मिलती है उनके हाल-चाल पूछता अगर किसी को कोई समस्या हो तो उनकी मदद करने की कोशिश करते हैं काम के दौरान पूरी फैक्ट्री में घूमती रहती कि कहीं कोई दिक्कत तो नहींस्टाफ को वह हमेशा उनके बीच मिलती है उनके सुख-दुख में हमेशा साथ रहकर उर्मिला ने उन्हें बिल्कुल अपने परिवार की तरह बना लिया था इसी वजह से सभी महिलाएं काम को अपना काम समझ कर करती और सब कुछ भी रहते हैं अब तुम सोचो की मालकिन की तरह आधे दिन फैक्ट्री जाना अपने एयर कंडीशन वाले ऑफिस में बैठे रहना और सिर्फ काम की बातें करना तुम्हें उन काम करने वाली महिलाओं के करीब लेगा या उनसे दूर करेगा दिव्या को अब समस्या की जड़ भी समझ आ रही थी और समाधान भी दिख गया था उसने पंडित जी को बहुत-बहुत धन्यवाद का और मन ही मां उनकी सलाह पर अमल करने का संकल्प लिया पंडित जी ने भगवान श्री कृष्णा और श्रीमद् भागवत गीता को प्रणाम किया और प्रार्थना की की प्रभु सभी कोसही 

8 उन्हें इतने लोगों का प्यार और सम्मान मिलेगा लोग अपने जीवन की परेशानियां उनसे बांटने लगे उनसे उम्मीद करते हैं कि पंडित जी का ज्ञान उनकी परेशानियों में रास्ता दिखा सकता है पंडित जी को सबसे ज्यादा खुशी इस बात की थी कि लोग गीता की तरफ लौट रहे थे और उनके पाठकों में हर उम्र के लोग थे इस बात की भी उन्हें बहुत खुशी थी और यह ही खुशी हम अब तक पहुंचा रहे हैं आप सुन रहे हैं लोगों को अपना सीखा हुआ समझा हुआ ज्ञान बांट रहे थे तब उनके अपने घर में उनकी पत्नी सरला जी एक बड़े मानसिक संघर्ष से गुजर रही थीपर अगर पंडित जी ने ध्यान दे दिया होता तो वह सरला जी की मदद कर सकते थे लेकिन कई बार हम बाहर की दुनिया में इतना खो जाते हैं कि अपने घर के लोगों की परेशानियों पर हमारी नजर ही नहीं पड़ती उनका सारा जीवन परिवार की देखभाल करते बीता था पति और बच्चों रिश्ते नाटो का ख्याल रखने में उन्होंने कभी ना अपने बारे में सोचा ना अपना ख्याल रखा अब जब सब अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त थे बच्चे अपनी नौकरियों में इतने व्यस्त थे कि पूरे दिन में एक बार भी अपनी मां से बात करने का समय नहीं निकाल पाते थे पति अपनी अलग दुनिया में व्यस्त थे जहां उनके दोस्त थे इंटरनेट ब्लॉक था लोग थे और उनकी समस्याएं थी तो बस सरला जी से इतना नाम से बात करने की फुर्सत इंसान का मन भी बड़ी अजीब चीज होती है कभी तो बड़ी-बड़ी बातों से परेशान नहीं होता और कभी जरा सी बात पर रखा है वह चाहती है की सारी दुनिया की परेशानियों का हाल बताने वाले पंडित जी उनकी भी दुख का हाल बताएं लेकिन उनसे खुलकर कुछ कहती भी नहीं इस समय सरला जी के शरीर को नुकसान पहुंचाना शुरू हो गया जब मन में हर वक्त तनाव रहने लगे तब इसका खामियाजा शरीर ही भुगत्ता है उनकी भूख मर गई ब्लड प्रेशर बढ़ने लगा नींद उड़ गई पंडित जी ने डॉक्टर को दिखाया कुछ टेस्ट भी पर सब कुछ ठीक ही आया था अब डॉक्टर ने पंडित जी से कहा लगता है कोई मानसिक तनाव है जो शरीर में यह लक्षण दिख रहे हैं आप यह तो खुद बात कीजिए यह किसी मानसिक रोग विशेषज्ञ को इन्हें दिखाइए 
