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man ki shanti


जय श्री कृष्णा, साथियों, आशा है आप सभी कुशल मंगल से होंगे। आज की वीडियो में हम चर्चा करेंगे कि वह कौन से  कारण है जिनके कारण आज कल हमे मन की शांति नहीं मिलती सुकून नहीं मिलता है मन हमेशा बेचैन रहता है तो आइए आज की वीडियो पर इन कारणों पर चर्चा प्रारंभ करते है। 



आज की कहानी है नेता जी की, नेता जी 2 बार विधायक रहे थे वर्तमान में उन्होंने ने अपने पुत्र मंत्री पद पर आसीन करवा दिया है। इसीलिए अब नेता जी ने अपने आपको सक्रिय राजनीति से दूर करके दान पुण्य के कामों में लगा लिया है । क्षेत्र में शायद ही कोई ऐसा विद्यालय , मंदिर पंचायत भवन या कोई अन्य सार्वजनिक स्थल होगा जहा विधायक जी का दिया हुआ कोई न कोई सामान न लगा हो, समान जैसे पंखा वाटर कूलर, भवन या अन्य कोई सामग्री, उन सभी सामग्रियों पर मोटे मोटे शब्दो में सप्रेम भेंट नेता जी लिखा हुआ होता है। इसीलिए क्षेत्र की जनता उन्हें नेता जी के नाम से जानती है। 

उनके दान और लोगो के मदद के लिए आगे रहने के कारण क्षेत्र की जनता नेता जी का बहुत सम्मान करती है ऐसा नहीं है कि इतनी सारी धन संपत्ति नेता जी को विरासत से प्राप्त हुआ है, सारा मान सम्मान धन संपदा जो भी कुछ उनके पास है वह सब कुछ खुद नेता जी ने अपने दम पर बनाया है। नेता जी के पिता जी तो एक छोटे से किसान थे इसीलिए नेता जी का बचपन बहुत गरीबी में बीता था लेकिन आज नेता जी के पास किसी चीज की कमी नही है। 

एक दिन गुरु जी अपने विद्यालय में बैठे थे तभी गुरु जी के पास नेता जी के घर से फोन आया कि नेता जी ने आपको कल सुबह बुलाया है। सहसा गुरु जी को तो विश्वास नही हुआ। ऐसा नहीं था कि  गुरु जी नेता जी के घर नही गए थे या नेता जी से नही मिले थे। नेता जी के घर में कोई बड़ा कार्यक्रम होता तो सभी लोगो के साथ गुरु जी को भी निमंत्रण मिल जाता था।  लेकिन आज पहली बार ऐसा हुआ कि पर्सनली गुरु जी को नेता जी ने बुलाया था। वास्तव में गुरु जी जिस विद्यालय में पढ़ाते थे वह विद्यालय भी नेता जी की दान की हुई जमीन पर ही बना था इसी कारण  नेता जी गुरु को जानते थे।  

अगले दिन रविवार था गुरु जी करीब सुबह के 11 बजे नेता जी के आवास पर पहुंच गए। नेता जी बैठक वाले कमरे में लेटे हुए थे और बहुत से लोग उनके आस पास बैठे हुए थे। उस समय नेता जी सबके सामने अपने बेटे को किसी बात के लिए डांट रहे थे। जैसे ही गुरु जी ने उन्हे प्रणाम किया नेता जी ने  गुरु जी का नाम लेकर कहा तुम उस कमरे में मेरा इंतजार करो मैं अभी आता हूं तुमसे बहुत जरूरी बात करनी है। फिर नेता जी ने गुरु जी अंदर वाले कमरे की तरफ जाने का इशारा किया। नेता जी का नौकर गुरु जी को अंदर वाले कमरे में लेकर गया। कमरे में जाकर गुरु जी और परेशान हो गए कि ऐसा क्या हो गया जिस कारण नेता जी मुझसे एकांत में बात करना चाह रहे है। 