8 उन्हें इतने लोगों का प्यार और सम्मान मिलेगा लोग अपने जीवन की परेशानियां उनसे बांटने लगे उनसे उम्मीद करते हैं कि पंडित जी का ज्ञान उनकी परेशानियों में रास्ता दिखा सकता है पंडित जी को सबसे ज्यादा खुशी इस बात की थी कि लोग गीता की तरफ लौट रहे थे और उनके पाठकों में हर उम्र के लोग थे इस बात की भी उन्हें बहुत खुशी थी और यह ही खुशी हम अब तक पहुंचा रहे हैं आप सुन रहे हैं लोगों को अपना सीखा हुआ समझा हुआ ज्ञान बांट रहे थे तब उनके अपने घर में उनकी पत्नी सरला जी एक बड़े मानसिक संघर्ष से गुजर रही थीपर अगर पंडित जी ने ध्यान दे दिया होता तो वह सरला जी की मदद कर सकते थे लेकिन कई बार हम बाहर की दुनिया में इतना खो जाते हैं कि अपने घर के लोगों की परेशानियों पर हमारी नजर ही नहीं पड़ती उनका सारा जीवन परिवार की देखभाल करते बीता था पति और बच्चों रिश्ते नाटो का ख्याल रखने में उन्होंने कभी ना अपने बारे में सोचा ना अपना ख्याल रखा अब जब सब अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त थे बच्चे अपनी नौकरियों में इतने व्यस्त थे कि पूरे दिन में एक बार भी अपनी मां से बात करने का समय नहीं निकाल पाते थे पति अपनी अलग दुनिया में व्यस्त थे जहां उनके दोस्त थे इंटरनेट ब्लॉक था लोग थे और उनकी समस्याएं थी तो बस सरला जी से इतना नाम से बात करने की फुर्सत इंसान का मन भी बड़ी अजीब चीज होती है कभी तो बड़ी-बड़ी बातों से परेशान नहीं होता और कभी जरा सी बात पर रखा है वह चाहती है की सारी दुनिया की परेशानियों का हाल बताने वाले पंडित जी उनकी भी दुख का हाल बताएं लेकिन उनसे खुलकर कुछ कहती भी नहीं इस समय सरला जी के शरीर को नुकसान पहुंचाना शुरू हो गया जब मन में हर वक्त तनाव रहने लगे तब इसका खामियाजा शरीर ही भुगत्ता है उनकी भूख मर गई ब्लड प्रेशर बढ़ने लगा नींद उड़ गई पंडित जी ने डॉक्टर को दिखाया कुछ टेस्ट भी पर सब कुछ ठीक ही आया था अब डॉक्टर ने पंडित जी से कहा लगता है कोई मानसिक तनाव है जो शरीर में यह लक्षण दिख रहे हैं आप यह तो खुद बात कीजिए यह किसी मानसिक रोग विशेषज्ञ को इन्हें दिखाइए उनकी भूख मर गई पंडित जी ने डॉक्टर को दिखाया पर सब कुछ ठीक ही आया था शरीर में यह लक्षण आप यह तो खुद बात कीजिए यह किसी मानसिक रोग विशेषज्ञ को इन्हें दिखाइए पंडित जी बहुत है ऐसी कोई बात तो उनकी जानकारी में नहीं थी जो सरला जी को इस हद तक परेशान करती तुम्हारे मन में सोचा कि घर जाकर पहले खुद ही सरल जी से बात करेंगे और बड़े से पूछा कि तुम्हें कोई दुख है कोई बात जो तुम्हारे दिल को लगी है मेरा कोई विवाह तुम्हें बुरा लगा या कुछ भी ऐसा हुआ है पता नहीं पाती किसने भरे सपनों का असर था यह उनकी आंखों में अपने प्रति झलकती चिंता को देखकर मन का बांध जैसे टूट गया शुरू हुई तो लगा आज पूरे घर को डुबोकर ही रखेंगे उनके साथ हर सुख-दुख में खड़ी रहने वाली उनकी हंसी हंसने वाली उनके आंसू रोने वाली पत्नी जाने और उन्हें पता तक नहीं इससे बड़ी शर्म की बात क्या होगी कि अनजान लोगों को उनके दुखों का हाल बताने वाले पंडित जी को अपनी पत्नी के दुख की बालक तक नहीं है खूब रोकर जब सरला जी शांत हुई तब पंडित जी ने फिर से पूछा कि आपके आंसुओं की वजह क्या है तब बड़े संकोच के साथ सरला जी ने कहा मुझे लगता है कि मेरा जीवन व्यर्थ ही गयामैंने ऐसा कुछ किया कि इंसान मुझे याद रखें और ना ही कुछ ऐसा कि भगवान मुझे प्रेम करें ना कोई पूजा पाठ नादान धर्म न किसी की मदद ना कोई भलाई ही कि मनुष्य जन्म लेकर भी बेकार ही जाने दिया इससे मुझे लगता है मुझ जैसा बेकार जीवन किसी मेरी प्यारी मुझे दुख है कि तुम ऐसा सोचती हो तुम्हें लगता है कि तुमने जीवन व्यर्थ दिया अगर ऐसा है तो इस धरती पर सभी का जीवन व्यर्थ ही है तुम नहीं जानती कि तुमने कितना सेल्फलेस जीवन दिया है याद करो वह दिन जब तुम मेरे जीवन में आई थी इतनी छोटी उम्र थी तुम्हारी तुमने कितने आत्मविश्वास के साथ एक नए जीवन को अपना लिया था अपने स्वभाव और सेवा भाव से तुमने कितनी जल्दी मेरे परिवार के हर सदस्य का दिल जीत लिया था तुमने हमेशा दूसरों के सुख की फिक्र की दूसरों की खुशी में खुश हुई और कभी अपने प्रेम के बदले कुछ नहीं तुम्हारी बदौलत है सरला की आज मैं और मेरे बच्चे एक अच्छी जिंदगी जी रहे सब तुम्हारी मौत साधना का फल है लोगों को गीता का ज्ञान में देता हूं लेकिन सही मायने में गीता ज्ञान को तुमने दिया है मुश्किल से मुश्किल वक्त में भी तुम्हारा धैर्य नहीं देगा सुख में तुम इतना ही नहीं और यही तो गीता सिखाती है आसमानों डिजिटल लोगों लोकन ना दूजेय और यही तो गीता सिखाती है मैं तुम्हें गीता का एक श्लोक सुनाता हूंय

देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।

ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते।।17.14।।

।।17.14।। देव, द्विज (ब्राह्मण), गुरु और ज्ञानी जनों का पूजन, शौच, आर्जव (सरलता), ब्रह्मचर्य और अहिंसा, यह शरीर संबंधी तप कहा जाता है।।
 


समान जो डिजिटल लोको लोको यह सच में प्रिया यह श्लोक गीता के बारे में अध्याय में और इसमें भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि है अर्जुन जिस किसी को कष्ट नहीं पहुंचता तथा जो अन्य किसी के द्वारा विचलित नहीं होता जो सुख-दुख में भय तथा चिंता में संभव रहता है वह मुझे अत्यंत प्रिय है हम सबको लगता है कि इस दुनिया में जाकर उसी का जीवन सफल हुआ जिसने खूब सारा धन कमाया यह खूब मान सम्मान कमाया जिसके पास बहुत सुख सुविधाएं हैं यह जिसे लाखों करोड़ों लोग जानते हैं हम सोचते हैं कि ईश्वर को वही वक्त याद रहता है जो बहुत सारा दान करता है या रोज व्रत उपवास रखता है या नंगे पैर मिलो दूर की स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने हमें बताया है कि उन्हें किस तरह के लोकप्रिय सबसे पहले जो किसी को कष्ट नहीं पहुंचते कष्ट पहुंचाने का अर्थ किसी को मारना ही नहीं होता अपनी बातों और विचारों से भी हम किसी का दिल दुखा सकते हैं अपने कर्मों के जरिए भी हम किसी का बुरा कर सकते हैं इसीलिए जो किसी भी तरह मन वचन या कम से किसी को कष्ट नहीं पहुंचता ऐसा व्यक्ति मुझे यह भगवान को प्रिया है जो अन्य किसी के द्वारा डिस्टर्ब नहीं होता मतलब अगर किसी ने जाने अनजाने आपका दिल दुखाने वाला काम कर दिया यह कोई बात कह दी लेकिन आपने इसका बुरा नहीं माना उसे व्यक्ति के प्रति कोई बड़ा भाव मन में नहीं ले तो आप मुझे यानी भगवान को