खैर कुछ समय बाद नेता जी कमरे में आए।  नेता जी बहुत संशय में थे जैसे कुछ बोलना तो चाह रहे है लेकिन कहा से बोले कैसे बोले यह उन्हें समझ में नहीं आ रहा था। कुछ समय बाद उन्होंने कहा मास्टर मुझे पता लगा है कि तुम भगवद गीता से सबकी प्रोब्लम सॉल्व करते हो मेरी भी एक प्रोब्लम है उसे भी सॉल्व कर दो। गुरु जी ने नेता जी से हाथ जोड़कर कहा यह आप कैसी बात कर रहे है मैं कैसे आपकी प्रोब्लम सॉल्व कर सकता हु अगर आपको कोई समस्या है तो आपके एक फोन से क्षेत्र का बड़े से बड़ा डॉक्टर या बड़े से बड़ा वकील या जिसे आप बुलाना चाहे वह आपके पास आ जायेगा। जो मुझसे ज्यादा पढ़े लिखे है योग्य है विद्वान है  उन सबके सामने मेरी क्या हैसियत है। वो आपकी समस्या का मुझसे बेहतर तरीके से उपाय बता सकते है। मैं  किसी की प्रोब्लम सॉल्व नही करता हूं हा अगर कोई मुझे कोई समस्या बताता है तो उनके लिए अगर कुछ भगवद गीता में लिखा है वह उन्हें उसका उपाय बता देता हूं। बस यही मेरा बहुत छोटा सा काम है इससे अगर उनकी समस्या का समाधान हो जाता है तो यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है।

तब नेता जी ने कहा देखो मास्टर क्षेत्र की कोई बात हमसे छुपी नहीं है हमने सुना है तुमने कई लोगो की प्रोब्लम सॉल्व की है इसीलिए मुझे लग रहा है कि सिर्फ तुम ही मेरी प्रॉब्लम सॉल्व कर सकते हो। फिर गुरु जी ने कहा अगर ऐसी बात है तो नेता जी आप अपनी समस्या बताइए अगर मेरे ज्ञान से आपकी प्रोब्लम सॉल्व होती है तो मैं अपने आप को धन्य समझूंगा।

नेता जी ने कहा तुम तो जानते ही हो कि मेरे पास धन संपदा मान सम्मान की कोई कमी नही है भरा पूरा परिवार है।  लेकिन न जाने क्यों मन में शांति नहीं मिलती है। शांति पाने के लिए पंडित जी के कहने पर खूब दान पुण्य करता हूं डॉक्टर के कहने पर खूब सारी दवा खाता हुं  लेकिन फिर भी मन में शांति नहीं रहती मन हमेशा बैचेन रहता है। तुम बताओ मास्टर मेरी इस समस्या का उपाय क्या है। 

गुरु जी कुछ देर शांत रहे नेता जी समझ गए कि क्या बात है वो बोले मास्टर तुम घबराओ नहीं  तुम्हारे पास जो भी उपाय हो मुझे बताओ। मुझे पता है डॉक्टर की हर दावा मीठी नही होती। अगर तुम मुझे डांटना चाहो तो डांट भी सकते हो। नेता जी ने बनावटी मुस्कुराहट से गुरु जी के मन से डर हटाने की कोशिश की। 

गुरु जी से इतनी छूट मिलने के बाद गुरु जी ने कहा कि नेता जी जहा तक मैं समझ पा रहा हूं आपकी इस समस्या का उपाय भगवान श्री कृष्ण ने  भगवद गीता के इस श्लोक में बताया है।   

विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।

निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति।।2.71।।
 

अर्थात जो मनुष्य सम्पूर्ण कामनाओं का त्याग करके अहंकार रहित होकर आचरण करता है, वह शान्ति को प्राप्त होता है।


 इस श्लोक के अनुसार जब हम कोई भी काम करते हैं चाहे वह अपना रोजमर्रा का काम हो या किसी की मदद करने जैसा काम यदि हम किसी भी तरह के स्वार्थ या अहंकार से भरकर करते हैं। तब हम निस्वार्थ भावना से काम नहीं कर रहे हैं। इस तरह के काम से हमे शांति नहीं मिल सकती। 

आप जो भी दान पुण्य करते है वह आपका नही है। वह सब आपको भगवान ने दिया है और आप उसमे से बहुत थोड़ा सा दूसरों को दान कर रहे है  इसीलिए दान करके किसी पर अहसान नहीं कर रहे है यह सब आपका धर्म है इसीलिए दान के माध्यम से अपने मान और सम्मान की कामना करना गलत है। 