प्रिया लगोगे भाई और चिंता में जो एक जैसी मेंटल स्टेट में रहे न सुख में उजाले न दुख में डूबने लगे ऐसा व्यक्ति भी मुझे बहुत प्रिय होता है अब बताओ कि इसमें कहीं यह बात है जो तुम्हें लगे कि तुम ईश्वर की प्रिया नहीं तुमने तो हमेशा गीता में भगवान की कहानी कंडीशन का पालन किया है इसलिए तुम्हारा जीवन कैसे व्यर्थ हुआ तुम्हारा जीवन तो हम सबसे ज्यादा सफल है क्योंकि यह तुम्हारा नाम की तरह सरल है इसमें किसी किस्म का छल कपट नहीं है इसलिए अपने मन से सारे दर और सारी हीन भावना निकाल दो पंडित जी की बातों ने सरला जी के मन से संचय के सारे बदले हटा दिए वह अब संतुष्टि थी उनके प्रश्नों के जवाब उन्हें मिल चुके थे लेकिन पंडित जी ने घेर लिया था अचानक उन्हें लगने लगा कि उन्हें अपने गीता ज्ञान का अहंकार हो चला था वजह से उन्होंने अपनी पत्नी के मन में पल रहे तो कुंभ महसूस तक नहीं किया तो अपने आप की खोज करना सिखाती है अपने हर भाव को महसूस करके अस्तित्व का आधा हिस्सा है उनके जीवन संगिनी है वह उनके होते हुए भी अकेले ही अपने मन में अपने प्रति हीन भावना का अध्यक्ष लेकर जीती रही

9 और जीने का तरीका आ गया होता है तो शायद और बेहतर तरीके से जी लेते हैं लेकिन जो बीत गया उसका क्या कर सकते हैं अब तो जो और जितना बच्चा है उसी को संभाल के सही से रख ले तो सुकून से आंखें बंद कर पाएंगे इधर उनके ब्लॉक के जरिए कई तरह के लोग उनसे जुड़ रहे हैं कई दूसरे ब्लॉगर्स भी संपर्क में आने लगे हैं जो बिल्कुल अलग विषयों पर लिखते हैं पंडित जी को नए-नए लोगों से यह जुड़ाव और उनके जरिए मिलने वाली जानकारियां उनके मित्र ब्लॉगर्स ने एक योजना बनाई सिर्फ एक दूसरे को इंटरनेट से ही जानते थे लगभग सभी कोई विचार बहुत पसंद आया तय हुआ की खास दिन पर एक शहर तय करके मिलन समारोह किया जाएगा पंडित जी भी इस कार्यक्रम में पत्नी के साथ शिरकत करने के लिए बहुत उत्स हिट है उनके शहर से युवा ब्लॉगर भी थे जिन्हें इस कार्यक्रम के लिए निमंत्रण मिला था और भी पंडित जी के साथ ही ट्रेन से इस कार्यक्रम के लिए जाने वाले थे सभी सुनने वालों को बता दें कि यह है गीता ज्ञान जिसे आप सुन रहे हैं जब पंडित जी इस महाशय से रेलवे स्टेशन पर मिले तो उन्होंने बड़ी गर्म जोशी से पंडित जी का अभिवादन किया इस युवक का नाम रोहित थापंडित जी और उनकी पत्नी को भी इस जोशीले लेकिन सभी युवा से मिलकर खुशी हुई तो सीधे कार्यक्रम स्थल पर पहुंचकर ही खत्म हुई इन बातों में उसकी अब तक की जीवन कथा से लेकर उसकी अब तक की तमाम उपलब्धियां की दास्तां भी थी रोहित ने अपनी कहानी कुछ इस रोहित का जन्म में मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था जहां बहुत तंगी तो नहीं थी लेकिन हर खर्च बहुत सोच समझकर होता था वह पढ़ाई में बहुत तेज था और छोटी उम्र से ही ट्यूशन पढ़ने लगा था उसका कहना था कि उसने अपनी पढ़ाई का खर्च एक उम्र के बाद खुद ही उठाया था फिर उसने स्कूल से निकाल कर पढ़ाई छोड़ दी क्योंकि उसे लगता था कि कॉलेज की पढ़ाई इंसान को सिर्फ किताबी ज्ञान दे सकती है जिंदगी जीने का होना नहीं सिखाते इसीलिए उसने छोटी-छोटी नौकरियों करना शुरू किया