इसी तरह अपने बच्चों को भी अपना इन्वेस्टमेंट नहीं समझना चाहिए।  यह सच है आपने उनके लिए बहुत कुछ किया है उन्हे आपने अपनी पहचान दी है धन संप्पति दी है और एक बहुत अच्छा भविष्य दिया है। आपके परिवार के लोग यह बात मन से मानते भी होंगे लेकिन हर घड़ी इस बात का जिक्र तो नही कर सकते। आपने जो कुछ किया है अपने परिवार के लिए किया आपने वही किया जो आपका धर्म था परिवार के सदस्य होने के नाते आपका कर्तव्य था। इसके लिए  हर समय सम्मान की कामना नहीं करना चाहिए।  

गुरु जी ने आगे कहा नेता जी आपने अपना काम बहुत अच्छे से किया है बाकी उसका फल जो भी मिले उसे ईश्वर और किस्मत पर छोड़ देना चाहिए लोगो से किसी तरह की कोई कामना नहीं करनी चाहिए। आप अपनी कामनावो और इच्छाओं को त्याग कर अहंकार रहित होकर अपना कर्तव्य का पालन कीजिए। भगवद गीता का पाठ कीजिए । भगवान श्री कृष्ण सद्चितानंद है वो चाहेंगे तो इसी उपाय से आपके मन को  शांति और सुकून मिल जायेगा और फिर आपका मन बैचेन नही रहेगा।  

गुरु जी के बात खत्म करने के बाद नेता जी ने   कुछ सोचा और फिर गुरु जी को जलपान करा कर विदा कर दिया। 

आज इस घटना के लगभग 6 महीने बीत गए है। इस समय विद्यालय में छुट्टी हो गई थी और गुरु जी घर जाने की तैयारी कर रहे थे। उसी समय गुरु जी के विद्यालय के सामने गाड़ियों का एक काफिला रुका। उसमे से नेता जी उतरे और गुरु जी के पास आए। गुरु जी एक दम से हैरान रह गए प्रणाम करने के बाद गुरु जी ने कहा कि नेता जी आप ने क्यों कष्ट किया मेरे लिए कोई आदेश था तो मुझे बुलावा लिया होता। 

फिर नेता जी ने कहा कि मैं ऐसे ही एक कार्यक्रम के लिए इधर से गुजर रहा था तो सोचा तुम्हे भी साथ लेता चलूं। तुमने जो उपाय बताया था वह बहुत कारगर साबित हुआ। अब तो मैं रोज सुबह शाम भगवद गीता का पाठ करता हूं इससे अब मन में बहुत शांति और सुकून मिला है। 

फिर सोचा कि इतनी अच्छी पुस्तक सभी के पास होनी चाहिए इसीलिए 10 हजार भगवद गीता की पुस्तक मंगवा कर दान करने जा रहा हूं तुम चाहो तो मेरे साथ चलो। और हां इस बार पुस्तक पर मैंने अपना नाम भी नही लिखवाया है।  नेता जी ने हंसते हुए कहा। इस बार नेता जी की हंसी बनावटी नही थी। नेता जी के चेहरे  पर सुकून और गुरु जी के लिए सम्मान के भाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे थे।

इसके लिए गुरुजी मन ही मन भगवान श्री कृष्ण को प्रणाम कर  कार्यक्रम में शामिल होने के लिए नेता जी के साथ कार में बैठ गए। 

साथियों इसी के साथ आज की चर्चा यही समाप्त होती है। चर्चा में सामिल होने के लिए आप सभी साथियों का धन्यवाद। वीडियो को लेकर कोई सलाह या सुझाव हो तो कमेंट अवश्य करे। वीडियो अच्छी लगी हो तो वीडियो लाईक करे। वीडियो को शेयर करे। अगर आप हमारे चैनल पर पहली बार आए है तो हमारे चैनल को subscribe करके हमारे साथ जुड़ जाइए। जल्द ही मिलते है ऐसी ही अन्य वीडियो पर तब तक के लिए, राधे राधे