और दुनिया में जीने के तौर तरीके और उसके घर में उसकी वजह से वह खुशखली आ गई जिसके सपने वह लोग हमेशा देखते आ रहे थे फिर रोहित ने बताया कि उसने नए ओनरशिप के दो विदेशी भाषाएं इंटरनेट की दुनिया में कदम रखातो यहां भी अपनी पहचान बहुत जल्द बना ली उसे इस बात का बड़ा गर्व था कि कार्यक्रम में भी वह सबसे कम उम्र है रोहित की बातों में बस अपना ही जिक्र था पूरे रास्ते ना तो उसने पंडित जी से उनके बारे में पूछा ना उनके काम के बारे में बहुत अच्छा आयोजित किया गया था देश के लगभग हर हिस्से से ब्लॉगर्स आए थे एक दूसरे से जान पहचान बनाने में ही पहला दिन निकल गया था अगले दिन सबको अपनी रुचि के विषय पर लोग और अच्छे से एक दूसरे को समझ सके रहने व खाने की व्यवस्था एक होटल में सब लोग से की गई थी अगले दिन नाश्ता करने के बाद होटल के लोन में टहल रहे थे कि तभी बाहर रोहित आ गया वह हमेशा की तरह सुनेंगे जैसे अपने ब्लॉक में लिखते हैं उसके सवाल में जैसे कटाक्ष ता फिर उसने अपने ब्लॉक के विषय में बताना शुरू किया थी लेकिनआजकल पंडित जी यह सब सुनकर बस मुस्कुराते रहे क्योंकि उन्हें एक बात समझ में आ गई थी कि रोहित को अपनी ना समझी की वजह से अहंकार हो गया है अपनी उपलब्धियां पर खुश होना सबका अधिकार है अपने आगे बाकी लोगों को कुछ समझना यह उन्हें कमतर होने का एहसास करवाना अहंकार कहलाता है जो कि मनुष्य जाति के सबसे बुरे गुना में से एक है इसीलिए पंडित जी को लगा कि रोहित को इसका एहसास करवाया जाना जरूरी है ताकि वह समय रहते इस अवगुण के जाल से बाहर निकल सके और अपनी प्रतिभा का सही उपयोग करसके विक्रम शुरू हुआ और हर वक्त के पास बोलने को कुछ बेहतरीन था के पास गांव देहात के किस तो किसी के पास किताबों की दुनिया की जानकारी कोई कानून का ज्ञाता तो कोई कई जानकारी हर कोई अलग-अलग संघर्षों से टक्कर बना हुआ देखें लोग इतने अनुभव नहीं समझ सकते इसी तरह पंडित जी की बीमारी से लोगों को संबोधित किया था दोस्तों की महफिलों में बात करना या ब्लॉग लिखना है महसूस हो रहा था लेकिन उन्होंने साहस करके बोलना शुरू किया संबोधन के बाद जो उन्होंने कहा और जानकारी को सुनते हुए मैं खुद को बहुत खुश किस्मत मार रहा हूं कि आज यहां आपके बीच बैठा हूं आप लोग हैरान हो ना कोई जानकारी की आपको चकित कर सकता हूं दाल रोटी की फिक्र और जिंदा रहने की इज्जत है रुचि के नाम पर बस एक ही है कि पढ़ने का शौक रहा जो उम्र के साथ धार्मिक किताबों की तरफ ज्यादा हो गया जो थोड़ा बहुत सुना पड़ा और समझा वह सब के साथ बांट लिया यह तो आप जैसे लोगों का बड़प्पन है कि मेरे कचरा ज्ञान को भी सम्मान दिया और अपने बीच उठना और बोलने का मौका दिया इसके लिए कुछ सुनाना जरूरी है तुम्हें श्रीमद् भागवत गीता का यह श्लोक आप सबको सुनना चाहता हूं

प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः।

अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताऽहमिति मन्यते।।3.27।।
 
।।3.27।। सम्पूर्ण कर्म सब प्रकारसे प्रकृतिके गुणोंद्वारा किये जाते हैं; परन्तु अहंकारसे मोहित अन्तःकरणवाला अज्ञानी मनुष्य 'मैं कर्ता हूँ' -- ऐसा मानता है।

कि संसार की सभी गतिविधियों को प्रकृति के गानो द्वारा किया जाता है लेकिन आज्ञा में आत्मा शरीर के साथ झूठी पहचान से बहती है यहां भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को समझ रहे हैं कि संसार के सभी प्रकृति द्वारा पहले से तय है कौन क्या करेगा कैसे करेगा यह प्रारब्ध में जब आत्मा को लगता है कि यह सब उसके द्वारा हो रहा है तब वह अहंकार से ग्रस्त हो जाती है जबकि यह अज्ञानता के निशानी है क्या नहीं इसके प्रति सजग होने और अहंकारी होने में बहुत फर्क है धर्म के प्रति सजग होना हमें सफलता और शांति देता है लेकिन उसके प्रति अभियान या अहंकारी होना हमें दुख देता है अपमानित भी करवाता है यह जीवन का ऐसा सच है जो यदि हम समय रहते समझ ले तो कई दुखों से बच सकते हैं प्रकृति से हम इसके अनेक उदाहरण सीख सकते हैं लेकिन आज्ञा में आत्मा शरीर के साथ झूठी पहचान से बहती है खुद को करता मानने लगती है यहां भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को समझ रहे हैं कि संसार के सभी प्रकृति द्वारा पहले से तय है कौन क्या करेगा कैसे करेगा यह प्रारब्ध में बहुत पहले लिखा जा चुका है ऐसे में जब आत्मा को लगता है कि यह सब उसके द्वारा हो रहा है तब वह अहंकार से ग्रस्त हो जाती है जबकि यह अज्ञानता के निशानी है हम जीवन में क्या करते हैं क्या नहीं इसके प्रति सजग होने और अहंकारी होने में बहुत फर्क है अपने कर्म के प्रति सजग होना हमें सफलता और शांति देता है लेकिन उसके प्रति अभियान या अहंकारी होना हमें दुख देता है अपमानित भी करवाता है यह जीवन का ऐसा सच है जो यदि हम समय रहते समझ ले तो कई दुखों से बच सकते हैं हम इसके अनेक उदाहरण सीख सकते हैं इतना ज्यादा फलों से भरा पेड़ होगा उसकी टहनियां उतनी ही झुकी होगी विनम्रता सबसे बड़ा गुण है यह हमें सही महीना में इंसान बनाती है पंडित जी द्वारा शोक की सुंदर व्याख्या सुनकर सबका मन प्रसन्न हो गया शायद रोहित को भी उसके अहंकार का एहसास हो गया यह हो सकता है इसका संदेश समझ गया था इस तरह बहुत सारे अनुभवों और ज्ञान के साथ यह मिलन समारोह समाप्त हुआ वापसी में रोहित एक बार फिर पंडित जी के साथ ही था लेकिन इस बार उनसे गीता ज्ञान समझने का आग्रह कर रहा था जिन्हें मन ही मन भगवान श्री कृष्णा और भागवत गीता को प्रणाम किया और सब की बुद्धि प्रकाशित करने की प्रार्थना भी की गीता ज्ञान का एक और एपिसोड जिसे आपने सुना 


10 गीता ज्ञान ब्लॉक से मिले अनुभवों से बृजभूषण जी को एक बात तो अच्छे से समझ आ गई है कि शायद ही मनुष्य जीवन की कोई ऐसी समस्या होगी इसका हल गीता में ना हो युवाओं पहले भगवान श्री कृष्ण ने जो ज्ञान अर्जुन को दिया था वह इतने समय बाद और एकदम अलग परिस्थितियों में भी हम सबको रोशनी दिखता है जरूर बस गीता तक लौटने की है इस ज्ञान के महासागर में गोते लगाने की है और आप तक यह गीता ज्ञान पहुंच रहा है मानसिक स्वास्थ्य तो गीता ज्ञान की बदौलत एकदम सही है लेकिन उम्र तो शरीर पर असर दिखाती है उनके फैमिली डॉक्टर ने उन्हें नियमित चेकअप के लिए आने की सलाह दी थी और पंडित जी जानते थे की उम्र के इस पड़ाव पर अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही उन्हें भारी पड़ सकती है इसीलिए वह हर 3 महीने में डॉक्टर के पास चले जाते थे यह संयोग ही था कि डॉक्टर जोशी भी कभी कभार उनका ब्लॉग पढ़ लिया करते थे हालांकि उन्हें शुरू में यह नहीं पता था कि ब्लॉक को लिखने वाले पंडित जी ही है इस बात का पता उन्हें बहुत वक्त के बाद उनके दूसरे मरीज से चालक के लिए गए तब डॉक्टर साहब ने उनसे इस बात का जिक्र किया करते हैं और उन्हें बहुत आनंद आता हैपंडित जी ने उन्हें धन्यवाद दिया और अपना चेकअप करने लगे डॉक्टर ने कुछ टेस्ट वगैरह लिख दिए और 2 दिन में फिर आने को कहा दो दिन बाद जब पंडित जी रिपोर्ट लेकर गए तब उन्हें पता चला कि डॉक्टर साहब के पिताजी की तबीयत अचानक खराब हो जाने से वह आज क्लीनिक नहीं आए हैं पंडित जी ने भगवान श्री कृष्ण से डॉक्टर साहब के पिता को स्वास्थ्य लाभ देने की प्रार्थना की और घर चले गए तो इस बार डॉक्टर साहब मिल गए उन्होंने रिपोर्ट देखकर पंडित जी को खान-पान में कुछ परहेज बताएं और कुछ दवा भी लिख कर दी अपने डॉक्टर साहब से उनके पिता की सेहत का हाल पूछा डॉक्टर साहब ने बताया कि उनके पिताजी का ब्लड प्रेशर अचानक से बढ़ गया था इसकी वजह से उन्हें चक्कर आया और वह गिर गए उनकी कमर में काफी चोट आई है और अब भी कुछ समय तक बिस्तर पर ही रहेंगे और उठने लगे कि तभी डॉक्टर साहब ने उन्हें आवाज देकर रोक दिया पंडित जी आप मेरी मदद कर सकते हैंडॉक्टर साहब ने बड़े विनम्र स्वर में पूछा बिल्कुल डॉक्टर साहब जानते हैं कि मेरे पिताजी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है लेकिन उसके पीछे का कारण आप नहीं जानते कुछ साल पहले रिटायरमेंट के बाद भी खुद को काफी व्यस्त रखते थे अपने सभी काम साथी घर के भी काफी काम खुद से कर लिया करते थे सब ठीक ही चल रहा था लेकिन एक हादसे में उन्हें एकदम बदल कर रख दिया एक बार मेरे माता-पिता परिवार के किसी विवाह समारोह से लौट रहे थे कि उनकी कर का बहुत भयंकर एक्सीडेंट हो गया थी और कुछ वक्त बाद उनकी मृत्यु हो गई पिताजी के शरीर की चोट तो ज्यादा नहीं थी लेकिन इस हादसे में उनके मन को बहुत कमजोर कर दिया अब हर वक्त में हमारी चिंता में डूबे रहते हैं हम जरा सा घर पहुंचने में लेट हो जाए या फोन का जवाब ना दे तो पिताजी पूरी तरह घबराने लगते हैं उनका ब्लड प्रेशर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है अपने पिताजी के शरीर के रोग तुम्हें फिर भी संभाल सकता हूं लेकिन उन लोगों की जड़ जो है उनकी चिंता उनके दर संभाल सकता है मेरेपिता किसी उन्हें थोड़ा समझाएंताकि चिंता करना छोड़ ना सके तो कम से काम खुद पर इतना नियंत्रण तो कर पाए कि इस वजह से उनकी तबीयत ना खराब हो डॉक्टर साहब के अनुरोध में इतनी विनम्रता और अपने पिता के प्रति इतनी फिक्र थी कि पंडित जी उनका अनुरोध डाल नहीं सके और रविवार के दिन उनके घर आने का तय कर लिया अगले रविवार को डॉक्टर साहब ने पंडित जी को लेने के लिए कर भेज दे उनके पिता के कमरे में जब पंडित जी पहुंचे तो उनकी हालत देखकर उन्हें बहुत दुख हुआ वह खुद से उठ भी नहीं पा रहे थे बातों की शुरुआत थोड़ी धीमी थी लेकिन जिस तरह बच्चे अजनबियों के साथ धीरे-धीरे खुलते हैं और फिर बोलना बंद ही नहीं करते सब के पिताजी का भी था कुछ ही देर में दोनों में ऐसी बातें होने लगी जिससे व्हाट्सएप पुराने दोस्त छोटे शहरों में वैसे भी कोई बातचीत शुरू करने के अगले 5 मिनट के अंदर अजनबी नहीं रह जाता है इस बातचीत के दौरान जाने कितनी बार अपनी पत्नी को याद किया उनकी याद करने के अंदाज से ही लग रहा था कि उन्हें अपनी पत्नी बहुत प्रिय थी और उनके जाने का दुख अभी भी एकदम ताजा हैइस बात में उन्हें इस हद तक विचलित कर दिया था कि अब हर वक्त अपनों को खोने का एक अजीब सा डर उनके दिलों दिमाग पर हावी हो गया था उनकी समस्या समय के साथ और गंभीर होती जा रही थी पंडित जी समझ चुके थे कि इस समय उन्हें किसी के साथ की जरूरत थी कोई ऐसा जो उन्हें समझ हमसे बात करें और फिर उन्हें समझाएं इसके लिए पहले उनके मन में विश्वास जगाना पड़ेगा उनके मन की पीड़ा सुनाई पड़ेगी तब जाकर फिर किसी की बात सुनेंगे वरना उन्हें लगेगा कि उन्हें उपदेश दिया जा रहा है एक उम्र के बाद हर व्यक्ति को लगता है कि उसे दूसरों से ज्यादा ज्ञान है चलते हुए पंडित जी ने डॉक्टर साहब को यही बात समझाइए और कहा कि अगली एक तो मुलाकातों के बाद ही वह उनके पिताजी को कुछ समझ पाएंगे डॉक्टर साहब ने भी इस बात पर उनसे सहमति जहर की अगली दो मुलाकातों में पंडित जी और डॉक्टर साहब के पिताजी की आपसी समझ और मजबूत हुई जो पंडित जी को लगा कि अब सही समय है तब उन्होंने गीता का यह श्लोक डॉक्टर साहब के पिताजी को सुनाएं 

चिन्तया जायते दुःखं नान्यथेहेति निश्चयी। तया हीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गलितस्पृहः' 

 चिंता से ही दुःख पैदा होते हैं, किसी और कारण से नहीं. जो व्यक्ति यह समझ लेता है, वह सभी इच्छाओं को त्यागकर चिंता से मुक्त हो जाता है, उसे असल सुख और शांति की प्राप्ति हो जाती है. 
 

शांत औरदुख उत्पन्न होते हैं किसी अन्य कारण से नहीं ऐसा निश्चित रूप से जानने वाला चिंता से रहित होकर सुखी शांत और सभी इच्छाओं से मुक्त हो जाता है जोशी जी आपकी पत्नी के साथ जो हुआ वह बेहद धोखा था लेकिन यह होना नियति में उनके जन्म में ही जुड़ा हुआ था ना कोई से रोक सकता था ना बदल सकता था इसी तरह हम सब के भाग्य में जो लिखा है उसे घटित होकर ही रहना है हम उसे एक पल के लिए भी आगे पीछे नहीं कर सकते इसीलिए सच को स्वीकार करने में ही भलाई है चिंता करने से सिर्फ और सिर्फ मां और शरीर को कष्ट पहुंचता है इसके अलावा कुछ नहीं बदलता इसीलिए आप चिंता करना छोड़ दे जीवन में एक हादसा हुआ इसका अर्थ यह नहीं कि वह दोबारा दोहराया जाएगा जीवन के कीमती वक्त को चिंता में नष्ट कर देना आप खुद को इस चिंता से मुक्त कीजिए और अपने आप को किसी दूसरे उपयोगी काम में लगा दीजिए इससे आपका मन भी लगा रहेगा और आपका समय भी आराम से कट जाएगा उन्हें समझ आया कि वह व्यक्ति की चिंता के मकर जाल में बसे हैं उन्होंने मन ही मन संकल्प लिया किस बाहर आने की पूरी कोशिश करेंगे इसके साथ ही पंडित जी ने दोबारा आने के फायदे के साथ जोशी जी से फाइनली और अभी हम भी आपसे विद्यालय रहे हैं इस एपिसोड के लिए आप सुन रहे थे गीता ज्ञान